Chapter 15 - Chandra (part 1)

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Hello Friends,
I know I keep you waiting from so long and I apologize for that. But now I'm here again with another Chapter of PalakChandra 💕
Please enjoy the Reading. 😊
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मंगलवार, सुबह 9 : 00 बजे ।
घर से निकलते समय पलक ने आंखरी बार पीछे मुड़कर देखा । उसकी नज़रे मुझे ही ढूंढ रही थी । मैं उसे जाते देख रहा था । मगर कल रात हमारे बीच हुई बातों से परेशान होने के कारण मैं पलक का सामना नहीं कर पाया ।
कुछ देर बाद सलोनी के आते ही चेहरे पर हल्की मायूसी लिए पलक घर से चली गई । लेकिन उसकी कहीं बाते अब तक मेरे कानों में गूंज रही थी । मैं समझ नहीं पा रहा था कि वो इस ख़तरनाक और भयानक दुनिया के बारे में जानने की ज़िद क्यों कर रही थी । जबकि वो अच्छी तरह जानती थी कि इस दुनिया के नियमों में दख़लअंदाज़ी करना उसके लिए जानलेवा साबित हो सकता था ।
मुझे पलक की फ़िक्र होने लगी थी । पर मैं ये भी जानता था कि पलक बिना इस सच्चाई को जाने मानने वाली नहीं थी । मैं.. पलक से वादा कर चुका था कि, 'मैं उसे इस दुनिया के बारे में वो सब बताऊंगा जो मैं जानता था ।' पर मैं ये नहीं जान पा रहा था कि मुझे पलक से क्या कहना चाहिए, जिससे मैं उसे इस दुनिया की सच्चाई से वाकिफ करा पाऊं और उसे सुरक्षित भी रख पाऊं ।

शाम 6 : 00 बजे ।
जैसे-जैसे पलक के घर लौटने का समय करीब आता जा रहा था वैसे-वैसे मेरी चिंता बढ़ने लगी थी । पलक किसी भी मिनट यहाँ पहुँच सकती थी । और मुझे उसका सामना करना ही होगा ।
क्योंकि, मैं नहीं चाहता था कि मेरे इस तरह अचानक गायब होने से पलक फ़िर परेशान हो जाए या वहीं डर महसूस करे, जो उसे ज़िन्दगी से दूर करने वाला था ।
तब अगले ही पल दरवाज़े पर दस्तक सुनते ही मैंने बाहर जाकर देखा । पलक की दोस्त उसे यहाँ छोड़ते ही जा चुकी थी । और पलक घर वापस लौट आयी थी । उसके चेहरे पर हल्की सी खुशी नज़र आ रही, जिसे देखकर मुझे सुकून मिला । मगर वहीं दूसरी तरफ़ पलक के सवालों का सामना करने के ख़्याल से मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी ।
पलक के सामने जाने की हिम्मत करते हुए, "तुम्हें खुश देखकर अच्छा लगा ।" आख़िरकार मैंने अपनी खामोशी को तोड़ दिया ।
बेसब्री से मेरी तरफ़ मुड़ते ही, "मुझे भी ।" पलक ने हल्की मुस्कान के साथ कहा ।
"इस खुशी की कोई ख़ास वजह ?" मैंने हिचकिचाते हुए धीमे से सवाल किया ।
"हाँ, असल में मे'म ने मुझे नयी मेगज़ीन के लिए अपोईंट किया है । लेकिन.." पलक ने मुस्कराहट के कहना चाहा पर कहते हुए अचानक उसके चेहरे पर उदासी उभर आई ।
"लेकिन.. क्या ? कोई परेशानी है ?" उसकी परेशानी की वजह पूछे बगैर मैं नहीं रह पाया ।
"कोई गंभीर बात नहीं लेकिन, सलोनी की बजाय उनका मेरा नाम अपोईंट करना, मुझे ठीक नहीं लगा ।" पलक कहते हुए, "इसलिए मैंने मे'म से उसे भी शामिल करने की गूज़ारिश की ।" मायूस होकर सोफा पर बैठ गई ।
"इसमें हिचकिचाने वाली कोई बात नहीं । उन्हें जो बेहतर लगा उन्होंने वहीं किया । पर तुमने अपनी दोस्त को शामिल करने का फैसला लेकर अच्छा किया । अब उदास होने की कोई ज़रूरत नहीं ।" मैंने उसे समझाने की कोशिश की ।
"शुक्रिया !" मेरी बात सुनते ही, "मुझे लगता है, मुझे कित्चन में जाकर अपने लिए कुछ बना लेना चाहिए ।" पलक ने मेरी तरफ़ देखकर धीमे से कहा ।
पलक की बात पर मैंने सर झुका कर 'हाँ' में जवाब दिया । और वो खड़ी होकर कित्चन की तरफ चली गई ।
लेकिन उसने एक बार भी उन रहस्यों का ज़िक्र नहीं किया । शायद वो इस बारे में भूल चुकी थी । और अगर यहीं सच था तो उसके लिए इन बातों को भूलना ही सुरक्षित था ।

Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें