हेल्लो दोस्तों, शुरू करने से पेहले एक ज़रूरी बात । इस चैप्टर से सलोनी और आर्या के पात्रों को एक चेहरा दिया गया है । आर्या के किरदार में आप मिस्टर. वर्ल्ड रोहित खंडेलवाल की तस्वीर देख पाएंगे । और सलोनी के किरदार में नज़र आने वाले सख्स का नाम आप जानते है तो मुझे ज़रूर बताए । और पढ़ने के बाद अपने एक्स्पीरियंस बांटना ना भूलें । मेरे लिए आपके वोट और कॉमेंट हमेशा कीमती रहेंगे ।
आपकी, बि. तळेकर ♥️
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रविवार सुबह 7 : 30 बजे ।
चंद्र की निगरानी में सोते हुए अब मैं ख़ुद को पेहले से काफ़ी सुरक्षित महसूस करने लगी थी । और ये सिर्फ़ चंद्र की वजह से मुमकिन हो पाया था । एक आत्मा होने के बावजूद वो मेरे जज़्बात इतनी अच्छी तरह समझ लेता कि, मुझे किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होती । उल्टा मैं.. धीरे-धीरे चंद्र के और भी क़रीब आने लगी थी । वो जब भी मेरे साथ होता मैं अपनेआप को सुरक्षित महसूस करती । क्योंकि चंद्र से मिलने के बाद मुझे भूत-प्रेत पर पूरा विश्वास हो चुका था । इसी के साथ मैं किसी और साये की मौजूदगी से भी वाक़िफ थी । और ऐसे में शायद चंद्र ही था जो मुझे इन पारलौकिक शक्तियों से बचा सकता था । इसलिए उसके साथ होने पर हमेशा मुझे एक हौसला मिलता ।
रोज़ की तरह आज भी मैं सुबह जल्दी उठकर तैयार हो गई थी । हालाकि आज हमारे ऑफ़िस में छुट्टी थी । मगर फ़िर भी नहाने के बाद ग्रीन ड्रेस पहनते ही तैयार होकर मैं सीधे किचन में पहुंची । मैं सुबह के नाश्ते की तैयारी कर ही रही थी कि इतने में मैंने चंद्र को वहां महसूस किया । और सर उठाकर उसे अपने सामने पाते ही मेरे चेहरे पर एक मुस्कुराहट बिखर गई ।
मेरे पास आते ही, "इतनी सुबह-सुबह ? कम से कम आज तो तुम्हें अच्छी तरह आराम कर लेना चाहिए था ।" चंद्र ने मेरी परवाह करते हुए कहा ।
"हां, शायद मुझे कुछ और देर सोना चाहिए था । पर सच कहूं तो कल की कहानी सुनने के बाद मुझ में एक नई ताज़गी लौट आई है । उस कहानी के दृश्य अभी तक मेरे ज़ेहन में ताज़ा है ।" कहानी के कुछ ख़ूबसूरत पेहलुआे को याद करते हुए, "तुम्हारा बहोत-बहोत शुक्रिया, मुझे इतनी ख़ूबसूरत कहानी से रूबरू करवाने के लिए ।" मैंने चंद्र की ओर देखकर धीमे से कहा ।
"हां, ख़ूबसूरत और ख़तरनाक भी ।" गहरी सोच के साथ चंद्र की नज़रें नीचे की ओर झुकी थी । "लेकिन ये मेरी खुशकिस्मती है कि, मैं ये कहानी तुम तक पहुंचा पाया ।" और अगले ही पल मुझ पर पलकें उठाते ही चंद्र ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा ।
इसी दौरान मैं नाश्ते की प्लेट लेकर डाइनिंग टेबल पर लौट आई । और चंद्र भी मेरे पास बैठ गया ।
"मुझे ख़ुशी है कि, बाजी और स्वर्नलेखा इतनी मुसीबतों का सामना कर के भी आख़िरकार एक हो पाए । लेकिन क्या.. दो लोगों के प्यार में इतनी ताक़त हो सकती है कि वो समय और मौत की सीमाओं को भी लांघ कर एक नया जन्म ले पाए ?! और अपने उसी प्यार से फ़िर वाक़िफ हो पाए ?" अपनी गहरी सोच के बीच इन्हीं सवालों के साथ मैंने चंद्र की ओर देखा ।
"मौत के बाद भी इतना दृढ़ संकल्प होना बहोत मुश्किल है । क्योंकि मौत के बाद सारे रिश्ते-नाते पीछे छूट जाते है । और आत्मा अपनी एक नई यात्रा पर चल पड़ती है । मगर कभीकभार कोई इच्छा, संकल्प या कोई रिश्ता इतना मजबूत, इतना अटूट होता है कि वो ज़िन्दगी के बाद भी हम से जुड़ा रहता है । और जो ख्वाहिशें वो पिछले जन्म में पूरी ना कर पाया उसे नये जन्म में पूरी करने की दोबारा कोशिश करता है ।" चंद्र ने मेरे सवाल का जवाब देते हुए धीमे से कहा ।
चंद्र की बात सुनते ही, "बिल्कुल तुम्हारी तरह ।" मेरे होठों से वो शब्द आपनेआप बाहर चले आए और मेरी उम्मीद से भरी नज़रे उस पर उठ गई ।
मेरी बात सुनते ही चंद्र की हैरत से भरी गहरी नज़रे मुझ पर उठ गई । वो मेरी बात सुनकर ऐसे चौंक गया था जैसे मैंने उसकी कोई चोरी पकड़ ली हो । क्या कुछ है जो उसे परेशान कर रहा था ? या वो मुझसे कोई बात छुपा रहा था ?!
"तुम भी तो आज तक अपने परिवार से इतना प्यार करते आए हो ।" चंद्र के अनकहे सवाल का जवाब देते हुए, "और तुम्हारे इसी प्यार की वजह से तुम आज तक लोगों की हिफाज़त कर रहे हो ।" मैंने धीरे से कहा । और चंद्र बिना कुछ कहे बस मुझे देखता रहा ।
चंद्र बिल्कुल ख़ामोश था । लेकिन उसकी आंखें मुझसे बहोत कुछ कहें रही थी । चंद्र किसी बात को लेकर उलझन में था । मगर फ़िर भी उसके होठों पर मंद सी मुस्कान फैली हुई थी । जिसे देखकर मेरे होठों पर भी मुस्कान लौट आई । पर ठीक उसी समय हमने दरवाज़े पर दस्तक सुनी ।
दरवाज़े पर दस्तक सुनते ही मैंने जल्दी से अपना नाश्ता ख़त्म किया और दरवाज़े तक जा पहुंची । पता नहीं छुट्टी के दिन कौन आया होगा ?! इसी सोच के साथ चंद्र की ओर देखते हुए मैंने दरवाज़ा खोला । और आर्या को अपने सामने देखकर मैं चौंक गई ।
"आर्या ! तुम यहां ? कुछ काम था ?" उसे देखते ही मैंने चौंकाते हुए सवाल किया ।
"पलक ! मैंने सोचा नहीं था कि, तुम मेरे साथ ऐसा सलूक करोगी ?!" आर्या ने मेरे सामने आते ही चिड़ाते हुए कहा ।
"मैंने क्या किया ? तुम्हें कोई ग़लतफेहमी हुई होगी । मैं कभी ऐसा नहीं करूंगी जिससे तुम्हारा या किसी और का दिल दुखे ।" आर्या को गुस्से में देखकर मैं परेशान हो गई, "लेकिन फ़िर भी अगर मेरी वजह से तुम्हें कोई परेशानी हुई हो तो मुझे माफ़.." और मैंने घबराते हुए कहना चाहा पर तभी अचानक आर्या ने मेरा हाथ पकड़ लिया और ज़ोर से हंस पड़ा ।
उसकी इस हंसी की वजह मैं नहीं समझ पाई और हैरत भरी नजरों से उसे घूरती रही ।
"म..माफ़ करना, पलक ।" अपनी हंसी को मुश्किल से रोकते हुए, "मैं तो बस यूंही मज़ाक कर रहा था । आई एम रियली वेरी सॉरी ! लेकिन क्या तुम मुझे अंदर नहीं बुलाओगी ?" आर्या ने मुझसे माफ़ी मांगते हुए कहा और मैं हैरान होकर उसके मज़ाक को समझने की उलझन में फंसी रही ।
आर्या के अंदर आते ही मैंने उसे पानी दिया और जैसे कि, भारत में घर आए हर मेहमान या दोस्त की मेहमान नवाजी की जाती है ठीक वैसे ही मैंने उसे चाय-कॉफ़ी के लिए पूछा । लेकिन उसने साफ़ इन्कार कर दिया ।
"पलक, मैं तुम्हें लेने आया हूं । तुम्हें अभी मेरे साथ चलना होगा ।" मेरे वापस हॉल में आते ही आर्या ने कहा ।
आज छुट्टी के दिन भी क्यों मैं अकेली नहीं रहे सकती ? मैं आज पूरा दिन चंद्र के साथ गुजारना चाहती थी । उससे जी भरकर बातें करना चाहती थी । मेरे मन में उठ रहे सवालों के जवाब जानना चाहती थी । लेकिन अब मैं क्या करूं ?
"घबराओ मत, हम अकेले नहीं जा रहें । सलोनी भी हमारे साथ चलेगी । हम थोड़ी देर में वापस आ जाएंगे । असलियत में तुमने अगले एडिशन के लिए जिस थीम के बारे ज़िक्र किया था । उसी सिलसिले में हमें एक आदमी से मिलने जाना है । वो कल शहर से बाहर जा रहा हैं और वापस आने में उन्हें समय लगेगा । इसलिए हमें उन्हें आज ही मिलना होगा । और सलोनी कॉफ़ी हब में हमारा इंतज़ार कर रही है ।" पूरी बात बताते हुए आर्या ने गंभीरता से कहा ।
"ठीक है । म..मैं अभी आती हूं ।" ऑफिस का काम होने की वजह से ना चाहते हुए भी मुझे आर्या की बात माननी पड़ी । और मैं टेबल पर पड़े बर्तन उठाकर किचन में लौट गई ।
किचन में बर्तन रखते ही, "चंद्र.. मुझे जाना होगा । लेकिन मैं जल्दी वापस आऊंगी । और फ़िर तुम मुझे अपनी अगली कहानी के बारे में बताना ।" मैंने पीछे की ओर मुड़कर कहा । और मेरे कहते ही चंद्र अपने ज़ाहिर अवतार में लौट आया । पर उसके धड़ का निचला हिस्सा अब भी अदृश्य था ।
मैं जानती थी कि चंद्र पूरे समय अपने अदृश्य रूप में यहीं हमारे साथ मौजूद था । वो मेरी और आर्या की बातें सुन चुका था । और मुझे ख़ुशी थी कि, वो कहीं दूर नहीं गया ।
चंद्र के होठों पर प्यारी सी मुस्कान उभर आई, "जैसा तुम चाहो ।" और उसने धीरे से कहा ।
इसके कुछ ही मिनटों बाद मैं आर्या के साथ जाने के लिए निकल पड़ी । आर्या पेहले ही अपनी बाईक पर सवार हो चुका था और महल का गेट बंद करते ही मैं भी वहां जा पहोंची । उसी वक्त मैंने सर उठाकर महल की छत पर देखा जहां से चंद्र की नज़रें मुझे ही देख रही थी । और उसकी तरफ़ देखकर चुपके से हाथ हिलाते ही मैं हिचकिचाते हुए ही सही पर आर्या के पीछे बाईक पर बैठ गई ।
मुझे आर्या के साथ इस तरह एक बाईक पर सवार होना थोड़ा अजीब लग रहा था । लेकिन मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था ।
इसके कुछ समय बाद हम कॉफ़ी हब तक जा पहुंचे, जो रास्ते के चौराहे पर बना था । कॉफ़ी हब के अंदर जाते ही मैंने सलोनी को देखा जो कोने में रखे हुए आंखरी टेबल पर अकेली बैठी हुई थी । उसे देखते ही मैं उसके पास जाकर बैठ गई और अगले कुछ ही मिनिटों में हमनें एक लंबे-चौड़े आदमी को पार्लर के अंदर आते देखा, जिन्होंने सादा हरा शर्ट, काली पैंट और हेट के साथ आंखों पर चश्मा लगाया हुआ था । और उनकी उम्र लगभग चालीस (40) के आसपास की थी ।
उन्हें देखते ही, "गुड मॉर्निंग, सर । मेरा नाम आर्या सक्सेना है । मैंने ही फोन पर आपसे बात की थी ।" आर्या झट से खड़ा हो गया और उसने अपनी पहचान देते हुए उन सख़्श से कहा ।
"जी मैं रुस्तम जरीवाला ।" उन्होंने तुरंत आर्या से हाथ मिलाया और हमारे साथ बैठ गए । उतनी ही देर में हमारी चाय टेबल पर आ गई ।
"रुस्तम जी मैं जानता हूं, आप एक बहोत अच्छे रिपोर्टर रहे चुके हैं । और हम यंगस्टर्स में बढ़ रहे क्राइम पर रिसर्च करना चाहते हैं, जिसमें सिर्फ़ आप हमारी मदद कर सकते हैं । तो हमें प्लीज़ बताइए कि, हमें अपनी रिसर्च की शुरुआत कहां से करनी चाहिए ?" आर्या ने उन्हें चाय ऑफर करते हुए कहा ।
"हूं समझी गयो । (मैं समझता हूं ।) पण मारा भाई, कई पण कर्या पेहला जान लो के आ काम घणु ख़तरनाक छे । (पर मेरे भाई, कुछ भी करने से पेहले जान लो कि ये काम बहोत ख़तरनाक है ।)" रुस्तम जी ने परेशान होकर चेतावनी दी । जिसे सुनकर हम तीनों एक पल के लिए शत्ते में आ गए ।
"जी आप हम पर भरोसा रखिए । हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे हम पर या किसी पर कोई मुसीबत आए ।" चंद्र की कही बात पर यक़ीन रखते हुए मैंने इस काम में आने वाली चुनौती को स्वीकार किया ।
"ठीक छे तो पछी । (ठीक है तो फ़िर ।)" मेरे कहते ही रुस्तम जी ने चाय का कप टेबल पर रखते हुए, "आ लो । ये ऐसी कुछ जगहों की लिस्ट छे, जहां से तुम आपनी रिसर्च शुरू कर सकते हो ।" अपनी बैग से एक फाइल निकाल कर दी ।
"मुझे तो विश्वास नहीं होता कि, इस में लोकल गवर्मेंट स्कूल और कॉलेज से लेकर सारदा इंटरनेशनल स्कूल का नाम भी शामिल है ।" फाइल हाथ में लेते ही, "क्या आप सॉर है कि, इन जगहों से हमें क्राइम थीम पर रिपोर्ट मिल जाएगी ?" पन्ने पलटते हुए सलोनी ने हैरान होकर सवाल किया ।
जाने-माने गवर्मेंट स्कूल और कॉलेजिस के साथ मशहूर स्कूल, कॉलेजिस और इंसिट्यूट के नाम उस कंट्रोवर्सी (विवाद) रिपोर्ट लिस्ट में देखकर सलोनी काफ़ी हैरान हो गई थी । और सलोनी का यूं हैरान होना जायज़ भी था । सच कहूं तो सिर्फ़ सलोनी ही नहीं बल्कि हम तीनों को इस जानकारी ने चौंका दिया था । कौन सोच सकता है कि, किसी जाने-माने और प्रेस्टिजियस गवर्मेंट इंसिट्यूड या इंटरनेशनल स्कूल का नाम भी किसी तरह की कंट्रोवर्सी से जुड़ा होगा !
"हूं सॉर छूं । (मैं सॉर हूं ।) गया साल नी ज वात छे । (पिछले साल की ही बात है ।) सारदा इंटरनेशनल स्कूल नी एक बस नो घणों भयंकर हादसा थयो । स्कूल का ड्राइवर नाना छोकराओ (छोटे बच्चों) को लेकर घर जा रहा था । अने (और) ज़ोर से ब्रेक मारवा थी एक पांच साल नु छोकरू (बच्चा) बस नी बाहर पड़ी गयु । (गिर गया ।) अने बिचारे की करुण (देनिय) मौत थय गयी । (हो गई ।)" रुस्तम जी ने धीमी आवाज़ में गंभीरता से कहा ।
"लेकिन छोटे बच्चों के मामले में मैनेजमेंट इतनी लापरवाही कैसे कर सकता है ! उन्हें ऐसे बेहूदा ड्राइवर को अपॉइंट ही नहीं करना चाहिए, जिसे स्कूल बस चालने का कोई एक्सपीरियंस ही नहीं ।" रुस्तम जी की बात सुनते ही आर्या शत्ते में आ गया ।
"ऐ ज तो विचारवा जेवू छे, मरा भाई । यहीं तो सोचने वाली बात है कि, मैनेजमेंट ने बड़ी सफ़ाई से बधों दोष ड्राइवर पर डाल दिया । ज्यारे हकीक़त तो ए हती के, उन्होंने बसिस को ठीक से मेंटेन ही नहीं किया था । बस के पिछले भाग में सीट के नीचे मोटो गोबो हतो । (बड़ा गड्ढा था ।) इस बात की ख़बर मैनेजमेंट को पेल्ले से थी । तो पण (तो भी) उन्होंने इस पर कई ज नहीं कर्यू । (कुछ नहीं किया ।) अने आ हादसों थयो त्यारे बधो दोष ड्राइवर पर उल्टावी नाख्यो । (और इस हादसे का दोष ड्राइव पर डाल दिया ।)" रुस्तम जी ने चोरी से आसपास देखकर सावधानी से कहा ।
"ये सरासर अन्याय है ।" सारी बातें सुनते ही हताशा में मेरे मुंह से निकल गया और सभी ने उदासीनता से मेरी तरफ़ देखा ।
"साचू कह्यू । (सच कहा ।) आ जग्याओ मां जय रिसर्च करने पर आवा घणा केस मळसे । (इन जगहों पर जाकर रिसर्च करने पर कई केस मिलेंगे ।)" रुस्तम जी ने अफ़सोस के साथ कहते ही अपनी घड़ी में देखा, "हवे मारे निकळवु पडसे । (अब मुझे जाना होगा ।) फरी मळसु । (फ़िर मिलेंगे ।) अपना ख्याल रखना ।" और दबे शब्दों में हमें आगाह करते ही जाने के लिए खड़े हो गए ।
रुस्तम जी के साथ हम सब भी उन्हें विदा करने के लिए खड़े हुए और आर्या उन्हें बाहर तक छोड़ आया । हमारी चाय ख़त्म होते ही हम तीनों भी घर जाने के लिए निकल पड़े । इस बार भी सलोनी जल्दबाजी में मुझसे बिना पूछे घर चली गई । और आर्या मुझे घर तक छोड़ने आया ।
महल तक पहोंचने पर बाइक से उतरते ही मैंने सर उठाकर छत की ओर देखा । चंद्र अभी भी वहीं खड़ा था और उसकी नज़रें मेरी राह देख रही थी । मुझे देखते ही वो अदृश्य हो गया और मैं भी तुरंत उसके पास जाने के लिए आगे बढ़ गई ।
मगर तभी अचानक पीछे से किसी ने मेरा हाथ पकड़ लिया । और मुझे आगे बढ़ने से रोक दिया ।
मुझे अपनी ओर पलटने पर मजबूर करते ही, "मुझे अंदर आने के लिए नहीं कहोगी ?" आर्या ने धीरे से सवाल किया । लेकिन मेरे पास उसके सवाल का कोई जवाब नहीं था । मैं आर्या की इस हरक़त से हैरान होकर उसे देखती रही ।
उसी समय अचानक मौसम में अशांति फैल गई और एकाएक हवाएं तेज़ हो गई । आसपास के पेड़-पौधें हवा के थपेड़ों से तेज़ी से इधर-उधर झूलने लगे । इसी के साथ सूखे घांस-पत्ते उड़कर हम से टकराने लगे । जिससे एक पल लिए मैं परेशान हो गई और इसी मौक़े का फ़ायदा उठाकर मैंने आर्या से अपना हाथ छुड़ा लिया ।
कुछ पलों की ख़ामोशी के बाद, "मम..माफ़ करना मुझे लगा.. कि.." हड़बड़ाहट में कुछ अधे-अधूरे से शब्द मेरी ज़बान से निकले । और मेरे कुछ केहने से पेहले ही आर्या बाइक से उतरकर मेरे साथ महल तक चला आया ।
सुबह 11 : 30 बजे ।
क़रीब आधे घंटे तक यहीं रुकने के बाद आर्या अब यहां से जा चुका था । वापस लौटने के बाद लगातार आर्या के यहां होने से मैं चंद्र से नहीं मिल पाई । और मेरी नज़रे कब से उसी को ढूंढ़ रही थी ।
मैं जब से यहां लौटी थी तब से मैंने चंद्र को नहीं देखा था । जिस वजह से मेरा मन उदास होने लगा था । मैं चंद्र से बात करना चाहती थी । उससे मिलना चाहती थी । लेकिन मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि वो इस समय कहां हो सकता था । मगर अब दोपहर का समय हो चला था । और मुझे खाने की तैयारी करनी थी ।
"चंद्र ?" अपने चारों ओर घूम कर चक्कर लगाते हुए, "चंद्र, तुम कहां हो ? अब तुम बाहर आ सकते हो । आर्या चला गया है ।" मैंने थोड़ी ऊंची आवाज़ में कहा । लेकिन मुझे उसका कोई जवाब नहीं मिला । और इसी ख़ामोशी के चलते मायूस होकर मैं किचन की ओर चली गई ।
दोपहर 12 : 30 बजे ।
खाना बनने के बाद मैं अपना खाना ख़त्म कर चुकी थी । लेकिन अब तक चंद्र का कोई पता नहीं था । उदास मन से ही सही लेकिन अपना सारा काम पूरा करने के बाद मैं लगभग दस मिनट से हॉल में सोफ़ा पर बिल्कुल अकेली बैठी थी ।
चंद्र के ना होने से अब मुझे एक अजीब सा खालीपन और डर महसूस होने लगा था । और इस सुनसान जगह पर मुझे मेरे ही दिल की धड़कनें भी डरावनी लगने लगी थी । नजाने चंद्र को क्या हो गया था ? वो क्यों वापस नहीं लौटा ?! बस इसी तरह के सवाल बार-बार मेरे मन को कुरेद रहे थे । अपने आई-बाबा और भाई से दूर होने के बाद अब चंद्र से दूर होने का डर मुझे बेचैन कर रहा था । और अपने अकेलेपन के इसी खौफ के चलते मेरी आंखों से आंसू बेहने लगे ।
"पलक !" अगले ही पल अचानक अपने दाई ओर से मैंने चंद्र की आवाज़ सुनी और उस तरफ़ मुड़कर देखते ही मैंने चंद्र को अपने सामने पाया ।
चंद्र बिल्कुल मेरे सामने, मेरे नज़दीक अपने घुटनों के बल बैठा था । और उसे दोबारा देखते ही मेरी जान में जान आई । पर उसे देखने के बावजूद भी मैं इतनी डर गई थी कि, कुछ पलों के लिए मेरी आवाज़ तक नहीं निकल पाई ।
"च..चंद्र.! तुम.. कहां चले गए थे ? तुम्हें पता है मैं कितना घबरा गई थी !?" सर उठाकर अपनी धुंधली नजरों से चंद्र की ओर देखते ही मैंने धीरे से कहा और अपने आंसू पोछे ।
"पलक.. मुझे माफ़ करना । मुझे कोई अंदाज़ा नहीं था कि, तुम पर क्या बीतेगी । मगर मैं इसी महल में था ।" टेबल पर पड़े पानी के जग की ओर देखते ही, "मैं बस तुम्हारे उस दोस्त के जाने का इंतजार कर रहा था । मैं.. नहीं चाहता था कि तुम दोनों के बीच आऊं ।" चंद्र ने अफसोस के साथ धीरे से कहा और तभी पानी से भरा ग्लास हवा में उड़ते हुए मेरे सामने आ पहुंचा ।
"ऐसा कभी मत सोचना, चंद्र ।" ग्लास हाथ में लेते ही, "मुझसे वादा करो तुम मुझे अकेला कभी नहीं छोड़ोगे ।" मैंने इसी उम्मीद के साथ उसकी आंखों में देखा । और मेरी बात सुनते ही हल्की सी मुस्कान के साथ चंद्र ने अपना सर झुका कर हामी भर दी ।
"आर यू फाइन नाउ ?" इसी सवाल के साथ चंद्र मेरे पास बैठ गया । और मैंने फीकी सी मुस्कान के साथ पानी पीते हुए सहमति में सर हिलाया ।
"तो अब बताओ क्या हुआ ?" चंद्र के इस सवाल पर, "बहोत कुछ ।" मैंने धीरे से कहा ।
"तुमने सही कहा था, चंद्र । यंग इंडिया के नेक्स्ट इसू के लिए हमने जो थीम चुना है वो बिल्कुल सही है । और मुझे लगता है कि, रिसर्च करने पर और भी कई सारे हैरतअंगेज राज खुलने वाले है ।" मैंने कॉफी हब में हुई सारी बातें बताते हुए गंभीरता से कहा । सारी बातें जानने के बाद चंद्र बिल्कुल ख़ामोश होकर सोच में पड़ गया ।
"वो रिपोर्टर सही है, पलक । मैं जानता हूं । तुम इस बार भी बहोत अच्छा काम करोगी । लेकिन ये काम बहोत ख़तरनाक है । इट्स वेरी डेंजरस ।" फिक्रमंद नजरों से मेरी और देखते हुए, "इस लिए जो भी करना बहोत सोच-समझकर सावधानी से करना ।" चंद्र ने परेशान होकर कहा ।
"हां, मैं तुम्हारी बात याद रखूंगी । लेकिन मैं इस टॉपिक पर रिसर्च कर के रहूंगी । क्योंकि अब ये बात मासूम लोगों के जान पर आ गई है । और अगर हमने इस सच्चाई को बेपर्दा नहीं किया तो दूसरे लोग भी इस लापरवाही का शिकार बनते रहेंगे ।" चंद्र की बात से सहमत होकर मैंने दृढ़ता से कहा ।
मेरी बात सुनते ही, "ऑल द बेस्ट, पलक ।" चंद्र ने हल्की मुस्कान के साथ कहा । और उसे देखकर मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई ।
"चंद्र.. क्या मैं तुमसे कुछ पूछ सकती हूं ?" इसी बीच इन शब्दों के साथ मेरी मुस्कान फीकी पड़ गई ।
"एक तुम ही तो हो, जिसके सवालों के जवाब मैं आज तक बिना किसी ऐतराज़ के देता आया हूं ।" चंद्र ने मेरी तरफ़ देखते हुए सहजता से कहा ।
"राजकुमार बाजी और स्वर्णरेखा मरने के बाद नया जन्म लेकर लौट आए । वो दोनों सेंराट और जिया के रूप में एक हो गए । जबकि मोहिनी मरकर भी नया जन्म नहीं ले पाई और प्रेत बनकर इतने सालों तक भटकती रही । मैं समझ नहीं पा रही कि, उन सबके के साथ ऐसा क्यूं हुआ ?" गहरी सोच में डूबकर कहते हुए, "श्रीमद्भगवदगीता में भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है कि, 'आत्मा अमर है । उसे अस्त्र से मारा या आग से जलाया नहीं जा सकता । आत्मा का कोई आकार, नाम या जात नहीं होती । तो फ़िर... मरने के बाद किसी इंसान की आत्मा उसी इंसान का रूप क्यों धारण करती है ?" मैंने चंद्र की ओर उम्मीद के साथ देखा ।
"नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥" चंद्र के होठों से उस अभूतपूर्व (Phenomenal) प्राचीन श्लोक को सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे । और मेरी हैरान नज़रे उस पर उठ गई ।
स्वयं भगवान कृष्ण द्वारा संस्कृति में कहे गए उस अद्भुत श्लोक का इतना स्पष्ट उच्चारण चंद्र के होठों से सुनकर मैं बिल्कुल हैरान रह गए । मैं कई हफ्तों से चंद्र के साथ रह रही थी । लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि, चंद्र वेद-पुराणों के बारे में इतना कुछ जानता होगा । जैसे-जैसे मैं चंद्र के साथ और समय गुजारती वैसे-वैसे मुझे उसके अंदर छिपी खूबियों का पता चल रहा था । १८वीं सदी में पैदा होने के बावजूद वो इंग्लिश जनता था । लंडन में पढ़ाई करने के बावजूद वो हमारी संस्कृति, हमारे विचार और तौरतरीके नहीं भूला था । चंद्र एक आत्मा था । मगर फ़िर भी वो उस अद्भुत श्लोक को बिना किसी हिकिचाहट के स्पष्ट रूप से दोहरा सकता था, जो भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा था ! ये कैसे मुमकिन था ? चंद्र एक आत्मा होकर भी पुराणों में वर्णित किसी पवित्र श्लोक को कैसे दोहरा सकता था ?!
"हां, ये सच है ।" चंद्र के वो शब्द मेरे कानों में गूंजते ही मैं अपनी सोच से बाहर आ गई । "आत्मा अमर है । उसे अस्त्र से भेदा या आग से जलाया नहीं जा सकता । ना उसे पानी से पिघलाया या हवा से मुरझाया जा सकता है । आत्मा की कोई सीमा, कोई हदे नहीं होती । लेकिन इंसानी शरीर हमेशा सीमाओं और बंदिशों में बंधा रहता है । उसे नाम, काम या रिश्ते जैसे कई तरीकों से जाना जाता है । जबकि आत्मा की सिर्फ़ एक पहचान होती है । परमेश्वर । क्योंकि आत्मा परमेश्वर का ही एक अंश है । और उसे मुक्ति मिलने पर वो फिर एक बार परमात्मा में समाहित हो जाती है । उनमें लिन हो जाती है । तुमने सही कहा, आत्मा का कोई आकार नाम या जात नहीं होती । लेकिन जब कोई मरता है और उसके शरीर को छोड़कर आत्मा अपने सफ़र के लिए आगे बढ़ती है तब उस आत्मा के साथ उसके पीछले जन्म के कर्म जुड़े होते हैं । इस लिए जब तक वो आत्मा उसके कर्मो का हिसाब नहीं चुका देती तब तक वो उसी रूप को धारण करती है ।" और उसकी कही बात को बहोत ध्यान से सुनती रही ।
चंद्र की बात पर विचार करते हुए, "इसका मतलब.. आत्मा को उन चीजों का ज्ञान होता है, जो उसने अपने जीवन काल में सिखी हो । तो क्या.. तुम्हें इतनी सारी जानकारी पेहले से थी ?" उसकी तरफ़ देखते ही अनजाने में मेरे मुंह से निकल गया ।
मेरे इन शब्दों को सुनते ही चंद्र की सवाल भरी नज़रे मुझ पर उठ गई, "हां.. तुम ये कहे सकती हो । कुछ चीज़ों के बारे में मैं पहले से जानता था । लेकिन कुछ राज़ मरने के बाद मेरे सामने आए । मैं एक ब्राम्हण परिवार से हूं । मेरे बाबा गांव के बहोत बड़े ब्राह्मण थे । उन्हें शास्त्रों और पुराणों का काफ़ी ज्ञान था । और उनके साथ रहते हुए मैंने भी कई चीज़े सीख ली ।" लेकिन फ़िर भी उसने मेरे सवाल को अनसुना नहीं किया ।
ये सारी बातें कितनी रोचक और डरावनी है । मैं सोच भी नहीं सकती थी कि, मरने के बाद भी इतनी रुकावटों का सामना करना पड़ता होगा । इतनी मुसीबतें उठानी पड़ती है । शायद मेरे आईं- बाबा और भाई ने भी काफ़ी कुछ झेला होगा । जिस तरह मेरे लिए उनके बग़ैर जीना मुश्किल था । उसी तरह मुझे छोड़कर जाना भी उनके लिए मुश्किल होगा ।
गहरी सोच में डूबकर फिक्रमंद होकर, "मामूली इंसान होने के नाते मुझे भी यही लगता था कि, मरने के बाद सारी परेशानियां खत्म हो जाती है । लेकिन अब मैं समझ सकती हूं कि, ये कितना मुश्किल है । और तुम... तुम भी तो इतने सालों से इन मुसीबतों से लड़ते आए हो ।" मैंने चंद्र की ओर देखते हुए धीमे से कहा ।
"हां, शायद ।" अगले ही पल मेरी तरफ़ देखते ही, "मगर तुम्हारे आने के बाद बहोत सी चीज़े आसान हो गई ।" चंद्र ने धीरे से कहा और उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान लौट आई ।
इसी तरह चंद्र के आने के बाद मेरा समय काफ़ी अच्छे से गुज़रा । चंद्र के आने के बाद मुझे ज़रा सा भी डर या घुटन महसूस नहीं हुई । उसके मौजूद होते हुए मुझे अपने आसपास एक अजब से सुकून और सुरक्षा का आभास होता । जैसे उसके चारों ओर एक पॉज़िटिव एनर्जी बनी हो । और चंद्र के ओरा (आभा) में रहने से मुझे ख़ुशी मिलती थी ।
इसी बीच बात करते समय अचानक चंद्र के चेहरे पर किसी बात को लेकर चिंता की लकीरें उभर आई । वो उस वक्त काफ़ी परेशान और गुस्से में नज़र आ रहा था ।
"मैं अभी आता हूं ।" इससे पेहले के मैं चंद्र से उसकी परेशानी की वजह पूछ पाती वो इतना कहते ही मेरी आंखो से अदृश्य हो गया ।
उसके जाने के बाद मैं अपने ऑफिस के काम में व्यस्त हो गई । और कुछ घंटे काम करते हुए कब मेरी आंख लग गई पता ही नहीं चला ।
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Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndia
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