Chapter 21 - Chandra ( part 1)

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  • इन्हें समर्पित: user857185
                                    

हेल्लो दोस्तों, शुरू करने से पेहले देरी के लिए माफ़ी चाहती हूं । साथ ही समय की कमी होने के बावजूद इस बार भी मैंने हमेशा की तरह अपना पूरा मन लगाकर इस चैप्टर को लिखा है । लेकिन इसके बावजूद कोई कमी हो तो संभल लीजिएगा । और अपने कमल के बिल्कुल मत एक्स्पीरियंस बांटना ना भूलें । मेरे लिए आपके वोट और कॉमेंट हमेशा कीमती रहेंगे ।
आपकी, बि. तळेकर ♥️
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सोमवार सुबह 2 : 30 बजे ।
पलक मेरी नज़रों के सामने थी । मगर फ़िर भी मैं उसे लेकर काफ़ी परेशान था । अपने बिस्तर पर नर्म मुलायम कंबल ओढ़ कर लेटे हुए पलक बिल्कुल चैन से अपनी निंद में खोई थी । उसके मासूम चेहरे पर अब कोई डर या चिंता नहीं थी । लेकिन उसके बारे में सोचकर मैं काफ़ी बेचैन था ।
कल दोपहर पलक को इतना डरा हुआ और परेशान देखकर मुझे उसकी फ़िक्र होने लगी थी । मैंने कई हफ़्तों तक पलक को परेशान होकर घूटन के साथ जीते देखा था । लेकिन जब वो अपने अतित से ऊबरने की कोशिश कर रही थी तभी मुझे ये क्या हो गया था !? मैं ऐसी हरक़त क्यूं कर बैठा !? ये मैं ख़ुद नहीं समझ पा रहा था ।
"आई'एम सॉरी, पलक । मैं तुम्हें.. डराना नहीं चाहता था ।" पलक के मासूम से चेहरे की ओर देखते हुए, "लेकिन जब उसने दूसरी बार तुम्हारा हाथ पकड़ा तो मैं ख़ुद को नहीं रोक पाया । मगर मेरा गुस्सा कहीं तुम्हें कोई नुकसान ना पहुंचा दे यहीं सोचकर मैं कुछ समय के लिए तुमसे दूर हो गया ।" मैं ख़ुद को ये कहने से नहीं रोक पाया । मगर मेरी गुस्फुसाहट पलक के कानों तक नहीं पहुंच पाई । जो उसके लिए ठीक था ।
उस घमंडी राजकुमारी के रहते पलक पेहले ही बहोत बड़े ख़तरे में थी । और ऊपर से मेरा अचानक इस तरह का सुलूक करना बिल्कुल सही नहीं था । मगर क्यूं मैं उस वक़्त अपने जज़्बात काबू नहीं कर पाया ? आर्या एक अच्छा लड़का था । और मुझे तो ख़ुश होना चाहिए था कि, पलक धीरे-धीरे अपनी ज़िंदगी की ओर लौट रही थी । पर फ़िर भी नज़ाने क्यों मैं पलक को उस आर्या के साथ नहीं देख पाया ? और अपने आवेस में आकर मैं जाने-अंजाने में पलक को सज़ा दे बैठा । जिसका अफ़सोस मुझे सताये जा रहा था ।
मगर पलक ? वो आज इस तरह का बर्ताव क्यूं कर रही थी ?! जबकि वो अब मेरी मौजूदगी से अच्छी तरह वाक़िफ हो चुकी थी । कहीं पलक के डर की वजह राजकुमारी का काला साया तो नहीं था ? मगर उस वक़्त राजकुमारी की रूह पलक के आसपास मौजूद नहीं थी । उस वक़्त मैंने पूरी जगह की जांच अच्छे से की थी । और उस समय महल में हमारे सिवा कोई मौजूद नहीं था । मगर फ़िर भी किसी वजह ने पलक को परेशान कर दिया था । शायद.. उस मनहूस रूह के आसपास ना होने के बावजूद भी ये महल पलक के लिए असुरक्षित था । शायद मरने के बाद भी राजकुमारी नैनावती का प्रभाव आज तक इस महल के दरो-दीवार पर कायम है । शायद यही कारण था कि, मेरे साथ ना होने से यहां का ये तंग दिल माहौल पलक पर हावी हो गया । और अगर ये सच है तो अकेलेपन में उस शैतानी साये का असर पलक के दिमाग़ पर हो सकता था । जो मैं हरगिज़ नहीं चाहता था ।
सुबह 7 : 00 बजे ।
मैं पूरी रात पलक के सामने बैठा रहा । मगर सुबह होने पर जैसे ही पलक की निंद खुलने वाली थी मैं वहां से अदृश्य हो गया । ताकि पलक ये ना जान पाए कि मैं उसकी निगरानी में पूरी रात वहीं तैनात था ।
पलक को अपना समय देते ही मैं उस से दूर चला गया । और इसी दौरान मैं महल के उस कमरे में जा पहुंचा जहां से मेरी ये कहानी शुरू हुई थी । या यूं कहूं कि मेरी कहानी का अंत हो गया था ।
कई वर्षों बाद आज एक बार फ़िर मैं उसी कमरे में लौटा था जहां कभी मैं अपने दोस्तों के साथ रूका था । इस मशहूर नयन तारा महल का वहीं बदनाम कमरा जो आलीशान होकर भी लोगों को कभी आसरा नहीं दे पाया । कमरे में दरवाज़े के सामने पड़ा वहीं नर्म-मुलायम पलंग जो आरामदायक होने के बावजूद उस रात मुझे एक अच्छी निंद नहीं दे पाया । और पलंग की दूसरी ओर बनी वहीं नक्काशीदार खिड़कियां जिसके दरवाज़े खुले होने के बावजूद मुझे कभी चैन की सांस नहीं दे पाई ।
उस कमरे में जाते ही मैं अपने अतीत के सायों में डूबता चला गया । इसी दौरान मैंने अपने सामान को उसी बिस्तर पर पड़ा पाया जहां मैंने उसे आंखारी बार छोड़ा था । बिस्तर पर पड़े अपने सामान और बैग को देखते ही मेरी पुरानी यादें ज़िंदा हो उठी, जिसे मैं आज तक भूला बैठा था । जिसे देखकर मुझे अंजानी ख़ुशी और साथ ही तेज़ कसक मेहसूस हो रही थी ।
तब बिस्तर पर पड़े अपने सामान को देखते ही मैं सुस्त गति से उसके पास पहुंचा । और मैंने धीरे से अपनी बैग उठाई । तभी उसमें से मेरी डायरी सरक कर पलंग पर गिर पड़ी । ये मेरी वहीं साथी थी जो मुझे ख़ुद को समझने का मौक़ा देती थी । जब भी मैं कोई बात लोगों को नहीं कहे पाता तब मैं उस बात को अपनी डायरी में उतार लेता । और सच कहूं तो विदेश में मेरी सबसे करीबी साथी यही थी ।
मरने के बाद मैंने आज तक इस कमरे की तरफ़ मुड़कर नहीं देखा था । शायद मेरे अंदर एक अंजाने खौफ़ ने घर बना लिया था । लेकिन पता नहीं आज अचानक ऐसा क्या हुआ कि मेरा मन मुझे यहां खींच लाया । शायद मरने के बाद आज पेहली बार मैंने ऐसे इंसानी जज़्बात को मेहसूस किया था, जो मैं किसी को नहीं कहे सकता था । और यही वजह थी कि मुझे अपनी डायरी की ज़रूरत मेहसूस हुई ।
तब अगले ही पल अपने हाथों में डायरी उठाकर पन्ने पलटते ही उस डायरी के पिछले कोरे पन्नों पर मेरे जज़्बात लब्ज़ो का रूप लेकर खिल उठे । जिन्हें पढ़ते ही मेरे होठों पर सुकून भरी मुस्कान उभर आई । मगर तभी अचानक मुझे एक अजीब सी घुटन महसूस हुई और मैंने अपना सर उठाकर सामने की ओर देखा ।
इससे पेहले कि मैं कुछ कहता, "क्यों लड़के, मरने के बाद आज भी हमारा खौफ तुम्हें जकड़े हुए है ?" उस शैतानी साये ने अपनी घमंड के साथ कहा । उसकी खौफ़नाक हरी आंखें मुझे ही घूर रही थी । मगर मैं बिल्कुल शांत रहेकर सावधानी से उसे देख रहा था ।
"किंतु मानना होगा । उस मामूली दुबली-पतली लड़की को बचाने के लिए तुमने काफ़ी हिम्मत दिखाई । एक साधारण रूह होकर भी मुझ जैसी राजकुमारी के इरादे नष्ठ कर दिए !" अपनी ज़हरिली मुस्कान के बीच, "तुम्हें क्या लगता है नासमझ लड़के कि तुमने उसे बचाया !? नहीं, मैंने उसे जाने दिया । वो लड़की तो ज़रूर मारेगी । लेकिन.. सही वक़्त आने पर । और तब तक अगर उसे बचा सकते हो तो बचा लो ।" उस मनहूस साये ने अचानक चिड़ते हुए मुझे चुनौती दी ।
"इस बार नहीं ।" पलक को लेकर इतनी बेरहम बाते सुनते ही, "बहोत हो चुका तुम्हारा ये घिनौना खेल । मैं तुम्हें कभी कामयाब नहीं होने दूंगा ।" मैं तिलमिला उठा ।
"देखते हैं लड़के । कौन जीतेगा, हम या तुम्हारा ये खोखला गुरूर ?!" उस शैतानी शक्ल वाली आत्मा ने अपनी कठोर आवाज़ में मुझे चुनौती दी । इतना कहते ही वो डरावने क़िस्म से मुझे घूरते हुए मेरी ओर झपट पड़ी । मगर मुझ तक पहुंचते ही वो हवा में गायब हो गई । और एक पल के मैं हैरान होकर उसे खोजता रह गया ।
उस साये के जाते ही मैं सब कुछ वहीं छोड़कर उस कमरे से बाहर चला आया । और आँखरी बार सर उठाकर उस कमरे को पहेली नूमा नज़रों से देखते ही मैं नीचे लौट आया ।
नैनावती की मायावी बातों को लेकर मैं काफ़ी परेशान था । लेकिन मैंने अपनी परेशानी को पलक के सामने नहीं आने दिया । मुझसे मिलते ही पलक सही समय पर अपनी ऑफिस के लिए निकल गई । और उसके जाते ही मैं महल के छत पर जा पहुंचा । जहां से हो सके इतनी दूर तक मेरी फिक्रमंद नज़रे पलक को देखती रही ।
कल दोपहर पलक के साथ किए अपने सुलूक से मैं ख़ुद से काफ़ी नाराज़ था । मैं पलक के ख़ुशी की रुकावट हरगिज़ नहीं बनना चाहता था । उल्टा मैं.. मैं तो ख़ुद पलक को ख़ुश देखना चाहता था । पर इसके बावजूद अपने बदले हुए मिजाज़ से मैं काफ़ी असमंजस में था । इसलिए मैंने ये फैसला किया कि, आगे से चाहे पलक किसी के भी साथ हो । मुझे अच्छा लगे या ना लगे । मगर मैं कभी अपने जज़्बात ज़ाहिर नहीं होने दूंगा । और हमेशा पलक का साथ दूंगा ।
शाम 6 : 30 बजे ।
आज सुबह फ़िर एक बार अपने डरावने अतीत से सामना करने के बाद मेरा मन काफ़ी अशांत था । पलक को लेकर अपने मन में उठ रहे इन अंजाने से जज़्बात को लेकर मैं पहले ही कशमकश में फंसा था । लेकिन इस महल के सबसे मनहूस रहस्य से फ़िर सामना होते ही मैं बेचैन हो गया था ।
राजकुमारी नैनावती का काला साया पलक पर पड़ चुका था । उसकी दी गई चुनौती को लेकर मुझे पलक की और भी ज़्यादा चिंता होने लगी थी । तब इसी बीच मेरा ध्यान ढलते सूरज की और गया ।
आज काफ़ी देर हो गई थी । आकाश में हल्का अंधेरा छाने लगा था । लेकिन अभी तक पलक के वापस लौटने की आसार नज़र नहीं आ रही थे । पलक को घर लौटने में कुछ ज़्यादा ही देर हो गई थी । जिस वजह से मुझे उसकी फ़िक्र होने लगी । उसके बारे में सोचते मेरा मन अचानक काफ़ी बेचैन हो गया और इसी बीच मैंने पलक की चीख सुनी । और अगले ही पल मैंने बिना कुछ सोचे उसे ढूंढने निकल पड़ा ।
महल से अदृश्य होते ही मैंने खुदको पलक की ऑफिस में पाया । मगर वो वहां नहीं थी । और मैं परेशान होकर लोगों के बीच से यहां-वहां गुजरते हुए उसे खोज रहा था । इसी दौरान मैंने किसी लड़की से सुना कि वो तीनों अपने प्रोजेक्ट की थीम पर रिसर्च करने कार्ट रोड़ गए हैं । और इतना सुनते ही मैं तुरंत कार्ट रोड़ जा पहुंचा ।
मैं रास्ते के बीचों-बीच खड़ा था । और मेरे चारों ओर लंबी ढलान नुमा सड़के, छोटी बड़ी बहोत सारी इमारतें और चारों तरफ़ शेलानियों और स्थानीय लोगों की भीड़ लगी हुई थी । और अपने आसपास के नज़रे को देखकर मैं गहरी सोच में पड़ गया ।
मैं यहां आ चुका हूं, पलक । इतनी सारी इमारतों और लोगों के बीच मैं तुम्हें कैसे ढूंढू ?! बस थोड़ी देर और, पलक । डरना मत ।
मैं पलक को लेकर काफी परेशान था । मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं पलक तक कैसे पहोंचू । मैं पलक की सुरक्षा को लेकर बहोत परेशान था और किसी भी तरह उस तक पहुंचना चाहता था । तभी परेशान होकर मैंने अपनी आंखें बंद कर ली और पलक की आवाज़ को सुनने की कोशिश की । तब अचानक फ़िर एक बार मैंने पलक की तड़प भारी पुकार में अपना नाम सुना । और उसे महसूस करते ही मैं अदृश्य हो गया ।
अगले ही पल मैंने ख़ुदको एक संकरी सी गली के बीचों-बीच पाया । और पलक डरकर तेज़ी से भागते हुए मेरे से सामने से आ रही थी । और दो दुबले-पतले सड़क छाप क़िस्म के लड़के हाथों में चाकू पकड़े गुस्से में पलक का पीछा कर रहे थे । और इस नज़ारे को देखकर मेरा गुस्सा भड़क उठा ।
मुझे अपने सामने देखते ही पलक ने अपनी रफ़्तार तेज़ कर ली । वो तेज़ी से भागते हुए मेरे पिछे चली आई और मैंने मुड़कर उसकी ओर देखा । पलक अब मेरे साथ बिल्कुल सुरक्षित थी । और तब अगले ही पल मेरी नज़रे सामने की तरफ़ मुड़ गई । वो दोनों लड़के मुझे नहीं देख सकते थे । लेकिन मेरी गुस्से से भरी नज़रे उन पर पड़ते ही अचानक तेज़ हवाएं चलने लगी और उन दोनों के हाथ के हथियार अपनेआप नीचे गिर गए । और मेरी उंगलियों के हल्के से इशारों पर वो दोनों अचानक ज़मीन पर गिर पड़े और अगले ही पल खड़े होकर ज़ोरदार ढंग से उन संकरी गलियों की दीवारों से जा टकराएं । इस तरह रहस्यम तरीक़े से मार खाते ही वो दोनों बहोत ज़्यादा डर गए और तुरंत भाग खड़े हुए ।
उन बदमाशों के जाते ही मैं झट से पलक के पास पहुंचा । उसके क़रीब जाते ही मैंने ऊपर से नीचे तक पलक को देखते हुए उसकी सलामति का जायज़ा लिया । मेरे नज़दीक आते ही पलक की उम्मीद से भरी नज़रे मुझ पर उठ गई । और उसकी आंखों में आंसू भर आए ।
उसकी आंखों में देखते हुए, "तुम ठिक तो हो ?" मैंने अपना हाथ धीरे से पलक के चेहरे पर रखा ।
"हह..हां मैं ठिक हूं, चंद्र ।" मेरी आंखों में देखते हुए, "ल.. लेकिन आर्या.. आर्या वहां ।" पलक ने डर से कांपते हुए कहा । और कांपते हुए अपना हाथ उठकर गली की दूसरी ओर इशारा किया ।
"मैं उसे देखता हूं ।" पलक को शांत करते हुए मैंने कहा । और इतना केहते ही मैं उस तरफ़ चला गया ।
गली की दूसरी तरफ़ पहुंचते ही मैंने आर्या को बदमाश लड़को से भिड़ते देखा । आर्या पहले ही काफ़ी ज़ख्मी हो चुका था । उसके सीने और कंधे से खून बह रहा था । और फ़िर वो वो दोनों बदमाश लड़के उस पर लगातार वार कर रहे थे । लेकिन आर्या उनके वार का जवाब देते हुए उन्हें कड़ी चुनौती दे रहा था ।
बाकी लोग के साथ आर्या भी मुझे नहीं देख सकते था । लेकिन वो पलक का दोस्त था । और एक अच्छा लड़का था । इसलिए मैं उसे मुसीबत में अकेला नहीं छोड़ सकता था ।
तब आर्या को उन दोनों बदमाशों से जूंझते देखकर मैं दूर उसके पीछे खड़ा रेह गया और जैसे ही उन दो लड़कों ने आर्या पर अपने चाकू और डंडे से वार करना चाहा ठिक उसी वक़्त अपने हाथ दोनों तरफ़ फैलाते ही वहां तेज़ तूफ़ानी हवाएं चलने लगी । और तेज़ी से आगे बढ़ते हुए मैंने अपनी शक्तियों से उन दोनों बदमाशों पर वार कर दिया । जिससे वो कई बार अचानक ज़मीन पर गिर पड़े और तेज़ हवाओं के झोंके से दीवार से जा टकराएं । इसके अगले ही पल किसी अजीब ताक़त का आभास होते ही वो दोनों बदमाश लड़के भीगी बिल्ली की तरह भाग खड़े हुए ।
लेकिन आर्या खून बहने से काफ़ी कमज़ोर हो चुका था । जिस कारण वो लड़ाई के दौरान बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ा ।
"चंद्र ?" तभी अचानक पिछे से आते ही पलक ने मुझे आवाज़ दी । "क्या हुआ आर्या को ?" और हमारे आसपास का उजाड़ नज़ारा देखते ही वो परेशान होकर तेज़ी से हमारे पास आ पहोंची ।
आर्या के पास अपने घटनों को मोड़कर बैठते ही पलक ने सावधानी से उसके सर को अपनी बाहों में उठाया । और काफ़ी एहतियात के साथ उसके ज़ख्मों की जांच की ।
"वो ठीक है । थोड़ा ज़्यादा खून बहने से कमज़ोरी है । इसलिए बेहोश हो गया ।" मैंने उन दोनों के क़रीब जाते ही धीरे से कहा ।
"तो अब ?" सर उठाकर मेरी तरफ़ देखते ही, "हमें क्या करना चाहिए ? हम आर्या को यहां अकेला नहीं छोड़ सकते ।" पलक से परेशान होकर सवाल किया ।
"आर्या को आराम की ज़रूरत है ।" पलक की ओर देखते ही, "और हमारा यहां ज़्यादा समय रुकना ठिक नहीं । हमें जल्दी यहां से निकलना चाहिए ।" मैंने दृढ़ता से कहा और अपनी नज़रे आर्या की ओर घुमाई ।
"लेकिन आर्या ?" पलक ने परेशान होकर कहा ।
"हमें उसे भी महल ले जाना होगा ।" मेरे कहते ही पलक की हैरत से भरी नज़रे मुझ पर उठ गई । "तुम बस उसे ऐसे ही पकड़े रखों । और अपनी आंखें बंद करो ।" और मैंने पलक के अनकहे सवाल का जवाब देते हुए कहा ।
मेरे कहते ही पलक ने बिना किसी सवाल के अपनी आंखें मूंद ली । और उसी पल मेरी जादूई ताक़त की वजह से हम तीनों उस जगह से अदृश्य हो गए । और कुछ पलों बाद जैसे ही पलक ने अपनी आंखें खोली उसके ख़ुद को नयन तारा महल में सोफ़ा पर एक तरफ़ बैठा पाया । आर्या का सर उसकी गोद में था, जो सोफ़ा पर ज़ख्मी हालत में बेहोश पड़ा था ।
"चंद्र ?" अपनी आंखें खोलते ही पलक ने हैरान और परेशान होकर अपनी और आर्या की तरफ़ देखा । और परेशान होकर मुझे आवाज़ दी । और अगले ही पल मैं उसके सामने प्रगट हो गया ।
तभी पलक ने हैरान और परेशान होकर अपनी और आर्या की तरफ़ देखा । और आहिस्ता से खड़े होते ही उसने आर्या को सोफ़ा पर सावधानी से लेटाया ।
रात 9 : 00 बजे ।
हमें घर लौटे काफ़ी समय बीत चुका था । शावर लेने के बाद अब पलक पेहले से बेहतर महसूस कर रही थी । और उसने आर्या के ज़ख्मों को साफ़ कर उसकी ड्रेसिंग कर दी । जिस वजह से अब उसके ज़ख्मों से खून बहना बंद हो चुका था । उसकी हालत पेहले से काफ़ी बेहतर थी । लेकिन अब तक उसे होश नहीं आया था ।
पलक और उसके दोस्त उन बदमाशों को काफ़ी पीछे छोड़ आए थे । और दोनों बिल्कुल सही-सलामत थे । मगर इस हादसे का डर अभी पलक को घेरे हुए था । वो इस हादसे को लेकर काफी परेशान थी । हम जब से वापस लौटे थे तब से पलक ने अब तक एक और शब्द नहीं कहा था । और ख़ामोशी से अपने काम ख़त्म करने के बाद भी वो काफ़ी देर से बिल्कुल चुपचाप हॉल में सोफ़ा पर बैठी थी ।
तभी उसके सामने गर्म चाय का कप पेश करते हुए, "क्या तुम मुझे बताओगी वहां क्या हुआ था ?" मैंने उससे बात करने की कोशिश की । "वो लोग तुम्हारे पीछे क्यों पड़े थे ?"
मेरी आवाज़ सुनते ही पलक ने इमोशनल होकर मेरी ओर देखकर हामी भरी, "वो सभी लोग क्रिमिनल्स थे ।" और धीरे से अपना हाथ बढ़ाते हुए उसने चाय का कप उठा लिया ।
"हम तीनों हमारी मैगज़ीन के अगले इश्यू के टॉपिक खोजबीन करने वहां गए थे ।" मेरे उसके पास सोफ़ा पर बैठते ही पलक ने मुड़कर मेरी तरफ़ देखा, "हमें मिली जानकारी के मुताबिक उस जगह शराब, ड्रग्स और जुए का बड़ा रैकेट चल रहा था । जिसमें बड़े क्रिमिनल्स वहां के स्थानीय युवाओं को थोड़े से पैसे देकर उनसे गैरकानूनी काम करवाते । उनका इस्तेमाल अपना काम करवाते थे । लेकिन जब हम वहां पहुंचे तो हमने उन सबसे बात की । तब हमें पता चला कि ये काम उन्हें धोखे में रख कर करवाया जा रहा है । काम शुरू करते वक़्त उन्हें कहां गया था कि ये सब बस उन्हें परखने के लिए करवाया जा रहा है । अगर वो इस तरह का काम कर पाए तो उन्हें बड़ी फैक्ट्री में काम करने के लिए चुन लिया जाएगा । जिसके उन्हें अच्छे पैसे मिलेंगे । और इसी भ्रम में वो सभी मासूम लोग कई सालों से गैरकानूनी काम करते रहे । मगर हमने उनसे बात की और इस झूठ का खुलासा किया । जिससे कुछ लोग इस काम को छोड़ने के लिए मान गए । लेकिन किसी तरह उन बदमाशों को इस बारे में पता चल गया । और उन्होंने हमें रोकने के लिए हमारे पिछे गुंड्डो को लगा दिया ।" और पूरी घटना के बारे में बताया । "लेकिन शुक्र है कि तुम सही वक़्त पर वहां आ पहुंचे ।" और इतना कहते ही उसने राहत की सांस ली ।
पलक की बात सुनते ही, "शुक्र है कि तुम्हें कुछ नहीं हुआ ।" मैंने भगवान का शुक्रियाअदा किया । "मैंने तुमसे कहा था, पलक । ये काम बहोत ख़तरनाक है । मैं तुम्हें ये करने से नहीं रोकूंगा । लेकिन तुम्हें वादा करना होगा कि आगे से तुम और भी सावधान रहोगी ।" और उसकी फ़िक्र करते हुए कहा ।
"मैं वादा करती हूं, चंद्र । और मुझे पूरा विश्वास तुम्हारे होते हुए मुझे कुछ नहीं हो सकता ।" पलक ने मेरी तरफ़ देख भरोसे के कहा । और उसके उन शब्दों ने मुझे जज़्बाती कर दिया ।
नहीं पलक मुझ पर इतना भरोसा मत करो । मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सकता । मेरे साथ जुड़कर तुम्हें सिवाय अकेलेपन के और कुछ नहीं मिलेगा । और ऐसी वीरान ज़िंदगी हकदार नहीं हो ।
"क्या हुआ, चंद्र ?" अपनी गहरी सोच के बीच अचानक मैंने पलक की आवाज़ सुनी ।
"नहीं मैं बस तुम्हारी उस दोस्त के बारे में सोच रहा था । तुम तीनों साथ गए थे तो वो कहां पर है ?" मैंने बात को पलटते हुए अपनी कशमकश को छुपा लिया ।
"हा, लेकिन किसी मेडिकल एमरजेंसी के कारण उसे घर लौटना पड़ा । उसकी किसी दोस्त का एक्सिडेंट हो गया है ।" पलक ने जवाब देते हुए कहा ।
"उसकी क़िस्मत अच्छी थी ।" मैंने धीरे से कहा ।
"हां ।" पलक ने सहमत होते ही, "चंद्र क्या हम कहानी शुरू कर सकते हैं ?" धीरे से सवाल किया ।
"क्या तुम सच में ठीक हो ? मेरे ख़्याल से तुम्हें आज आराम करना चाहिए ।" मैंने फ़िक्र करते हुए कहा ।
"मैं बिल्कुल ठीक हूं, चंद्र ।" आर्या की झलक लेते ही, "वैसे भी हम आर्या को अकेला नहीं छोड़ सकते । और अगर मुझे यहां बैठना ही है तो अच्छा ही होगा कि तुम्हारी कहानी सुनती रहूं ।" पलक ने मुझे यक़ीन दिलाते हुए कहा । और उसके होठों पर बिल्कुल फिकी सी मुस्कान उभर आई ।
"ठीक है । जैसा तुम चाहो ।" पलक की ओर देखते ही मैं उसे इंकार नहीं कर पाया ।
"एक मिनट । मेरी डायरी ।" पलक ने मुझे रोकते हुए परेशान होकर कहा और उसी वक़्त अपनी उंगलियां घूमते ही पलक की डायरी मेरे पास आ गई और मैंने उसे पलक को दे दिया ।
तब पैरों को ऊपर लेकर सोफ़ा पर अंदर से बैठते हुए लिखने की पूरी तैयारी के साथ, "अब बताओ चंद्र, उस ऑडियो में ऐसा क्या था जिसे सुनकर तरंग इतना परेशान हो गया ?" पलक ने मेरी तरफ़ देखते ही सवाल किया ।
"तो जैसे ही तरंग ने ऑडियो प्ले किया तो उसे एक लड़की की आवाज़ सुनाई दी । 'तरंग, मैं पूर्वा । इस तरह बात करने के लिए मुझे माफ़ करना । लेकिन मेरे पास इसके सिवा कोई और रास्ता नहीं था । क्योंकि जो मैं तुमसे कहने जा रही हूं वो बहोत ही अजीब और डरावना है । लेकिन यही हकीकत है । अब मैं जो कहने जा रही हूं उसे गौर से सुनना । उस दिन मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रही थी । उस दिन मैं पार्क में सिर्फ़ अपनी दीदी को ढूंढ रही थी । लेकिन जब मैं अपने एस्ट्रल फोर्म में अपनी दीदी को ढूंढ रही थी तभी मैंने उसे देखा । वो हर समय तुम्हारे साथ है । और तुम्हारे सारे मुसीबतों की जड़ वही है । वो हर पल, हर समय, सोते-जागते, उठते-बैठते तुम्हारे साथ है । वो तुम्हारी बात सुन रहा है । तुम्हें हर समय देख रहा है । और सिर्फ़ उसी की वजह से मैं तुमसे खुलकर बात नहीं कर सकती । प्लीज़ आगे से सावधान रहना । और अपनी वीकनेस बोलकर किसी पर ज़ाहिर मत होने देना ।' पूर्वा के इस अजीबोग़रीब वॉइस नोट को सुनकर तरंग काफ़ी परेशान हो गया । उसकी बातों से उसे अजीब सा डर लगने लगा । लेकिन पूर्वा की चेतावनी मानकर वो शांत बना रहा ।" मैंने पिछली बार कहानी जहां अधूरी छोड़ी थी वहीं से मैंने कहानी शुरूआत कर दी ।
"ये कहानी अजीब मोड़ लेने लगी है ।" पलक ने तेज़ी से लिखते हुए मेरी ओर देखकर गंभीरता से कहा ।
"हां । लेकिन तरंग की ज़िंदगी और भी अजीब मोड़ लेने वाली थी । पूर्वा का वॉइस मैसेज सुनने के बाद तरंग काफ़ी परेशान रहना लगा । जबसे उसे पता चला था कि, कोई है जो हर समय उसके साथ घूम रहा है । उसे देख रहा है । तो वो बहोत ही बेचैन रहने लगा । वो काफ़ी चुपचाप और शांत रहने लगा । उसने ज़्यादा बाहर जाना छोड़ दिया और वो हमेशा अपनेआप में खोया हुआ रहता । तरंग अपनी इस परेशानी को लेकर पूर्वा से बात करना चाहता था । लेकिन वो समझ नहीं पा रहा था कि ये बात पूर्वा को कैसे बताएं । इसी तरह दो दिन बीत गए । लेकिन अब तरंग और ज़्यादा इंतज़ार नहीं कर सकता था । इसलिए उसने पूर्वा से बात करने का फ़ैसला किया । तरंग ने पूर्वा को एक लेटर लिखा और उसे कॉलेज के बाद मिलने की गुज़ारिश की । वहीं पूर्वा तरंग की परेशानी समझती थी । इसलिए वो तरंग से मिलने के लिए राज़ी हो गई ।" पलक की बात से सहमत होते हुए, "पूर्वा से मिलते ही, 'तुम मेरे बारे में इतना सब कुछ कैसे जानती हो ? और अगर तुम्हें मेरी परेशानी पता ही है तो अब तुम ही बताओ मुझे क्या करना चाहिए ?' तरंग ने अपनी सारी उलझन दबे हुए शब्दों में सामने रख दी । लेकिन पूर्वा समझ नहीं पा रही थी कि, वो तरंग को उसके सवालों के जवाब कैसे दे । तभी गहरी सोच के साथ अचानक पूर्वा तरंग के बिल्कुल क़रीब आ गई । उसने हल्के से तरंग को गले लगाया और 'तुम्हारे सवाल के जवाब तुम्हें मिल जाएंगे । जब मैं तुम्हें कॉल करू तब फ़ोन सिर्फ़ इयरफोन लगाकर उठाना ।' बिल्कुल धीमी आवाज़ में फुसफुसाते हुए उसने तरंग के कान में कहा ।" मैंने कहानी जारी रखी ।
तभी अचानक आर्या में थोड़ी हलचल देखकर मैं शांत हो गया । उसी पल पलक ने भी नज़रें घुमा कर उसकी तरफ देखा । लेकिन आर्या फ़िर स्थिर हो गया ।
"बताओ ना चंद्र आगे क्या हुआ ? पूर्वा ऐसा बर्ताव क्यों कर रही थी ?" मेरी ओर मुड़ते ही पलक ने उम्मीद के साथ सवाल किया ।
"अच्छा । उसी शाम जैसा कि पूर्वा ने उसने तरंग को कॉल किया । और पूर्वा की तेचावनी पर गौर करते हुए तरंग ने वो कॉल इयरफोन लगाकर उठाया । 'तरंग, प्लीज़ परेशान होकर कुछ भी ऐसा मत कह देना जिससे तुम्हारी तकलीफें और बढ़ जाए । पहले मेरी बात ध्यान से सुन लो ।' फ़ोन उठाते ही पूर्वा ने तुरंत कहा और तरंग उसकी बात सुनकर शांत हो गया । ' तरंग, मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहती । लेकिन मैं तुम्हारी परेशानी समझती हूं । क्योंकि मैंने उसे तुम्हारे साथ देखा है । मुझे नहीं पता कि वो तुम्हारे साथ कब और कैसे जुड़ा । लेकिन वो हर वक़्त तुम्हारे साथ है । तुम्हारा शरीर कमज़ोर इसलिए बना रहा क्योंकि वो एक साथ दो आत्माओं का बोझ उठा रहा है । वो तुम्हारी ताक़त सोख रहा है । जिस वजह से तुम्हें हमेशा कमज़ोरी महसूस होती है । तुम्हारे पूरे शरीर में दर्द रहता है । ख़ास तौर पर तुम्हारी गर्दन, कंधे और पीठ में । क्योंकि वो हमेशा तुम्हारे कंधों पर सवार रहता है ।' पूर्वा के गंभीरता से कहे इन शब्दों को सुनते ही तरंग का दिल सिहर उठा । वो समझ ही नहीं पा रहा था कि पूर्वा ये सब क्या बोले जा रही थी । 'क्या तुम जानती भी हो तुम क्या बोल रही हो ? और तुम ये निश्चित तौर पर कैसे कह सकती हो ?' तरंग पूर्वा की बात बातों से शत्ते में आ गया और वो ये सवाल करने से नहीं रूक पाया । 'हां, मैं यक़ीन इस बात से अच्छी तरह वाक़िफ हूं । क्योंकि मैंने उसे देखा है । उसकी शक्ल काफ़ी हद तक तुम्हारी ही तरह है । लेकिन कई गुना डरावनी और ख़तरनाक । उसका रंग बिल्कुल फ़िका है । काले-भेरे बिखरे बालों के साथ उसकी बड़ी सी लाल आंखें है, जिनके इरदगिर्द बड़े काले गड्ढें है । उसकी मांशपेशियां ना के बराबर बिल्कुल सिकुड़ी हुई तो हड्डियों के जोड़ सूजे हुए है । छोटे काले लबादे के बीच से निकले औसत आकर से बड़े उसके हाथ- पैरों ने तुम्हें गर्दन से लेकर कमर तक जकड़े रखा है । और उसकी लंबी-पतली उंगलियां हमेशा एक-दूसरे में कसी हुई है ।' पूर्वा ने जवाब देते हुए डर से कांपते हुए पर निश्चित तौर पर धीरे से कहा । और अपने बारे में पूर्वा से इस क़िस्म की डरावनी बाते सुनकर तरंग बहोत ज़्यादा परेशान हो उठा । लेकिन उसे पूर्वा की बातों पर पूरा विश्वास हो चुका था । और उसे ये भी यक़ीन हो गया था कि पूर्वा ही इस मुसीबत से उसे छुटकारा पाने में मदद कर सकती थी । तब एक दिन उनकी कॉलेज बस शुरू ही हुई थी । और उनके प्रोफ़ेसर ने उन दोनों साथ बैठने के लिए कहकर उन्हें एक साथ एक प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए कहा । इसी दौरान अपने प्रोजेक्ट पर काम करते हुए, 'पूर्वा, अपनी गुस्ताख़ियों के लिए माफ़ कर देना । तुम तो मेरे बारे में सब जानती ही हो । मगर शायद तुम ये नहीं जानती कि काभिकाभर इंसान की जिंदगी में ऐसा भी वक़्त अता है जब वो बेहद लाचार, दुःखी और निराश हो जाता है । और मेरे लिए भी ये वक़्त कुछ ऐसा ही है । जिससे सिर्फ़ तुम मुझे बाहर निकाल सकती हो ।' तरंग ने धीमे से कहा । और तभी 'मैं समझती हूं । लेकिन मुझे माफ़ करना । इस वक़्त मैं अपनी दीदी को लेकर बहोत परेशान ।' पूर्वा ने सीधा इंकार करते ही चुपके से तरंग का हाथ अपने हाथों में लिया । और तरंग के हाथ की हथेली पर, 'कल दोपहर 1 : 00 बजे शहेर के बड़े काल भैरव मंदिर में मिलना । लेकिन ध्यान रखना उसे पहले से इस बात का पता ना चले ।' लिखते हुए पूर्वा बड़ी ही होशियारी से ये संदेश उस तक पहुंचा दिया । हालांकि तरंग भगवान में विश्वास नहीं करता था । वो एक नास्तिक था । लेकिन इसके बावजूद अगले दिन पूर्वा के बुलाने पर तरंग काल भैरव मंदिर जा पहुंचा । पूर्वा मंदिर के बड़े से ख़ूबसूरत और सुकून देह परांगण में खेड़े होकर पेहले ही तरंग का इंतजार कर रही थी । और उसके पास पहुंचते ही, 'तुमने मुझे यहां क्यूं बुलाया ?' तरंग ने बढ़ी हुई सासों के बीच परेशान होकर सवाल किया । 'तुम्हारे सवालों का जवाब देने । इस पवित्र जगह पर हम बिना डरे खुलकर बात कर सकते हैं । बाबा काल भैरव के सामने वो तुम्हें यहां नुक़सान नहीं पहुंचा सकता ।' पूर्वा ने निश्चित होकर कहा और तरंग को इस बात से थोड़ी राहत मिली । और उसके बाद पूर्वा ने उसे अपने और वाणी के बारे में बताते हुए तरंग को लेकर भी काफ़ी हैरतअंगेज पहलू उजागर किए । पूर्वा ने बताया कि, 'वाणी बचपन से ही ख़ास शक्तियों के साथ जन्मी थी । उसके पास ऐसी शक्ति थी जिस वजह से वो दोनों दुनियाओं के बीच सफ़र कर सकती थी । शी कैन दू एस्ट्रो ट्रावेल । वो कई बार नींद में दूसरी दुनियां में चली जाती और अगले दिन सुबह वो मुझे अपने सफ़र की कहानियां सुनाती । उस वक़्त मैं छोटी थी और ये सब समझ नहीं पाई । उस वक़्त मुझे दीदी की बाते सिर्फ़ कहानियां लगती । फ़िर एक हम दोनों पार्क में खेल रहे थे । जब खेलते हुए वाणी दीदी मुझे बचाने के लिए कार के सामने कूद पड़ी । उस दिन मैं तो बच गई लेकिन उन्हें सर पर काफ़ी गहरी चोटें आई । सब उन्हें वहां से उठाकर हॉस्पिटल ले गए । लेकिन कई घंटो उन्हें होश नहीं आया । और वो घंटे सालों में बदल गए । 'और तुम्हें लगता है कि तुम्हारी दीदी उस दूसरी दुनियां में भटक गई है ।' तरंग ने पूर्वा की बात पर गौर करते हुए कहा । और पूर्वा ने हामी भरी । 'लेकिन तुमने ही कहा कि तुम्हारी दीदी में ऐसी शक्ति है कि वो दोनों दुनियाओं के सफ़र कर सकती है । तो फ़िर वो लौटी क्यूं नहीं ?' तरंग पूर्वा के बातों की गहराई नहीं समझ पाया । 'क्योंकि वो दूसरी दुनियां आत्माओं की दुनियां है । मेरी दीदी वापस घर लौटने का रास्ता भटक गई है या फ़िर किसी चीज़ ने उसे वहां क़ैद कर दिया है ।' पूर्वा ने परेशान होकर कहा । 'मगर तुम्हें मेरे बारे में कैसे पता चला ?!' तरंग पूर्वा को लेकर अब भी हैरान था । 'अपने तरीक़े से रिसर्च करने पर मुझे दीदी के इस कंडीशन के बारे में मालूम पड़ा और फ़िर मैंने भी एस्ट्रो ट्रावेल के बारे में जानकारी इकट्ठा की । मैंने कई बार इसका रियास किया । और फ़िर मैंने कई जगह जाकर अपनी दीदी को तलाश करना शुरू किया । उस दिन भी मैं अपनी दीदी को ढूंढ़ने निकली थी जब मैंने तुम्हें पेहली बार देखा ।' पूर्वा ने सारी हकीक़त बताते हुए कहा । 'और तुम उसे भी देख पाई क्यूंकि तुम अपनी एस्ट्रो बॉडी में थी । लेकिन अब जब वो ये बात जान गया होगा तो वो मुझे नुकसान पहुंचाने की ज़रूर कोशिश करेगा । तुम मुझे यहां तो ले आई । मगर यहां से बाहर जाने के बाद क्या ?' अब तरंग धीरे-धीरे इन बातों को समझने लगा था । और उसे इस बात की फ़िक्र होने लगी थी । 'चलो मेरे साथ ।' पूर्वा ने तरंग का हाथ पकड़ते ही उसे मंदिर के अंदर ले जाना चाहा । लेकिन मंदिर की सीढ़ी पर पैर रखते ही तरंग के सर में बहोत तेज़ दर्द शुरू हो गया । उसके चेहरे से पसीना बहने लगा और उसके हाथ-पैर कमज़ोरी के कारण पत्ते की तरह कांपने लगे । 'तुम्हारी आत्मा की शक्ति इस शरीर को यहां तक ले आई । लेकिन बस । अब मैं तुम्हें इससे आगे नहीं बढ़ने दूंगा । ये तो बस एक छोटी सी झलक है । बहोत जल्द इस शरीर पर सिर्फ़ मेरा अधिकार होगा ।' तरंग के ज़ेहन में एक भयानक आवाज़ ने गहरे आक्रोश और गुस्से से कहा । इसी बीच पूर्वा ने उसे संभालते हुए वहां बनी बेंच पर बिठाया । और भागकर मंदिर से मौली (लाल-पीला धागा ) लाते ही तरंग के दाएं हाथ पर बांध दी । और अगले ही पल उसकी तकलीफ़ दूर हो गई । उसी दिन शाम को तरंग अपने कमरे में बिल्कुल गुमशुम बैठा था और उसे परेशान देखकर उसके मां उसके पास अाई । 'मैं समझती हूं बेटा, तुम हमेशा होने वाले अपने दर्द को लेकर बहोत परेशान हो । माफ़ करना मैं तुम्हारे लिए अब तक कुछ नहीं कर पाई । लेकिन मैं तुम से वादा करती हूं । हम इस बिमारी को ठिक करने के लिए जो बन पड़े वो सब करेंगे । शायद तुम्हें पता नहीं लेकिन तुम्हारा एक भाई भी था । जब तुम दोनों पैदा होने वाले थे तब डिलीवरी में काफ़ी कॉम्प्लिकेशन आ गई थी । एक बचा अंदर उलझ गया था । अगर जल्द ही कुछ किया नहीं जाता तो मेरी और तुम्हारी जान जा सकती थी । इसलिए तुम्हारे पापा ने हम दोनों की जान बचाने का फ़ैसला किया । लेकिन डॉक्टर्स उसे नहीं बचा पाए ।' अपनी मां की इन बातों को सुनते ही तरंग समझ गया की वो कौन है जो उसके साथ घूम रहा है । वो उसका पीछा नहीं कर रहा था । बल्कि वो तो उसी के साथ जन्मा था । और ये बात उसने पूर्वा को बताई । उस दिन के बाद तरंग अक़्सर पूर्वा से मिलने लगा । धीरे-धीरे कई राज़ उन दोनों के सामने आए और अब वो अच्छे दोस्त बन चुके थे । इस दौरान तरंग के साथ रह रही आत्मा उसे कमज़ोर करने की कोशिश करती रही । लेकिन बाबा काल भैरव की मौली की वजह से वो अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाया । इस बीच एक दिन तरंग की बड़ी बहेन सुप्रिया उनके घर अाई । जो कुछ ही दिनों में मां बनने वाली थी । और जब उस रूह का बस तरंग पर नहीं चला तो वो उसकी बहेन के पीछे पड़ गया । 'अगर तुम मेरे लिए अपना शरीर नहीं त्याग सकते तो फ़िर मैं ख़ुद हमारी बहेन के शिशु के रूप में जन्म लूंगा ।' तरंग और उस ख़तरनाक रूह के बीच छिड़ी बहस के दौरान उस ने शैतानी हंसी के साथ कहा और तरंग के कंधों का बोझ अचानक से हल्का हो गया ।" मैंने बिना रूके कहानी को जारी रखा ।
"ये कैसी आत्मा थी जो अपने ही भाई और बहेन को तकलीफ़ पहुंचा रही थी !" गहरे अफ़सोस के साथ पलक के मुंह से वो लब्ज़ होले से निकल आए ।
"आत्मा या पारलौकिक शक्तियों के साथ गुस्सा, दुःख, तकलीफ़, दर्द, धोखेबाजी, खालीपन और.. खौफनाक यादें ज़्यादा जुड़ी होती है । इस लिए ये शक्तियां उस शख्स को बहोत आसानी से अपने वश में कर सकती है, जो दिमागी रूप से कमज़ोर है । जो काफ़ी जज़्बाती होते हैं । या जल्दी घबरा जाते हैं । इस तरह की पारलौकिक शक्तियां अक़्सर उन इंसानों के संपर्क में ज़्यादा आती है, जो अपनी ज़िंदगी में काफ़ी दुखी होते हैं और जो बहोत अकेलापन महसूस करते हैं । और तरंग को अपने वश में करने के लिए वो रूह उसे दिल से कमज़ोर बनाने की कोशिश में थी ।" और पलक के उन शब्दों को सुनते ही अंजाने में मेरे मुंह वो सारी बातें निकल गई ।
"लेकिन सुप्रिया और उसके बच्चे का क्या ? वो दोनों तो बिल्कुल निर्दोष थे । और वाणी.. उसका का क्या हुआ ?" पलक ने फिक्रमंद नज़रों से मुझे देखते ही सवाल किया ।

Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें