रथ यात्रा

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हे जगन्नाथ,
थाम मेरा हाथ,
अपने रथ में
ले चल मुझे साथ।

लुभाये न मुझको अब कोई पदार्थ
मेरा तो बस अब एक ही स्वार्थ
धर्म युद्ध हो या कर्म युद्ध हो
तू बने सारथि, मैं बनूँ पार्थ ।

मैं हूँ अनाथ
बन के मेरा नाथ
अपने रथ में
ले चल मुझे साथ।

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