Chapter 24 - Palak (Part 3)

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Hello my dear friends,
Wade ke mutabik main apki B. Talekar laut aayi hun naye chapter ke sath. Mujhe pata hai aap jaldi se kahani padhna chahte hai. Isliye zyada bakwas na karte hue main kahani shuru karti hun. 😄💖
कहानी अब तक: चक्कर आने की वजह से मुझ पर गहरी बेहोशी छा गई। मैं तेज़ी से नीचे गिर रही थी। मुझे लगा जैसे अब मेरा अंतिम समय आ गया है। मगर तभी अचानक मैंने किसी की मज़बूत बाहों को अपने इर्दगिर्द लिपटा महसूस किया। जैसे किसी ने मुझे अपनी बांहों में थामकर मुझे गिरने से बचा लिया हो। उसके बाद उसी ने अपनी बांहों में उठाकर मुझे सुरक्षित जगह पहुंचाया और मेरी देखभाल की। मगर बेहोश होने के कारण मैं उसका चेहरा तक नहीं देख पाई। यहां तक कि उसे शुक्रियां तक नहीं कहे पाई।

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शुक्रवार सुबह 6:30 बजे
मेरे आसपास हो रही इन असाधारण गतिविधियों के पीछे का रहस्य जानने की जिज्ञासा ने मुझे बहोत कुछ दिखा दिया था। मैं काफ़ी कुछ असाधारण और असामान्य घटनाओं को देख और मेहसूस कर चुकी थी। लेकिन उस अंजान शख्स का साथ मेरी सारी चिंताओं को दूर कर गया।
मुझे अफ़सोस था कि मैं उसका चेहरा नहीं देख पाई। मगर मैं उसका स्पर्श कभी नहीं भूल सकती, जो काफ़ी भरोसेमंद और सुरक्षा देने वाला था। जिसका ऐहसास काफ़ी अपनेपन से भरा था। और मुझे इस बात का सुकून था कि मेरे उन आकस्मिक पलों में भी कोई मेरे साथ था। मेरे पास था। और इसी सुकून को अपने मन में लिए मैं ऑफिस चली गई।

शुक्रवार दोपहर 1:30 बजे
मैं अपने ऑफिस टेबल पर बैठे अपने काम में व्यस्त थी। मेरा ध्यान अब भी अपनी कंप्यूटर स्क्रीन पर था और मेरी उंगलियां तेज़ी से किबोर्ड पर चल रही थी। मैं जानती थी कि लंच ब्रेक का समय हो चुका था। मगर इतने से काम को अधूरा छोड़कर जाने का मेरा मन नहीं था। इसलिए मैं बिना रुके अपने काम को पूरा करने में जुटी रही।
"तुम अब भी काम रही हो!" अचानक पीछे से आर्या की हैरत भरी आवाज़ मेरे कानों पर पड़ी।
मैंने मुड़कर एक बार उसे देखा और झट से फिर पलटते ही अपने काम में जुट गई। इसी के साथ एक बार फिर मेरी उंगलियां तेज़ी से किबोर्ड पर चलने लगी।
तब मेरे पास वाली कुर्सी पर आकर बैठते ही, "लगता है इस साल तुम मेरा एम्प्लॉय ऑफ़ द ईयर का अवार्ड छिनकर रहोगी।" आर्या ने मुंह फुलाते हुए कहा और उसके चेहरे पर बड़ी सी शरारती मुस्कान आ गई।
"नहीं, मैं तो बस... इस काम को पूरा करना चाहती थी।" आर्या की बात सुनते ही मेरी हैरान नज़रे उसकी ओर मुड़ गई। "मैं कभी तुम्हारा या किसी का भी हक़ छीनना नहीं चाहती।" मैंने शर्मिंदा होकर धीमे से कहा। मगर आर्या की गहरी नज़रे मुझे देखती रही।
तब अगले ही पल, "ये अवॉर्ड... या फिर तुम... चाहे मुझसे मेरी पहचान ही क्यों न छीन लो। तब भी मुझे खुशी ही होगी।" आर्या ने काफ़ी सादगी से कहा । उसके चेहरे पर एक मंद सी मुस्कुराहट फैल गई। उसकी आंखों में एक शोख सी चमक आ गई।
वैसे तो आर्या हमेशा हंसता-मुस्कुराता रहता। लेकिन आज उसकी मुस्कुराहट में कुछ तो अलग था, जो काफ़ी मंद और आकर्षक था। उसकी बात में एक सच्चाई थी। और उसकी आंखों में किसी बात की गहरी चमक थी।
इसी दौरान, "हम्म, तुम्हें क्या लगता है कि इस दुनियां में सिर्फ़ एक तुम ही मिस्टर इंटेलिजेट हो!?" सलोनी ने आते ही आर्या को छेड़ना शुरू कर दिया। और उसके चेहरे पर एक बड़ी सी तनी हुई मुस्कान थी।
सलोनी की आवाज़ सुनते ही आर्या ने थकान भरी आह के साथ अपना सर नीचे कर दिया। "हाँ, वो तो है। अब हर कोई इतना इंटेलिजेंट और खूबसूरत बन भी तो नहीं सकता।" और अगले ही पल आर्या ने सर उठाकर मज़ाक में कहा।
"हाहा, तुम? और इंटेलिजेंट!? वैसे तुम्हारी समझदारी का तो पता नहीं। लेकिन तुमसे ज़्यादा उल्लू और कोई नहीं। क्यूं, पलक?" सलोनी ने यूंही इतराते हुए मज़ाक में कहा और मेरी सहमति के लिए मेरी ओर देखा।
तब झट से अपने पैरों पर खड़े होते ही, "वैसे मैं... तुम्हारी नहीं, किसी और की बात कर रहा था।" आर्या ने शरारती मुस्कान के साथ कहते ही मुड़कर मेरी ओर देखा।
आज सुबह से उसका बर्ताव कुछ बदला हुआ सा लग रहा था। पता नहीं, वो ये किसे कहे रहा था?! क्यूं कहे रहा था?! और क्या कहना चाहता था!? उसकी वो पहेली नुमा बातें मेरी समझ के परे थी। मगर उसे खुश देखकर मुझे अच्छा लगा।
"देखा पलक, ये पागल तुम्हें क्या कहे रहा है!" सलोनी ने यूहीं मज़ाक में मेरी ओर मुड़कर अपनी बड़ी आंखों से मुझे घूरा ।
"बस, बहोत हो चुका। तुम दोनों भी कितनी बाते करते हो।" तब अचानक आर्या ने हमें डांट दिया, "चलों अब। वरना तुम्हारी बातों में लंच टाइम ख़त्म हो जाएगा।" और अगले ही पल मेरा और सलोनी का हाथ पकड़कर वो हमें खीचकर अपने साथ ले गया।

Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें