Chapter 18 - Palak (part 1)

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Hello Friends and readers,
Finally I am here with another aspect of 'Asmbhav'. I hope you will enjoy this chapter. I would like to know your experience with your precious votes. Your experience always encourage me to write more & more & more.
So don't shy to share your feelings with me & all of us.
And must share your personal 'Asmbhav moment ' with hashtag #MyAsmbhavMomemt
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मुझे यहां आए तकरीबन दो महीने बीत चुके थे । लेकिन मैं अब भी अपने ज़ख्मों से पूरी तरह उबर नहीं पायी थी । इसके बावजूद काफ़ी मुश्किल से और कई कोशिशों के बाद मैं धीरे-धीरे अपने दोस्तों के साथ घुलने लगी थी । मेरी इस कामयाबी का सबसे ज़्यादा क्रेडिट चंद्र को जाता था । और मैं खुशनसीब थी कि मुझे गीता और सलोनी जैसे दोस्त मिले थे ।
गुरुवार, दोपहर 3:00 बजे ।
आज सुबह मैं बिल्कुल सही समय पर ऑफिस पहुंच चुकी थी । आज लंच के बाद हमें फिर अपनी मैगज़ीन के आर्टिकल के सिलसिले में 'हेरीटेज इंस्टीट्यूट होटल एन्ड टूरीज़म' कॉलेज जाकर वहां के स्टूडंट्स और बाक़ी लोगों से मिलना था । इसी लिए ऑफिस का अपना सारा काम तेज़ी से निपटाकर मैं सलोनी और आर्या के साथ कैंटीन पहुंची ।
मुझे और मेरी बैग की ओर देखते हुए, "आज तुम टिफिन नहीं लायी !?" आर्या ने उदास चेहरा बनाते हुए सवाल किया ।
देर रात तक चंद्र से हुई बातचीत के बारे में सोचते हुए, "न.. नहीं । वो मैं.. सुबह जल्दी नहीं उठ पायी । इसलिए कुछ बनाने का समय नहीं मिला ।" मैंने हल्की हिचकिचाहट के कहा ।
"क्या ! तुम्हारी तबियत तो ठीक है ?" मेरी बात सुनते ही सलोनी ने परेशान होकर मेरे सर को छूते हुए टेंपरेचर चैक किया ।
"नहीं.. वो मैं बस कल देर रात तक अपने प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी । इसीलिए सुबह जल्दी आंख नहीं खुली ।" मैंने जवाब देते हुए बात को दबा दिया ।
"तब तो ठीक है । वैसे पलक, तुम ना ज़्यादा काम मत किया करो ।" आर्या ने मेरी और फिर सलोनी की ओर मुड़कर, "तुम्हारे हिस्से का काम सलोनी कर लेगी । लेकिन तुम टिफिन लाना मत छोड़ना ।" मज़ाक में कहा ।
"इतना ही है, तो ख़ुद काम क्यों नहीं कर लेते ?! भुक्कड कही के ।" सलोनी ने शिकायत करते हुए आर्या के कंधे पर झूठे-मूठे मुक्के मारे ।
इसी तरह अपना खाना ख़त्म कर हम तुरंत कॉलेज की ओर निकल पड़े । आज दोपहर के बाद प्रिंसीपल सर के साथ हमारी मिटिंग थी । वो किसी काम से बाहर गए थे । इसीलिए कॉलेज के आसपास की जगहों का जायजा लेते हुए आर्या ने कुछ तस्वीरें खींची । और फिर हम कॉलेज के प्ले ग्राउंड तक पहुचें । हमने वहां के कई स्टूडेंट्स से खेल, पढ़ाई और दूसरी चीज़ों के बारे में बातचीत की । उनसे सवाल किए, जिससे हमें काफ़ी जानकारी मिली ।
उस कॉलेज का एक लड़का सलोनी के पूछे सवाल का जवाब दे रहा था । ठीक उसी वक़्त मुझे आभास हुआ, 'जैसे हमें और ख़ासकर मुझे कोई देख रहा है ।' मुझे लगा जैसे चंद्र यहीं हमारे आसपास मौजूद है । और यही सोचकर मैंने पीछे मुड़कर उस दिशा में देखा । पर अफ़सोस, वहां कोई नहीं था । ये मेरा भ्रम था । शायद मैं चंद्र के बारे में कुछ ज़्यादा ही सोचने लगी थी । लेकिन चंद्र को वहां ना पाकर मैं मायूस हो गई ।
उसे यहां देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता । क्योंकि वो इतने बरसों से उसी पेलीस से बंधा है । और मैं उसे बिना किसी बोझ के आज़ाद देखना चाहती थी ।
पर तभी आर्या की आवाज़ सुनकर मैं अपने ख़यालों से बाहर आ गई । और मायूसी भूलकर मैंने अपना काम जारी रखा । इस एक जगह से हमें स्पोर्ट्स, फ़ूड, एड्यूकेशन, फैशन और पोप्यूलर्टी को लेकर इतनी सारी जानकारी मिल गई थी कि, हम हमारे मैगज़ीन का पेहला इसू निकाल सकते थे । हमारी यहां की मुलाकात काफ़ी कामयाब रही और ये हमारे लिए बहोत अच्छी बात थी ।
अपना काम निपटाते ही कॉलेज गेट से निकलते हुए, "ग्रेट जोब, गाईज़ । हमारी पेहली रिसर्च एकदम कमाल की रही ।" आर्या ने काफ़ी खुश होकर कहा । और अचानक ही मेरे नज़दीक सरकते हुए उसने अपने कैमरा से तस्वीर (सेल्फी) निकाल ली ।
"बिल्कुल सही कहा, आर्या । बस एक ही जगह से हमें हर तरह के टॉपिक पर आर्टिकल मिल गये ।" आर्या की बात पर सलोनी ने, "हमें दूसरे टॉपिक्स के लिए अलग-अलग जगहों पर भटकना भी नहीं पड़ा । और अब हम हमारी मैगज़िन के फ़र्स्ट ईसू की डिजाइनिंग पर विचार कर सकते हैं ।" खुशी में चहकते हुए कहा ।
दोनों की बातें सुनकर, "मुझे लगता है, हमें कल से ही एडीटींग और टाइप सेटिंग का काम शुरू कर देना चाहिए ।" मैंने धीमे से कहा ।
मेरी तरफ़ देखते ही, "हम कल से ही बाक़ी के काम शुरू कर देंगे ।" आर्या ने कहा, "इसी खुशी में ट्रीट हो जाए ?" और चलते हुए अचानक वहीं रुक गया ।
"ज़रूर और वो भी तुम्हारी ओर से ।" सलोनी के खुश होकर कहते ही वो दोनों तेज़ी से आईसक्रीम स्टॉल की ओर दौड़ पड़े ।
लेकिन उनके जाने के बाद भी मैं अपनी सोच में डूबकर वहीं रूकी रही । तब अगले ही पल आर्या पलटकर मेरे पास वापस लौटा । और मुझसे बिना कुछ कहे मेरा हाथ पकड़कर मुझे अपने साथ खींचकर ले गया ।
उसकी इस हरकत ने मुझे चौका दिया । लेकिन उनके चेहरे पर खुशी देखकर मैंने कोई एतराज़ नहीं जताया । और इसी तरह ऑफिस के काम में घूमते हुए मेरा पूरा दिन गुज़र गया ।
घर लौटने के बाद घर का काम ख़त्म होने तक चंद्र भी वहां आ पहुंचा । लेकिन दोपहर को मैंने जो महसूस किया उसे लेकर उससे सवाल करने की मेरी हिम्मत नहीं हुई । क्योंकि अगर मैंने चंद्र से इस बात का ज़िक्र किया और कहीं ये महज़ एक भ्रम हुआ तो चंद्र को यहीं लगेगा कि, मैं अब भी उससे डरती हूँ । वो यहीं सोचकर परेशान होगा कि, वो मेरे दिल से अपना डर नहीं निकाल पाया । उसे ये अच्छा नहीं लगेगा और मैं ये नहीं चाहती थी ।
मैं चंद्र को परेशान नहीं करना चाहती थी । इसीलिए मैंने उस किस्से को भुला दिया । पर घर लौटने के बाद मैं इस बात को लेकर बेसब्र हो रही थी कि, आज चंद्र कौन सी कहानी सुनाने वाला था ?! और मेरे इसी सब्र को ख़त्म करते हुए चंद्र ने एक बिल्कुल नयी कहानी की शुरूआत की । संगीत के खौफनाक सुरों से सजी सेंराट, हरून और जिया की कहानी ।
रात 11:00 बजे ।
चंद्र की कहानी काफ़ी रहस्यमय, सनसनीखेज और प्यारी थी । कहानी के हर एक पेहलु समझाते हुए चंद्र बहोत अच्छे से मुझे कहानी और पारलौकिक दुनिया से जुड़ी छोटी-छोटी जानकारी दे रहा था । और मैं उसके हर शब्द को काफ़ी ध्यान से सुनकर समझते हुए अपनी डायरी में उतार रही थी ।
चंद्र काफ़ी गंभीरता से कहानी कहता जा रहा था । और मैं भी उसी ज़ज्बे के साथ कहानी को सुन रही थी । लेकिन अब समय गुज़रने के साथ मेरा शरीर थक चुका था और ना चाहते हुए भी मेरी पलकें बार-बार बंद हो रही थी । आखिरकार चंद्र ने भी मेरी थकान को भाप लिया और मुझे अपने कमरे में जाकर सोने के लिए केह दिया ।
चंद्र के कहते ही ना चाहते हुए भी मुझे सोने जाना पड़ा । लेकिन वो सही था । मुझे कल ऑफिस जाना था, जिस कारण मुझे आराम की ज़रूरत थी । इसलिए मैं उसकी बात नहीं टाल पायी । और चंद्र की निगरानी में अपने बिस्तर पर लेटते ही मुझे नींद आ गई ।
शुक्रवार सुबह 7:00 बजे ।
आज सुबह मैं जल्दी उठकर तैयार हो चुकी थी । कित्चन का सारा काम ख़त्म करने के बाद चाय-नाश्ता कर लिया था और अब मैं अपना टिफिन बॉक्स भी तैयार कर चुकी थी । पिछले दिन कहानी के चलते मैं देर रात तक नहीं सो पायी थी । जिस वजह से कल मैं ज़्यादा देर तक सो गई थी और मेरी इस लापरवाही ने चंद्र को बेवजह परेशान कर दिया था । इसीलिए आज मैं हमेशा से जल्दी तैयार हो चुकी थी । मगर सलोनी को आने में अभी समय था और चंद्र भी शायद मेरी नींद खुलने के इंतजार में यहां नहीं आया था ।
आज तक जब भी मुझे चंद्र की ज़रूरत पड़ी वो खुद मेरे सामने उजागर होता रहा है । पर उसके जाने के बाद मैं ये कभी जान नहीं पायी कि वो बाक़ी समय कहां बिताता था । इस लिए आज मैंने ख़ुद चंद्र के पास जाने का फैसला किया । हालांकि मैं ख़ुद चंद्र के पास जाना चाहती थी । मगर मैं.. नहीं जानती थी कि, मुझे उसे कहां ढूंढ़ना चाहिए । इसलिए मुझे एक अजीब सी बेचैनी ने घेर लिया ।
ड्रॉइंगरूम और हॉल से शुरूआत करते हुए मैंने चंद्र को महल की हर जगहों पर ढूंढा । मगर चंद्र से किए वादे के मुताबिक मैंने महल के दूसरे कमरों का कोई दरवाज़ा नहीं खोला । पर तब पूरे महल में ढूढ़ने के बाद मुझे महल की छत का ख़्याल आया ।
मैं चंद्र को खुश देखना चाहती थी । मगर फ़िर भी उसे ढूंढ़ने को लेकर मेरे मन में एक अनजान सी घबराहट भर गयी थी । चंद्र मुझे पेहले ही इस महल के बारे आगाह कर चुका था और मैं ये भी जानती थी कि, इस महल में चंद्र के सिवाय कोई और भी था, जो मेरे लिए जानलेवा ख़तरा साबित हो सकता था । और इसी डर के साथ हिचकिचाते हुए ही सही पर मैंने आगे बढ़ने की हिम्मत की ।
ऐसी जगहों ख़ामोशी भी आपको डरा देती है । बारीक से बारीक चीज़ों की आवाज भी आपके कानों में गुंज उठती । बेवजह आपकी धड़कने बढ़ जाती है । यहां तक की आपको अपने कदमों की आहट भी सेहमा देती । और उस वक़्त मैं बिल्कुल ऐसा ही महसूस कर रही थी ।
झिझक और डर के साथ कांपते हुए पैरों से मैंने अपना कदम टेरेस की पेहली सीढ़ी पर रखा । और इसी तरह सफ़ेद संग-ए-मरमर से बनी छत की सीढ़ियों पर से गुज़रते हुए मैं छत तक जा पहुंची ।
धीमे से अपना कदम टेरेस के फर्श पर रखते ही, "चंद्र ? चंद्र.. क्या तुम यहाँ हो ?" मैंने झिझकते हुए चंद्र को आवाज़ दी । पर मुझे कोई जवाब नहीं मिला ।
महल की छत काफ़ी बड़ी और खूबसूरत थी । छत को चारों ओर से सफेद रंग की छोटी और लंबी दीवार से घेरा गया था, जिससे छत से शहर के नज़रों को देखा जा सके । कगार पर बनी दीवार के साथ हर कोने में सफ़ेद और रंगीन संग-ए-मरमर के नक्काशीदार खंभों के साथ लाइट्स लगाई गई थी । महल की उस छत के एक हिस्से से पूरा गांव और वहां की इमारतें, तो दूसरे हिस्से से आसपास के जंगल, झरना और खाई जैसे प्राकृतिक नज़ारों को देखा जा सकता था ।
घबराहट के मारे मुझे अपने पैरों में हल्की कंपन महसूस हो रही थी और गला सूख रहा था । मगर फिर भी कांपते हुए ही सही पर मैं ऊपर छत पर जा पहुंची । छत के बड़े से दरवाज़े से गुज़रते ही मेरे सामने दूर तक गांव का खूबसूरत नज़ारा फैला था ।
लेकिन अब तक अपने कांपकपाते पैरों को आगे बढ़ाते हुए, "चंद्र..? चंद्र ?" मैंने चंद्र को आवाज़ दी ।
"पलक..! तुम यहाँ !?" अचानक उसकी आवाज़ सुनते ही मैंने झट से मुड़कर देखा । और चंद्र को अपने सामने पाते ही मैं तेज़ी से उसकी ओर दौड़ पड़ी ।
चंद्र को अपनी आंखों के सामने देखकर मेरी जान में जान आई । मैं काफ़ी डरी हुई थी और चंद्र के पास जाते ही उसे गले लगा लेना चाहती थी । पर उसकी पहेली नुमा तेज़ नज़र ने मुझे वहीं रोक दिया ।
"तु..तुमने जवाब क्यूँ नहीं दिया ?" उसके नज़दीक जाते ही, "मैं तुम्हें कब से आवाज़ दे रही थी । तुमने मुझे डरा दिया था ।" मेरी शिकायत भरी नज़रें चंद्र पर उठ गई ।
एक पल के लिए मेरी ओर देखते ही, "आई'एम सॉरी । मैंने तुम्हारी आवाज़ नहीं सुनी ।" चंद्र ने अपनी नज़रे फ़िर सामने की ओर मोड़ ली ।
मुझे चंद्र के चेहरे पर एक अजीब सी उदासी नज़र आई, "क्या बात है ? क्या मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकती हूँ ?" और मैं ये सवाल करने से नहीं रूक पायी ।
"नहीं, ऐसी कोई बात नहीं ।" चंद्र ने जवाब देते हुए, "मैं बस कुछ सोच रहा था ।" गहरी सोच के साथ धीमे से कहा । उसकी नज़रे अब भी दूर कहीं भटक रही थी ।
मगर चंद्र का जवाब सुनने के बाद भी मेरा मन नहीं मान रहा था । कुछ तो था, जो उसे परेशान कर रहा था । कोई तो कारण था, जिसे वो छुपा रहा था । लेकिन अगर इस वक़्त चंद्र मुझे अपनी परेशानी बांटने के काबिल नहीं समझता, तो मैं भी अपने बेतुके सवालों से उसे और परेशान नहीं करूंगी । लेकिन एक दिन मैं उसे मनाकर ही रहूंगी ।
चंद्र का ध्यान बंटाते हुए मैंने बात पलट दी, "यहां से सूर्योदय का नज़ारा कितनी खूबसूरत लगता है । है ना ?" और धीमे सुस्त कदमों से आगे बढ़ते हुए, मैं चंद्र के साथ छत की दूसरी ओर जा पहुंची । जहां से सूर्योदय का दिलकश नज़ारा साफ़ देखा जा सकता था ।
सूर्य की सुनहरी धूप मेरी त्वचा को छूकर मुझ में एक नयी उर्जा पैदा कर रही थी तो वहीं सुबह की ठंडी पनव शरीर में कंपकंपी भरने के साथ मेरे कानों में गुनगुना रही थी । भरा पूरा हरियाला जंगल, गहरी खाई, और झरमर करते पानी का झरना मेरी आंखों को ठंडक पहुंचा रहा था, तो वहीं सुबह-सवेरे हलचल मचाते पक्षियों की चहचहाहट मेरे कानों में प्रकृति का मंत्रमुग्ध कर देने वाला मीठा संगीत घोल रहे थे । प्रकृति का ये सुकून भरा एहसास मेरे होठों पर कब मुस्कान ले आया, मुझे पता ही नहीं चला ।
"हाँ.. ये बहोत ही.. खूबसूरत है ।" उन्हीं सुकून भरे लम्हों के बीच चंद्र की वो हल्की खनक भरी आवाज़ सुनते ही मैंने मुड़कर उसकी ओर देखा ।
चंद्र के वो शब्द मेरे मन की गहराई तक उतर गए । चंद्र की नज़रें मुझ पर ही बिछी थी और उसके होठों पर एक अदृश्य मुस्कान बिखरी हुई थी । सूरज की किरणें उसके अर्ध-पारदर्शी शरीर से आरपार गुज़र रही थी । पर फ़िर भी सुबह की तेज़ रोशनी उसके चेहरे के कुछ हिस्सों पर चमक रही थी । और मैं उस चमकती रोशनी में अपने अक्स को चंद्र की गहरी आंखों में देख सकती थी ।
चंद्र को अपनी ओर इस तरह से देखते हुए पाकर मैं बिल्कुल हैरान रह गई । मैं अपनी नज़रें उससे नहीं हटा पा रही थी । लेकिन फिर भी मैं चंद्र से और कुछ नहीं कह पाई । हमारे बीच एक ख़ामोशी फैल गई । लेकिन फ़िर भी ऐसा लग रहा था, जैसे हम दोनों एक-दूसरे से बहोत कुछ केह रहे ।
उसी वक़्त अचानक चंद्र ने अपनी नज़रें दूसरी ओर फेर ली । और तब उस दिशा में देखते ही मैंने सलोनी को अपनी स्कूटर पर बैठे हॉर्न बजाते देखा, जिसे मैं सुन तक नहीं पायी थी । और फ़िर सलोनी को देखते ही मैं जल्दबाज़ी में वहां से चली गई ।
शाम 6:00 बजे ।
आज घर वापस लौटने पर मैं काफ़ी खुश थी । पर इसके बावजूद अपने परिवार, अपने आई-बाबा के बग़ैर मेरी हर खुशी अधूरी थी । आज मैंने पहली बार अपना काम पूरी जिम्मेदारी से ख़त्म किया था और इसी के साथ मुझे अपनी पहली सेलरी मिली थी । अगर आज मेरे आई-बाबा यहां होते तो उन्हें मुझ पर नाज़ होता । वो बहुत खुश होते ।
मुझे सच में आई-बाबा और भाई की कमी महसूस हो रही थी । मैं काफ़ी मायूस थी और अपनी आंखों में उतर आए पानी की वजह से मेरी नज़रें धुंधला गई थी । लेकिन इसके बावजूद मैं पहले की तरह नाउम्मीद या हताश नहीं थी ।
"क्या तुम ठीक हो ?" अचानक चंद्र की आवाज़ सुनकर मैंने सर उठाकर देखा ।
चंद्र अपने हमेशा वाले कपड़ों में बिल्कुल मेरे सामने खड़ा था । पर उसे देखते ही मैंने तुरंत अपना मुंह फेर लिया । और अपने आंसू पोंछते हुए सोफा से खड़ी हो गई ।
उसके करीब जाते ही, "हाँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ ।" मैंने बनावटी मुस्कुराहट के साथ कहा ।
"असल में, आज मैंने हमारी मैगज़ीन के पहले ईसू का सारा काम ख़त्म कर लिया है.." अपने आंसू को छुपाते ही होठों पर बनावटी मुस्कान लिए, "और आज ही मुझे अपनी पहली सेलरी मिली है ।" मैंने चंद्र को अपना पहला सेलरी चैक दिखाया । लेकिन मैं अब भी अपनी नज़रें उठाकर चंद्र की आंखों में नहीं देख पायी ।
"और शायद.. इसीलिए तुम अपनी फेमिली को मिस कर रही हो ?" पर तब चंद्र की बात सुनते ही मेरी हैरत भरी नजरें उस पर उठ गई । और एक बार फ़िर मेरी आंखों में पानी भर आया ।
"हाँ । लेकिन मैं ठीक हूँ ।" अपने आंसू पोंछते ही मैंने चंद्र की ओर देखा । "हाँ, मैं उन्हें बहुत ज़्यादा मिस कर रही हूँ । लेकिन मैं पहले की तरह नाउम्मीद नहीं हूँ ।" चंद्र बिना कहे मेरे मन की बात समझ चुका था, जिसे जानकर मेरे होठों पर एक फीकी सी मुस्कान बिखर गई ।
मेरी आंखों में गहराई से देखते हुए, "क्या तुम जानती हो, तुम एक बहोत ही काबिल और निडर लड़की हो । और मुझे पूरा यकीन है, तुम्हारे परिवार को भी तुम पर उतना ही गर्व होगा, जितना कि मुझे है ।" चंद्र ने धीमे से पर दृढ़ता के साथ कहा और उसकी बात मेरे कानों पर पड़ते ही मेरी मुस्कान पेहले से थोड़ी बड़ी हो गई ।
"आई एम रियलि प्राउड़ ऑफ यू, पलक ।" छोटी सी मुस्कान के साथ चंद्र के कहते ही, "शुक्रिया..!" मैंने धीमे से कहा ।
मेरे जवाब में अपनी पलके झपकाते ही, "तो अब मैं चलता हूं । तुम आराम करो । उसके बाद हम कहानी आगे बढ़ाएंगे ।" अगले पल चंद्र मेरी नज़रों से ओझल हो गया ।
चंद्र के जाने के बाद मैंने घर के सभी काम ख़त्म किए । खान बनाने के बाद कित्चन का बाक़ी काम ख़त्म होने पर मैं खाना खा चुकी थी । और यहाँ-वहाँ के सभी छोटे-मोटे काम ख़त्म होते ही मैं ड्रॉइंगरूम में लौट आई ।
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ओह! यह छवि हमारे सामग्री दिशानिर्देशों का पालन नहीं करती है। प्रकाशन जारी रखने के लिए, कृपया इसे हटा दें या कोई भिन्न छवि अपलोड करें।

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Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें