Chapter 18 - Palak (part 2)

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हैलो दोस्तो,
आखिरकार, मैं आपकी ओथर बी. तळेकर फिर लौट आई हूँ असंभव के एक बिल्कुल नये भाग के साथ ।
मुझे उम्मीद है कि, आपके इसे पढ़ने में मज़ा आए । मुझे अपने अनुभव और कीमती वोट देना ना भुले । आपके अनुभव मुझे हमेशा और ज़्यादा अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करते हैं ।
बिंदास होकर अपने फीडबैक और प्रतिक्रया मेरे साथ इस कमेंट बॉक्स में शेयर करना ना भूले
और अपने पर्सनल 'असंभव मोमेंटम ' हेसटेग  #MyAsmbhavMomemt के साथ शेयर ज़रुर करे ।
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रात  9:30  बजे ।
हर  रोज  की  तरह  मैं  टेलीविजन  ऑन  करके  सामने  सोफा  पर  बैठी  थी ।  मेरे  हाथ  में  मेरी  ज़रूरत  की  सारी  चीजें  मौजूद  थी ।  और  अब  बस  मुझे  चंद्र  के  लौटने  का  इंतजार  था ।  लेकिन  आज  कहानी  शुरू  करने  से  पहले  मुझे  एक  और  काम  करना  था,  जिसमें  मुझे  चंद्र  के  हेल्प  की  ज़रूरत  थी ।
"क्या  हुआ ?  काफ़ी  गहरी  सोच  में  नज़र  आ  रही  हो ?"  अचानक  मैंने  कुछ  दूरी  से  चंद्र  की  आवाज  सुनी,  "तुम्हें  तो  आज  खुश  होना  चाहिए ।"  जो  धीमे-धीमे  मेरे  नज़दीक  आ  रही  थी ।
चंद्र  की  आवाज़  सुनते  ही  मेरे  होठों  पर  मुस्कान  आ  गई ।  पर  मैं  अब  भी  चौकते  हुए  सर  झुकाए  बैठी  थी ।  मैं  उसे  देख  नहीं  सकती  थी ।  पर  फिर  भी  उसकी  बढ़ती  जाती  नज़दीकी  मैं  साफ़  महसूस  कर  रही  थी ।
"खुश  तो  मैं  हूँ ।"  आखिरकार,  "लेकिन  हाँ,  मैं  कुछ  सोच  रही  थी ।"  मैंने  सर  उठाकर  चंद्र  की  ओर  देखा ।  पर  उसने  बिना  कुछ  कहे सवाल  भरी  नज़रों  से  मेरी  ओर  देखा ।
वो  हमेशा  की  तरह  मेरे  सामने  खड़ा  था ।  या  सही  मायनों  में  कहा  जाए  तो  हवा  में  तैर  रहा  था,  क्योंकि  उसके  पैरों  का  निचला  कुछ  हिस्सा  अदृश्य  था ।
"असल  में,  मैं  हमारी  मैगज़ीन  के  अगले  इसू  के  बारे  में  सोच  रही  थी ।  मैं  अगले  इसू  के  टॉपिक्स  पहले  ही  सोच  लेना  चाहती  हूं,  जिससे  हम  बाद  में  उस  टॉपिक  पर  अच्छे  से रिसर्च  कर  पाए ।"  चंद्र  के  अनकहे  सवाल  का  जवाब  देते  हुए  मैंने  कहा ।
"अच्छा  ख़्याल  है ।"  चंद्र  ने  कहा ।
"और  मुझे  इसमें  तुम्हारी  हेल्प  चाहिए ।"  मैंने  धीमे  से  सहमति  मांगी ।
"हां,  बताओ  मुझे  क्या  करना  है ?"  चंद्र  बिना  किसी  एतराज़  के  मेरी  हेल्प  करने  को  राजी  हो  गया ।
"तुम  तो  जानते  ही  हो  कि,  ये  मैगज़ीन  यंग  इंडियन्स  के  लिए  है ।  और  हमें  पिछले  टॉपिक  की  तरह  इस  में  भी  कोई  ऐसा  टॉपिक  चाहिए  जो  यंगस्टर्स  पर  गहरा  असर  करता  हो ।"  मैंने  सोचते  हुए  धीमे  से  कहा ।
"क्राईम ।"  मेरी  बात  सुनते  ही  चंद्र  ने  झट  से  कहा ।
वो  किसी  बात  को  लेकर  सोच  में  डूबा  था ।  उसकी  नज़रें  कही  दूर  भटक  रही  थी ।  चंद्र  इस  बात  को  लेकर  सच  में  काफी  गंभीर  था ।
अगले  ही  पल  मेरी  तरफ  देखते  ही,  "आज-कल  यंगस्टर्स  में  क्राईम  काफ़ी  बढ़ता  जा  रहा  है ।  और  ये  गहराई  से  सोचने  वाली  बात  है ।"  चंद्र  ने  अपनी  बात  समझाते  हुए  कहा,  " 'इसे  किस  तरह  से  रोका  या  कम  किया  जाए'  ये  एक  बहोत  बड़ी  कामयाबी  हो  सकती  है ।  और  मुझे  यकीन  है  कि,  तुम  इस  पर  बहोत  अच्छी  रिसर्च  करोगी ।"  और  मैं  भी  उसकी  बात  से  पूरी  तरह  सहमत  थी ।
"मैं  तुम्हारी  बात  से  सहमत  हूँ ।  हम  इसी  टॉपिक  पर  काम  करेंगे ।  शुक्रिया.!"  अपनी  सहमति  जताते  ही,  "तो  अब  हम  कहानी  शुरू  करे ?"  मैं  जल्दी  से  अपनी  डायरी  और  पेन  लेकर  बैठ  गई ।
"ज़रूर ।"  चंद्र  ने  छोटी  सी  मुस्कान  के  साथ  कहते  हुए,  "तो  उस  चाय  वाले  से  बात  करने  के  बाद  सेंराट  के  ज़ोर  देने  पर  वो  चारों  दोस्त  कांजी  राम  काका  के  घर  पहुंचे ।"  अपना  मुंह  फेर  लिया  और  हमेशा  की  तरह  मेरे  आसपास  चक्कर  काटते  हुए  उसने  कहानी  कहना  शुरू  किया ।
"तो  क्या  सेंराट  को  उसके  सवालों  का  जवाब  मिला ?"  मैं  जल्दबाजी  में  केह  गई ।  लेकिन  चंद्र  को  गहरी  चिंता  में  देखकर  मैं  शांत  हो  गई ।
"हां ।  उनके  घर  पहुंचते  ही  उस  चाय  वाले  ने  सभी  लोगों  काका  से  मिलवाया  और  कांजी  काका  से  कहा  कि,  'वो  लोग  उससे  कुछ  बात  करना  चाहते  हैं ।'  इतना  केहकर  वो  वहां  से  चला  गया ।  और  फिर  सेंराट  ने  काका  को  सारी  हकीक़त  बताई ।  उसने  कहा  कि,  'वो  शहर  से  आए  हैं  और  यहां  घट  रही  अजीबोगरीब  गतिविधियों  के  बारे  में  जानना  चाहते  हैं ।'  तब  सेंराट  की  बात  सुनकर  पेहले  तो  उन्होंने  मना  कर  दिया  और  चेतावनी  दी  के,  'अगर  सही-सलामत  रहना  चाहते  हो  तो  घर  लौट  जाओ ।  वरना  उन  सबका  हश्र  भी  वहीं  होगा,  जो  बाक़ी  कुछ  बेकसूर  लोगों  का  हुआ  था ।  लेकिन  सभी  लोगों  के  ज़ोर  देने  पर  वो  उनके  सवालों  के  जवाब  देने  को  मान  गए ।  तब  सेंराट  ने  उनसे  पूछा  कि,  'उनके  गांव  में  जो  अजीबोगरीब  वाक्या  होते  आए  हैं,  इस  सबकी  शुरूआत  कहां  से  हुई ?  ये  हादसे  शुरू  कैसे  हुए ?'  सेंराट  का  सवाल  सुनकर  एक  पल  के  लिए  कांजी  राम  काका  हैरान  होकर  गहरी  सोच  में  डूब  गए,  जैसे  वो  अतीत  के  आईने  से  उन  डरावने  पलों  को  देख  रहे  थे ।  लेकिन  फ़िर  सेंराट  का  विश्वास  देखकर  उन्होंने  सारी  सच्चाई  बताने  का  फैसला  किया ।  सेंराट  पर  भरोसा  करते  हुए  कांजी  काका  ने  कहना  शुरू  किया ।  'ये  बहुत  पुरानी  बात  है ।  जब  हमारा  कौसंबा  एक  खुशहाल  गांव  हुआ  करता  था ।  ये  कहानी  करीब  पचहत्तर  साल  पेहले  शुरू  हुई  थी ।  उस  ज़माने  में  हमारा  गांव  अंग्रेज  सरकार  के  आधीन  था ।  सारा  गांव  उनके  जुल्मों  से  परेशान  था ।  और  ऐसे  समय  में  महाराज  देवाजी  पंत  के  बाद  सिर्फ़  तहसीलदार  मल्हार  साहेब  ही  हमारा  सहारा  थे ।  वो  यहां  के  सरपंच  और  बहुत  बड़े  जमींदार  थे ।  अंग्रेज  सरकार  के  जुल्मों  से  राहत  देने  के  लिए  उन्होंने  अपने  बलबूते  पर  गांववालों  की  भलाई  के  लिए  बहोत  कुछ  किया ।  उन्होंने  अपनी  संपत्ति  खर्च  करके  लोगों  के  लिए  सड़कें,  कुंए,  कुंड  और  पाठशाला  बनवाई ।  सिंचाई  के  लिए  हर  किसी  के  खेत  तक  पानी  पहुंचाया ।  और  हर  छोटी-बड़ी  मुसीबत  में  हमारे  साथ  खड़े  रहे ।  सब  कुछ  अच्छा  चल  रहा  था  कि,  एक  दिन  अचानक  महाराज  देवाजी  पंत  ने  तहसीलदार  साहेब  को  बुलावा  भेजा ।  और  तत्काल  ही  मिलने  के  लिए  बुलाया ।  तहसीलदार  मल्हार  साहेब  अचानक  इस  बुलावे  को  पाकर  परेशान  हो  गए ।  और  तुरंत  महाराज  के  सामने  हाज़िर  हुए ।  लेकिन  महाराज  से  मिलने  पर  उनकी  सभी  चिंताएं  दूर  हो  गई  जब  उन्हें  पता  चला  कि,  राजकुमार  बाजी  पंत  'तहसीलदार  साहेब  की  बेटी  'स्वर्णरेखा'  से  प्रेम  करते  थे ।  और  महाराज  उन  दोनों  का  विवाह  करवाना  चाहते  थे ।'"  चंद्र  बारीकी  से  कहानी  के  हर  पेहलू  को  समझा  रहा  था,  जिसे  सुनकर  मैं  चंद्र  की  कहानियों  की  दुनिया  में  खोती  चली  गई ।
"कितने  खुशी  की  बात  है  कि,  महाराज  ने  ख़ुद  अपने  बेटे  के  प्यार  को  समझकर  उनकी  शादी  करवाने  के  फैसला  किया ।  और  राजकुमार  ने  भी  बिना  डरे  अपने  प्यार  को  अपने  पिता  के  सामने  ज़ाहिर  किया ।"  चंद्र  की  बातें  सुनकर  मैं  ये  कहने  से  ख़ुद  को  नहीं  रोक  पाई ।
"हाँ,  बिल्कुल  सही  कहा  तुमने ।"  मेरी  बात  सुनकर  चंद्र  किसी  सोच  में  पड़  गया,  "जब  माँ-बाप  के  आशिर्वाद  से  अपने  प्यार  से  आपकी  शादी  हो  तो  उससे  अच्छी  बात  और  क्या  हो  सकती  है ।"  और  उसकी  नज़रें  दूर  कहीं  अवकाश  में  ठहरी  थी ।
"हां,  लेकिन  फिर  भी  पता  नहीं  क्यूँ  कुछ  बच्चे  अपने  प्यार  के  जोश  में  अपने  माता-पिता  के  प्यार  को  नज़रअंदाज़  क्यूँ  कर  जाते  हैं ?!  क्यूँ  उनसे  बगावत  कर  बैठते  हैं ?!"  चंद्र  की  बातें  सुनकर  मुझे  अपने  आई-बाबा  की  याद  आ  गई  और  मैं  अपनी  सोच  के  बीच  कह  गयी ।
"शायद  ऐसे  बच्चों  को  अपने  आई-बाबा  के  प्यार  की  कीमत  तभी  समझ  आती  होगी,  जब  उनके  अपने  बच्चे  उनके  साथ  वैसे  ही  पेश  आए  जैसा  वो  आते  थे ।"  चंद्र  ने  मेरी  तरफ  देखकर  धीमे  से  कहा ।
मगर  चंद्र  की  चिंता  में  डूबी  नज़रों  को  ख़ुद  पर  उठी  देखते  ही  मैं  समझ  गई  कि,  चंद्र  ने  मेरे  दुख  को  पहचान  लिया  था ।  वो  जान  चुका  था  कि,  मैं  अपने  आई-बाबा  को  बहोत  मिस  कर  रही  थी ।
"सही  है ।"  हिचकिचाते  हुए  ही  सही  मगर  मैंने  बात  को  पलट  दिया,  "पर  फिर..  आगे  क्या  हुआ ?"  और  चंद्र  से  कहानी  के  बारे  में  पूछ  बैठी ।
"उसके  बाद  सब  कुछ  बिल्कुल  वैसा  ही  चल  रहा  था,  जैसा  की  सब  चाहते  थे ।"  दबी  हुई  मुस्कान  के  साथ  कहते  हुए,  "हर  कोई  राजकुमार  बाजी  और  स्वर्णरेखा  की  शादी  की  तैयारियों  में  लगा  था ।  लेकिन  राजकुमार  इस  बात  से  बेखबर  थे  कि,  उनकी  इस  खुशी  को  किसी  की  नज़र  लग  चुकी  थी ।"  चंद्र  आगे  बढ़  गया ।
अच्छा  ही  हुआ  कि,  चंद्र  ने  मेरी  उन  बातों  को  नज़रअंदाज़  कर  दिया ।  वरना  अगर  उसे  ये  पता  चल  जाता  कि,  शादी  की  बात  सुनकर  मुझे  अपने  आई-बाबा  की  याद  आ  रही  थी ।  तो  उसे  लगता  कि,  मैं  फिर  अपने  साथ  हुए  हादसे  को  लेकर  बेचैन  हूं ।  और  मेरी  वजह  से  वो  परेशान  हो  जाता ।
"क्या  मतलब ?"  लिखते  हुए  अचानक  इस  सवाल  के  साथ  मेरे  हाथ  रुक  गए ।
चक्कर  काटते  हुए  अचानक  मेरी  ओर  मुड़ते  ही,  "मतलब  के,  कोई  था  जो  ये  नहीं  चाहता  था  कि,  राजकुमार  बाजी  और  स्वर्णरेखा  की  शादी  हो ।"  चंद्र  ने  जवाब  दिया ।
"लेकिन  किसी  को  उन  दोनों  की  शादी  से  क्या  ऐतराज़  हो  सकता  था ?  आखिरकार  वो  दोनों  बस  शादी  ही  तो  करने  वाले  थे  कोई  राजसी  करार  या  समझौता  तो  नहीं !?"  सोच  और  परेशानी  के  चलते  मैं  कह  गई ।
"बिल्कुल  सही  कहा  तुमने ।  सेंराट  और  उसके  दोस्त  भी  यही  जानना  चाहते  थे ।  तब  उसके  सवाल  पर  कांजी  काका  ने  बताया  कि,  'राजकुमार  बाजी  अपने  विवाह  को  लेकर  इतने  खोये  हुए  थे  कि,  वो  अपने  बचपन  की  दोस्त  मोहिनी  के  द्वेष  को  नहीं  देख  पाए ।  बाजी  का  विवाह  तैय  होने  पर  वो  जल  उठी  और  गुस्से  में  पागल  सी  हो  गई ।  मोहिनी  राज  परिवार  के  सबसे  वफादार  और  काबिल  सेनापति  सहदेव  की  बेटी  थी,  जो  वफादार  तो  थे ।  लेकिन  उन्हें  पूरी  उम्मीद  थी  कि,  राजकुमार  उनकी  बेटी  से  ज़रूर  विवाह  करेंगे ।  और  एक-न-एक  दिन  वो  इस  शाही  खानदान  का  हिस्सा  बनेगी ।  लेकिन  ऐसा  नहीं  हुआ  और  वो  गुस्सा  हो  गया ।  पर  वो  महाराज  के  सामने  इस  विवाह  का  विरोध  नहीं  कर  पाया ।  सहदेव  अपनी  बेटी  मोहिनी  की  परेशानी  नहीं  देख  पाया ।  इसलिए  उसने  स्वर्णरेखा  को  मारने  की  साजिश  रच  डाली ।  मोहिनी  ने  बाजी  को  अपने  वश  में  करने  के  लिए  बहोत  से  नुस्खे  अपनाएं  थे ।  लेकिन  इस  बार  तो  उसने  अपने  प्यार  तक  की  परवाह  ना  करते  हुए  उसने  ऐसा  कदम  उठाया,  जो  बहोत  भयानक  था ।  मोहिनी  अपने  आवेश  में  आकर  जंगल  के  सबसे  गहरे  हिस्से  में  जा  पहुंची,  जहां  वो  अपनी  जायज़-नाजायज़  ख्वाहिशें  पाने  के  लिए  हमेशा  अनुष्ठान  करने  जाती  थी ।  गहरे  जंगल  में  गुफा  के  अंदर  बनी  एक  ऐसी  जगह,  जहां  तामसी  पूजा  (निषेध  पूजा),  जादू-टोना  और  तंत्र  विद्या  के  ज़रिए  मोहिनी  अपने  अनुष्ठान  किया  करती  थी ।'  कांजी  काका  की  बात  पर,  'इसका  मतलब,  मोहिनी  काला  जादू  करती  थी ?'  हरून  बोल  पड़ा ।  'उस  जमाने  से  ही  लड़कियां  सबको  अपनी  उंगलियों  पर  नचाने  की  ख्वाहिश  रखती  थी ।'  कौशिक  ने  बात  हल्के  में  लेते  हुए  मज़ाक  उड़ाना  चाहा ।  पर  जिया  की  गंभीर  नज़रें  देखकर  वो  ख़ामोश  हो  गया ।  'हां,  वो  अकसर  ऐसी  पूजा  किया  करती  थी ।'  कांजी  काका  ने  कहना  जारी  रंखा,  'विवाह  के  दिन  सहदेव  की  योजना  के  अनुसार  वो  स्वर्णरेखा  के  घर  उसे  मारने  जा  पहुंचा ।  लेकिन  इससे  पहले  ही  राजकुमार  बाजी  को  इस  साजिश  का  पता  लग  चुका  था ।  राजकुमार  बाजी  स्वर्णरेखा  को  बचाकर  अपने  महल  की  ओर  चल  पड़े ।  लेकिन  तभी  अचानक  किसी  आवाज़  को  सुनकर  बाजी  बिल्कुल  मंत्रमुग्ध  हो  गया  और  स्वर्णरेखा  को  छोड़कर  जंगल  की  तरफ  बढ़  गया ।  उस  मायावी  संगीत  को  सुनते  ही  बाजी  ने  जैसे  अपने  होश  खो  दिए ।  जैसे  वो  नींद  में  चल  रहा  था ।  बाजी  के  जाते  ही  स्वर्णरेखा  अकेली  पड़  गई ।  और  इसी  मौके  का  फायदा  उठाते  हुए  सहदेव  ने  स्वर्णरेखा  की  हत्या  कर  दी ।  मगर  जब  बाजी  ने  अपनी  स्वर्णरेखा  की  दर्दनाक  चीख  सुनी  तो  वो  उस  संगीत  के  मायाजाल  से  बाहर  आ  गए ।  लेकिन  जब  तक  वो  अपने  प्रेम  को  बचा  पाते  तब  तक  बहोत  देर  हो  चुकी  थी ।  स्वर्णरेखा  ने  राजकुमार  बाजी  की  बाहों  में  आते  ही  अपना  दम  तोड़  दिया ।  मगर  फिर  भी  बाजी  ने  अपनी  स्वर्णरेखा  को  अकेला  नहीं  छोड़ा ।  वो  स्वर्णरेखा  को  अपनी  बाहों  में  उठाए  तेज़ी  से  महल  की  तरफ  बढ़  गए ।'"  मैं  बिना  रूके चंद्र  के  कहे  शब्दों  अपनी  डायरी  में  लिखती  रही ।
लेकिन  इस  बीच  अचानक  मैंने  अपनी  आंखों  में  नमी  महसूस  की ।  और  पलटकर  मुझे  देखते  ही  चंद्र  मेरे  पास  आया ।
"क्या  तुम  ठीक  हो ?"  चंद्र  ने  मेरी  आंखों  में  देखकर  मेरी  फिक्र  करते  हुए  सवाल  किया ।
अपना  मुंह  फेरकर,  "हंहम  हां,  मैं  ठीक  हूं ।"  मैंने  अपने  आंसुओं  को  दूर  दिया ।
"नहीं ।  तुम  ठीक  नहीं  हो ।"  चंद्र  ने  मेरे  सामने  आकर  कहा ।
"हां,  शायद ।  लेकिन,  इट्स  ओके ।  मैं  बस  थोड़ी  सी  जज्बाती  हो  गई  थी  और  कुछ  नहीं ।"  चंद्र  की  फिक्र  के  आगे  आखिरकार  मुझे  सच  मानना  पड़ा ।
"ठिक  है ।  जैसा  तुम  चाहो ।"  चंद्र  धीमे  से  कहते  हुए  फिर  उठ  गया,  "तो  कांजी  काका.."  लेकिन  इससे  पहले  कि  वो  मुझसे  दूर  जा  पाता,  "चंद्र ?"  मैंने  उसे  रोक  लिया ।  उसके  मुड़ते  ही,  "क्या  तुम  यहीं  मेरे  पास  बैठकर  कहानी  नहीं  सुना  सकते ?"  मैंने  धीमे  सवाल  किया ।
मेरे  कहते  ही  चंद्र  के  चेहरे  पर  हैरानी  आ  गई ।  पर  इसके  बावजूद  बग़ैर  किसी  ऐतराज़  के  वो  मुझसे  दूरी  बनाकर  सोफा  के  दूसरे  छोर  पर  बैठ  गया ।  उसे  अपनी  बात  मानते  देख  मेरे  होठों  पर  हल्की  सी  मुस्कान  उभर  आई ।
"'उसी  दौरान  वो  मनहूस  धुन  फिर  सुनाई  दी ।  पर  इस  बार  वो  धुन  बाजी  के  दिलो-दिमाग  पर  कोई  प्रभाव  नहीं  डाल  सकी ।  वो  तो  स्वर्णरेखा  को  खोने  के  डर  और  गहरे  गम  में  तेज़ी  से  आगे  बढ़ते  रहे ।  लेकिन  जब  बाजी  के  खिलाफ  माया  रचने  वाली  उनकी  दोस्त  मोहिनी  ने  ये  देखा  तो  वो  बरदाश्त  नहीं  कर  पाई ।  और  अपने  असली  रूप  में  उनके  सामने  चली  आई ।  राजकुमार  अपनी  दोस्त  का  इतना  घिनौना  रूप  देखकर  हैरान  रह  गए ।  लेकिन  बाजी  मोहिनी  की  असलियत  समझ  गए  थे ।  और  फिर  बिना  कुछ  सोचे  बाजी  ने  अपनी  तलवार  मोहिनी  के  पेट  में  उतार  दी ।  मोहिनी  ने  कभी  ये  नहीं  सोचा  था  कि,  बाजी  अपनी  दोस्त  को  मारेंगे ।  मगर  वो  राक्षसी!  मरते  समय  भी  उसे  चैन  नहीं  मिला  और  अपने  आख़री  समय  में  उसने  कसम  खाई  कि,  वो  बाजी  और  उसके  राज्य  के  लोगों  को  कभी  सुखी  नहीं  रहने  देगी ।"  चंद्र  के  इन  शब्दों  से  कौसंबा  गांव  का  रहस्य  धीरे-धीरे  मेरे  सामने  खुलने  लगा  था ।
मोहिनी  के  क्रोध  और  गुस्से  ने  सिर्फ  बाजी  और  स्वर्णरेखा  की  ज़िंदगी  ही  नहीं  बल्कि  पूरे  गांव  को  मुसीबत  की  भट्ठी  में  झोंक  दिया  था ।  उसकी  जलन  ने  उसके  अपने  प्यार  को  ही  नहीं  बल्कि  उसके  पूरे  राज्य  को  तबाह  कर  दिया ।  भला  कोई  प्यार  करनेवाला  इंसान  इतना  बेरहम  कैसे  हो  सकता  है ?!
"कुछ  भी  हो ।  लेकिन  मोहिनी  को  ऐसा  नहीं  करना  चाहिए ।"  अचानक  अपनी  सोच  के   बीच,  "मोहिनी  को  शिकवा  अपने  दोस्त  से  था ।  इसमें  गांववालों  का  कोई  कसूर  नहीं  था ।  उसे  उन्हें  तकलीफ  देने  का  कोई  अधिकार  नहीं  था ।"  वो  शब्द  मेरे  मुंह  से  निकल  गए ।
"हां,  कई  बार  दूसरों  की  वजह  से  तकलीफ  किसी  और  को  सहनी  पड़ती  है ।  और  कई  बार  किसी  दूसरे  के  कारण  हम  सज़ा  किसी  और  को  दे  बैठते  है ।"  गहरी  सोच  के  साथ  कहते  हुए,  "जैसा  मैंने  किया  था ।"  चंद्र  के  चेहरे  पर  उदासी  छा  गई ।  और  उसने  अपनी  मायूस  नज़रो  से  मेरी  ओर  देखा ।
चंद्र  के  चेहरे  पर  उदासी  देखकर  मैं  जान  गई   कि,  शुरुआत  में  चंद्र  जिस  तरह  मेरे  साथ  पेश  आया  था  उसे  लेकर  वो  अब  भी  परेशान  था ।  वो  मेरे  साथ  किए  अपने  सलूक  से  आज  भी  बहोत  गिल्ट  में  था ।
चंद्र  की  ओर  सरकते  ही,  "उसमें  तुम्हारा  कोई  दोष  नहीं  था ।  तुमने  जो  किया  वो  मेरी  खातिर  किया ।  और  सिर्फ़  तुम्हारी  वजह  से  आज  मैं  ज़िंदा  हूँ ।"  मैंने  उसकी  तरफ  देखकर  धीमे  से  कहा ।  और  मेरे  कहते  ही  उसकी  कई  सवालों  भरी  नज़रे  मुझ  पर  उठ  गई ।  पर  उसने  एक  लफ्ज़  तक  अपने  होठों  से  नहीं  निकाला ।
"तो,  उसके  बाद  गांव  के  लोगों  का  क्या  हुआ ?"  चंद्र  को  कशमकश  में  देख  मैंने  हल्की  मुस्कान  के  साथ  बात  को  पलट  दिया ।
मुझे  देखकर  आख़िरकार  चंद्र  के  होठों  पर  भी  फीकी  सी  मुस्कान  आ  गई ।  पर  वो  अब  भी  उस  बात  को  भूला  नहीं  पाया  था ।
"सेंराट  अपने  सभी  सवालों  के  जवाब  पाना  चाहता  था ।  और  कांजी  राम  काका  भी  इस  गुत्थी  को  सुलझाने  में  उनकी  मदद  कर  रहे  थे ।"  कहानी  पर  लौटते  हुए  चंद्र  ने  फिर  केहना  शुरू  किया ।  "सेंराट  और  उसके  दोस्त  कांजी  काका  के  ज़रिए  कौसंबा  में  घट  रही  अजीबोगरीब  घटनाओं  के  बारे  में  काफी  कुछ  जान  चुके  थे ।  लेकिन  अभी  ऐसी  बहोत  सी  बातें  थी,  जिससे  वो  सभी  दोस्त  अब  भी  अनजान  थे ।  और  तब  आगे  की  बात  जानने  के  लिए  सेंराट  सवाल  करने  ही  वाला  कि,  तभी  वहां  वो  चाय  वाला  आ  पहुंचा ।  उसने  आते  ही  बताया  कि,  'कुछ  बच्चे  खेलते  हुए  रास्ता  भटक  गए  थे ।  और  उसके  किसी  दोस्त  को  वो  सभी  बच्चे  जंगल  के  पास  बेहोश  पड़े  मिले ।'  इतना  सुनते  ही  कांजी  काका  के  साथ  वो  सभी  लोग  जल्दबाज़ी  में  उस  जगह  जा  पहुँचे ।  सेंराट  और  बाकी  लोगों  ने  देखा  कि,  उन  बच्चों  में  से  दो-तीन  बच्चे  अब  भी  वहीं  बेहोश  पड़े  थे ।  और  उन्हें  एक-एक  करके  वहां  से  ले  जाया  जा  रहा  था ।  उन्हें  देखते  ही,  'क्या  हुआ  बेटा,  कुछ  पता  चला ?'  कांजी  राम  काका  ने  जानना  चाहा ।  तब  वहां  मौजूद  एक  आदमी  ने  बताया  के,  'खेलते  हुए  कुछ  बच्चे  अपना  रास्ता  भटक  गए ।  और  जंगल  के  नज़दीक  पहुंचते  ही  किसी  चीज़  को  देखकर  डर  गए ।  और  अचानक  बेहोश  हो  गए ।'  मगर  सेंराट  ने  घटनास्थल  पर  पहुंचते  ही  कुछ  अजीब  महसूस  किया ।  उसे  किसी  पारलौकिक  शक्ति  का  आभास  पहले  ही  हो  चुका  था ।  इस  बात  का  एहसास  होते  ही  सेंराट  ने  कांजी  काका  से  सवाल  किया ।  पर  तब  इन्कार  करते  हुए  उन्होंने  कहा  कि,  'नहीं  शाम  होने  वाली  है ।  इसलिए  अब  जितना  जल्दी  हो  सके  उन्हें  अपने  होटल  लौट  जाना  चाहिए ।  अंधेरा  होने  के  बाद  इस  गांव  में  बाहर  घूमना  ठीक  नहीं ।'  और  उसके  बाद  ना  चाहते  हुए  भी  सेंराट  अपने  मन  में  कई  सवाल  लिए  वापस  होटल  लौट  आया ।  उस  रात  सेंराट  अपने  कमरे  में  था ।  लेकिन  वापस  लौटने  पर  भी  उसके  मन  में  वही  सारी  बातें  चल  रही  थी,  जो  आज  पूरे  दिन  में  उसने  सुनी  थी ।  महसूस  की  थी ।  तब  अचानक  कमरे  के  बाहर  से  किसी  संगीत  की  आवाज़ें  सुनते  ही  सेंराट  हैरान  रह  गया ।  सच्चाई  जानने  के  बाद  उन  सुरों  को  सुनते  ही  वो  खामोश  नहीं  बैठ  पाया  और  उसने  बाहर  जाकर  पता  करना  चाहा ।  मगर  कमरे  के  आसपास  दूर-दूर  तक  उसे  कोई  नज़र  नहीं  आया ।  पर  उसी  रात  सेंराट  ने  काफी  अजीबोगरीब  सपना  देखा ।  उसने  देखा  कि,  'कुछ  बच्चें  बाहर  खेल  रहे  थे ।  तब  खेलते  समय  अचानक  बिल्लियों  का  एक  झुंड  लड़ते  हुए  वहां  आ  पहुंचा  और  उन  बच्चों  को  बचकर  वहां  से  भागना  पड़ा ।  भागते  हुए  वो  जंगल  तक  जा  पहुंचे  और  किसी  खौफनाक  परछाई  को  देखकर  सहम  गए ।  वो  परछाई  अंधेरी  रात  की  तरह  बिल्कुल  काली  थी,  जिसके  चेहरे  पर  दो  बड़ी  खौफनाक  पीले  रंग  की  आंखें  चमक  रही  थी ।  हवा  में  तैरते  उस  मनहूस  साये  को  देखते  ही  डरे-सहमे  से  वो  मासूम  बच्चे  वहीं  उसी  जगह  जम  गए  और  डर  के  मारे  बेसुध  होकर  ज़मीन  पर  गिर  पड़े ।  उन  बच्चों  के  गिरते  ही  उस  परछाईं  ने  अपने  और  भी  भयानक  रूप  में  अचानक  पलटकर  देखा ।  और  तूफानी  रफ्तार  से  जंगल  के  सरकंडो  में  गुम  हो  गई ।'  इसी  के  साथ  डर  के  मारे  सेंराट  की  नींद  खुल  गई ।  मगर  आसपास  सब  नॉर्मल  देखकर  उसने  फिर  सोने  की  कोशिश  की ।  पर  बाजी  और  स्वर्णरेखा  की  दर्दनाक  कहानी  के  दृश्य  पूरी  रात  सेंराट  के  सपने  में  आते  रहे ।"  चंद्र  ने  लगातार  कहना  जारी  रखा ।
पर  तब  अचानक  चंद्र  की  आवाज़  मेरे  कानों  में  पड़नी  बंद  हो  गई ।  और  मैंने  हैरान  होकर  अपना  सर  उठाकर  चंद्र  की  ओर  देखा ।  सर  उठाते  ही  मुझे  चंद्र  की  हल्की  अस्पष्ट  परछाई  नज़र  आई,  जबकि  वो  बिल्कुल  मेरे  सामने  बैठा  था ।  और  तब  अगले  ही  पल  मैं  समझ  गई  कि,  चंद्र  ने  क्यूँ  अपनी  कहानी  बीच  में  रोक  दी  थी ।
मुझसे  भी  पहले  चंद्र  ने  ये  जान  लिया  था  कि,  मैं  काफी  थक  चुकी  थी  और  मुझे  नींद  आने  लगी  थी ।  नींद  के  कारण  मेरी  लिखने  की  रफ्तार  कम  हो  गई  थी ।  और  मुझे  परेशानी  हो  रही  थी ।
"पलक,  तुम्हें  चलकर  सोना  चाहिए ।"  मेरी  ओर  देखते  ही  चंद्र  ने  नर्मी  से  कहा ।  और  मैं  उसकी  बात  नहीं  टाल  पाई ।
बिना  किसी  ऐतराज़  के  मैंने  चंद्र  की  बात  मान  ली ।  मैं  तुरंत  अपने  कमरे  में  सोने  चली गई ।  और  हर  रोज़  की  तरह  चंद्र  की  निगरानी  में  मैं  एक  सुकून  भरी  नींद  में  खो  गई ।
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"  लेकिन  इससे  पहले  कि  वो  मुझसे  दूर  जा  पाता,  "चंद्र ?"  मैंने  उसे  रोक  लिया ।  उसके  मुड़ते  ही,  "क्या  तुम  यहीं  मेरे  पास  बैठकर  कहानी  नहीं  सुना  सकते ?"  मैंने  धीमे  सवाल  किया ।मेरे  कहते  ही  चंद्र  के  चेहरे  पर  हैरानी  आ  ग...

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Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें