Chapter 22 - Palak. (Part 1)

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हेल्लो दोस्तों, हर बार की तरह समय की कमी होने के बाद भी मैंने दिल लगाकर इस चैप्टर को लिखा है । लेकिन इसके बावजूद भी अगर कोई कमी हो तो प्लीज़ संभल लीजिएगा । और अपने कमाल के एक्स्पीरियंस इस चैप्टर के कॉमेंट बॉक्स में साझा करिएगा।
मैं जानती हूं कई साइलेंट रीडर्स भी इस कहानी को बिना भूले पढ़ रहे है। लेकिन ऐसा करने से आप मेरे लिए महज एक नंबर बनकर रह जाएंगे। इसलिए प्लीज़ इस कहानी को अच्छी रेटिंग दे और अपनी खुशी तथा अनुभव मेरे साथ यहां साझा कर हमारी इस यात्रा का हिस्सा बने। मेरे लिए आपके वोट और कॉमेंट हमेशा कीमती रहेंगे।
आपकी, बि. तळेकर ♥️
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कहानी अब तक: मैं बस ख़ामोशी से पलक की ओर निहारता रहा । लिखते हुए पलक की आंखें भारी होने लगी । और उसके कुछ ही देर बाद वो वहीं सो गई । पलक के सोते ही मैंने उसे उस दूसरे सोफ़ा पर ठीक से लिटा दिया । अगले ही पल मैंने आहिस्ता से पलक को चद्दर ओढ़ाई।
तभी सोते हुई पलक का मासूम सा चेहरा देखकर अचानक मेरे ज़हन में आज उसके साथ हुए हादसे की तस्वीरें उभर आई। पलक इस समय मेरी नज़रों के सामने चैन की नींद में खोई थी और वो अब महफूज़ थी। मगर इसके बावजूद वो ज़्यादा थकी हुई और परेशान लग रही थी। जिसे महसूस कर मेरे माथे पर भी चिंता की लकीरें दौड़ गई। तब अपनी इसी चिंता में उसे ओढ़ाते ही मैं वहीं पलक और आर्या के सामने कुर्सी पर बैठ गया और इसी तरह एक और पूरी रात मैं उनकी निगरानी करता रहा ।

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अब आगे...

सोमवार रात 8:00 बजे।
मैंने और आर्या ने आज जिन मुसीबतों का सामना किया उससे उबरना मेरे लिए बहोत मुश्किल था। अगर आज चंद्र सही वक्त पर न आया होता तो हमें अपने रिसर्च की बहोत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ती।
उस वक्त मैं बहोत ज़्यादा डर गाई थी। जब उन बदमाशों ने मेरा पीछा करते हुए पेहली बार मुझ पर हाथ उठाया तब आर्या ने बीच में आकर मुझे बचा लिया। लेकिन वो बदमाश हमारी सोच से कई ज्यादा खतरनाक निकले। वो सब पूरी तैयारी के साथ, हम दोनों पर झुंड बनाकर टूट पड़े। ऐसे में आर्या ने और मैंने भी उन्हें रोकने की, उन्हें समझाने की बहोत कोशिश की मगर उनकी ज्यादती बढ़ती चली गई। और फिर आर्या के लिए भी उन्हें संभाल पाना मुश्किल हो गया। आर्या ने अकेले उनसे लड़ते हुए मुझे वहां से भागने को कहा। लेकिन उसे वहां अकेला छोड़ जाने का मेरा मन नहीं किया। वो काफ़ी जाबाज़ी से उनसे लड़ रहा था। मगर तभी दो बदमाश अपने हाथ में छुरा लिए मेरी ओर बढ़ने लगे। और तब ना चाहते हुए भी मुझे आर्या को छोड़कर वहां से भागना पड़ा।
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं किस ओर जा रही थी। डर के मारे मेरे हाथ-पैर फुल रहे थे। मेरा पूरा शरीर डर से कांप रहा था। मगर इसके बावजूद किसी तरह मैं जान बचाकर भागे जा रही थी । भागते वक्त मैं बस यहीं दुआ कर रही थी, 'भगवान करे मुझे कोई ऐसा मिल जाए जो हमारी मदद कर पाए।' तब अचानक मुझे चंद्र की वो बाते याद आई । और अगले ही पल अचानक मेरे मुंह से चंद्र का नाम निकल गया। एकाएक मैं अनजाने में चंद्र को पुकारने लगी।
और, महादेव का शुक्र है कि अगले ही पल चंद्र मेरे सामने खड़ा था ।
चंद्र ने आते ही मुझ पर हमला करने आए गुड्डों को मार भगाया । साथ ही उन सभी बदमाशों को अच्छा सबक सिखाया, जो मुझे और आर्या को मारने आए थे । चंद्र की अद्भुत शक्तियों के आगे कोई भी बदमाश नहीं टिक पाया।
आज सिर्फ़ चंद्र की वजह से हम दोनों की जान बच पाई थी। मैं आर्या को वहां अकेला उस हालत में नहीं छोड़ सकती थी। इसलिए मेरे कहने पर चंद्र उसे घर ले आया । लेकिन घर पहुंचने के बाद भी मैं हम पर हुए इस हमले को लेकर काफी परेशान थी। ऐसे में चंद्र ही था जिसने फिर मुझमें हौसला जगाया । उसके बाद खुदको संभालते हुए मैंने आर्या के जख्मों को साफ़ कर उसकी पट्टी की और अपने रोज़ के काम ख़त्म किए ।
चंद्र के साथ होने से काफ़ी चीजों को संभालना मेरे लिए आसान हो गया और धीरे-धीरे मैं साधारण स्थिति में आने लगी। चंद्र के वापस आते ही हमने तरंग और उसके भाई की अधूरी छोड़ी कहानी को आगे बढ़ाया। मगर तभी अचानक हमने देखा कि आर्या को ठंड लग रही थी और उसे कंबल की ज़रूरत थी। इसलिए कहानी के बीच में उठकर मैं किचन का सामान रखकर ऊपर अपने कमरे में आर्या के लिए कंबल लेने पहुंची।
मगर जैसे ही मैंने कमरे के अंदर पैर रखा मैंने एक अजीब सी घूटन महसूस की। मुझे अंदर जाते समय घबराहट हो रही थी। मगर फिर भी हिम्मत कर मैं अंदर गई और अलमारी से कंबल निकाला, जो दरवाज़े के बिल्कुल सामने कमरे के अंखिर में थी। पर तभी अचानक मैंने अपने पीछे एक ठंडी हवा का झोंका मेहसूस किया, जैसे मेरी रीड की हड्डी जम सी गई हो। तब अगले ही पल मैंने मुड़कर खिड़की की ओर देखा । मगर कमरे की खिड़की बंद पाते ही मेरी धड़कने तेज हो गई। मुझे किसी अंजान डर के साए ने घेर लिया। डर के मारे मैंने तेज़ी से अपने कदम उठाए और कमरे से बाहर जाने की कोशिश की। मगर तभी अचानक मैंने अपने पैरों को जकड़ा हुआ पाया। और सर झुका कर देखते ही खौफ के मारे मेरा पूरा शरीर सुन्न पड़ गया।
सर झुकाते ही मुझे दो भयानक लंबे काले हाथ दिखाई दिए। कमरे के फर्श से निकले हुए उन डरावने ज़हरीले-लंबे नाखून से भरे पंजों ने मेरे दोनों पैरों को जकड़ रखा था। इस डरावने दृश्य को देखते ही मैंने चिल्लाना चाहा। मगर मेरी आवाज़ मेरे मुंह में ही अटक कर रह गई। मगर ये खौफनाक मंज़र यहां नहीं रुका। अगले ही पल उसी किस्म के दूसरे दो हाथ मेरे शरीर के इर्दगिर्द लिपट गए। धिरे-धिरे उन सभी हाथों की पकड़ मुझ पर कसती जा रही थी और वो मुझे पीछे घसीटने लगे। खुदको इस भयंकर हालत में फंसा पाकर काफ़ी मुश्किल से अपनी हिम्मत को इक्कठा कर एक बार फ़िर मैंने चिल्लाने की कोशिश की। मगर उसी वक्त अचानक मैंने अपनी सांसे बंध होती महसूस की, जैसे कोई मेरा गला दबा रहा था।

Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें