Chapter 7 - Palak (Part 2)

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"पलक, क्या तुम.. सच में ठिक हो ? अगर तुम कहों तो हम दोनों घर चलते हैं ? वैसे भी तुम काफ़ी थकी हुई और परेशान दिख रही हो । हम बाद में स्टोर-रूम चलेंगें ।" सलोनी ने मुझे परेशान देखकर कहा ।
सलोनी की बात सुनते ही, "अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हे घर छोड़ आता हुँ ।" आर्या ने मेरी तरफ़ देखकर परेशान होते हुए कहा ।
मैंने आर्या और फ़िर, "नहीं, मैं.. ठिक हुँ । पहले काम पूरा करते हैं । क्या तुम मेरे साथ चलोगी ? प्लिज़..!" सलोनी की तरफ़ देखकर कहा ।
"इट्स ओके । प्लिज़ की ज़रूरत नहीं । अगर तुम कह रही हो तो चलते हैं ।" सलोनी ने मेरी बात मानते हुए मुस्कुराकर कहा ।
उसके बाद स्टोर-रूम के दरवाज़े का ताला खोलकर मैं और सलोनी अंदर गएं । लेकिन, अंदर के नज़ारे ने मुझे पूरी तरह चौका दिया । अपनी आँखों से देखने के बाद भी मुझे यक़ीन नहीं हो रहा था कि ये वहीं कमरा था जहाँ की हर चीज़ कुछ समय पहले बिखरी पड़ी थी । सभी कागज़ात हवा में उड़ रहे थे; एक तरह से ये जगह तहसनहस हो चूकी थी ।
लेकिन, अब उस कमरे की हर चीज़ अपनी सही जगह पर रखी हुई थी । वो जगह बिल्कुल पहले जैसी हो चूकी थी । उस कमरे को उजाड़ हालत में देखने के बाद उसी जगह को फ़िर ठिक देखना मेरे लिये बहुत बड़ा झटका था । मैं पूरी तरह से उलझन में थी कि कुछ समय पहले मेरा साथ जो हुआ वो हक़ीक़त थी या मेरा सपना ।
इसी उलझन को सुलझाने के लिए मैं वहां की हर उस चीज़ को जाँच रही थी, जिसे मैंने पहले भी देखा था । और मैं.. बिल्कुल सही थी । वो न्यूज़पेपर, वो मेगज़ीन और दूसरी चीज़ें उसी जगह पर पड़े थे, जहाँ से मैं उन्हें पहले उठा चूकी थी । वहां रखें टेबल, कपबर्ड और दूसरी चीज़ें भी मैं देख चूकी थी । इसका मतलब साफ़ था कि, मैं.. कुछ समय पहले यहां आ चूकी थी; वो घटना मेरे साथ सच में हुई थी।
सारी चीज़ें समझने के बाद अब मैं सच्चाई जान चूकी थी । लेकिन, फ़िर भी मैंने ख़ुद पर काब़ू करते हुए सलोनी के साथ मिलकर अपना काम ख़त्म किया । और जल्दी से उस जगह से बाहर निकल आएं ।
स्टोर-रूम का मेरा काम ख़त्म हो चूका था । लेकिन मेरा डर अब भी कायम था । मगर उस डर को अपने अंदर छुपाकर मैं अपना काम किये जा रही थी ।
मैं अपने डेस्क पर बैठकर अपना आर्टिकल लिखने की कोशिश कर रही थी । लेकिन तभी काम से ध्यान हटते ही मैंने अपने चारों ओर अजीब - सी शांति महसूस की, जो मेरे लिए बहुत ही बेचैन करनेवाली बात थी । इसलिए कोई अंजान ख़तरा महसूस होते ही मैंने चारों तरफ नज़रें घुमाई । और.. अपने आसपास देखते ही मेरा डर फ़िरसे लौट आया । ऑफ़िस के सब लोग अचानक कहीं ग़ायब हो चूके थे । और उस बड़े से कमरे में मैं बिल्कुल अकेली थी ।
अचानक सभी लोगों के ग़ायब होते ही मैं डरकर अपनी कुर्सी से खड़ी हो गई । मैं तेज़ी से अपने डर से कांपते हुए पैरो से पूरे ऑफ़िस में जाकर देखा । मैं मे'म की केबिन में और यहां तक कि मैंने आर्या की केबिन में भी जाकर देखा । लेकिन वहां कोई भी नहीं था । आख़िरकार निराश होकर मैं अपनी जगह पर लौट आई ।
और तब.. मैंने अपने कंम्पयूटर स्क्रीन पर बड़े लाल अक्षरों में कुछ टाईप होते देखा । ये शब्द, 'Welcome to the hell, Palak. If you wanna stay alive.. Then leave from here.' पढ़ते ही मेरी धकने एकदम से तेज़ हो गयी और मैं घबराहट में वहां से बाहर चली गई । तेज़ी से सीढ़ियाँ उतरते हुए मैं नीचे रिसेप्शन तक पहुँची । लेकिन.. उस जगह को भी सुन-सान पड़ा देख डर से मेरा दिमाग़ सुन पड़ने लगा । मुझे महसूस हो रहा था, जैसे उस पूरी बिल्डिंग में मैं बिल्कुल अकेली थी ।
मैंने बिल्डिंग से बाहर जाने की कई कोशिशें की लेकिन सब बेकार रहा । तब अचानक तेज़ हवा के झोकों के बीच मैंने किसी की ज़ोरदार आवाज़ सुनी । और उसके डरावने शब्द, 'यहां से चली जाओ । वरना तुम ज़िदा नहीं रह पाओगी ।' मेरे कानों में कटार की तरह चुभते रहें ।
उन नफ़रत और खौफ़ से भरे शब्द सुनते ही मैंने तेज़ी से दरवाज़े की तरफ़ दौड़ लगाई । लेकिन मेरे लिये ये औ़र भी ज़्यादा डरावना बन गया, जब दरवाज़े के ना खुलने पर मैं उसी जगह में अकेले कैद हो गई और दरवाज़े के पास ज़मीन पर बैठकर घंटों तक रोती रही ।
उस डरावने पलों में सलोनी की आवाज़ कानों में पड़ते ही, "पलक...! तुम ये क्या कर रही हो ?" मुझे अचानक होश आया । और मैंने ख़ुद को ऑफ़िस में अपनी डेस्क पर बैठे पाया ।
पता नहीं मेरे साथ क्या हो रहा था । उन कुछ पलों में मैंने खुली आँखों से इतना डराना सपना देख लिया था कि अब मुझमें सोने तक की हिम्मत नहीं बची थी ।
"तुम्हे क्या हुआ है, पलक ? क्या तुम्हारी तबियत ठिक नहीं ?" सलोनी ने मुझे परेशानी में देखकर धीरे से सवाल किया ।
"हाँ, शायद । मुझे कुछ ठिक नहीं लग रहा । और चक्कर से आ रहे हैं ।" मैंने जवाब में डर से कांपती हुई आवाज़ में कहा ।
अचानक पीछे से आर्या की आवाज़ सुनते ही, "क्या..! तुम बिमार हो ?" हमने धीरे से मुड़कर उसकी तरफ़ देखा ।
सलोनी को घूरते देखकर, "सोरी । मुझे तुम्हारी बातें नहीं सुननी चाहिए थी ।" उसने मेरी तरफ़ देखकर कहा ।
"लेकिन तुम बिमार हो । तुम्हे पहले डॉक्टर के पास जाना चाहिए । और तुम यहां काम कर रही हो ! चलों पहले, अभी के अभी डॉक्टर के पास चलों ।" आर्या ने परेशान होकर ज़िद की ।
पर मैंने आर्या की बात नज़रअंदाज़ की, "नहीं, इसकी कोई... ज़रूरत नहीं । मैं.. मैं ठिक हुँ । और वैसे भी मुझे बहुत काम करना है ।" और तेज़ी से उठकर ऑफ़िस के वॉसरूम चली गई ।
मैंने कुछ देर के लिए ख़ुद को अंदर वॉसरूम में बंध कर लिया जिससे मैं उन दोनों से दूर रहकर ख़ुद पर क़ाबू कर सकूं ।
मैंने अपनी तकलीफ़ सबसे छुपा ली । मगर मेरे अंदर बस चूका इन हादसों का ख़ौफ़ अब तक ख़त्म नहीं हुआ था । मैं बहुत ही ज़्यादा परेशान और डरी हुई थी । उस वक्त मैं बिल्कुल अकेली पड़ चूकी थी ।
मैं कैसे भी करके इस डर को अपने चेहरे से हटाना चाहती थी । इसलिए बेसिंन का नल खोलते ही मैंने अपने चेहरे पर कई बार पानी डाला । लेकिन ये डर मेरे चेहरे से हटने का नाम ही ले रहा था । इस कारण मैं और भी ज़्यादा परेशान हो गई और बेक़ाबू होकर लगातार अपने चेहरे पर पानी डालती रही ।
तभी अचानक मुझे अपने पीछे काफ़ी ठंडी हवा का झोका महसूस हुआ और लगा, 'जैसे मेरे पीछे कोई है ।' और तब मैंने तुरंत पीछे मुड़कर देखा ।
मेरा डर बिल्कुल सही साबित हुआ । वो काली-सी परछाईं के रूप में मुझसे कुछ कुछ दूरी पर खड़ा था; मेरे सामने । उसके उस डरावने रुप ने मेरे होश उड़ा दिए और मैं वही बूत बनकर रह गई ।
वो कुछ पल के लिए बिल्कुल शांत बना रहा और फ़िर उसने अचानक काफ़ी रहस्यमय तरीक़े से इशारा करते हुए अपना बायाँ हाथ सीधा आगे उठाया ।
उसने मुझे पीछे देखने का इशारा किया । लेकिन मैं.. उस वक्त बहुत ही ज़्यादा डरी हुई थी । मुझमें पीछे मुड़ने की हिम्मत नहीं बची थी । अपने पीछे उसकी परछाईं को महसूस करने के ख़्याल से मेरा डर औ़र भी ज़्यादा बढ़ता जा रहा था ।
मगर फ़िर मैंने अपने कांपते हुए पैरों से मुड़ते हुए पीछे आईने में देखा । आईने पर उन्हीं लाल अक्षरों में वहीं चेतावनी लिखी थी, जो मुझे यहां से जाने के लिए कह रही थी । वो शब्द, 'जल्दी से यहां से चली जाओ । वरना तुम्हारा बच पाना नामुमकिन है ।' मुझे खुली चेतावनी दे रहे थे ।
उन अक्षरों को पढ़ते ही मेरी साँसे रूकने लगी । लेकिन ये यहां खत्म नहीं हुआ । अगले ही पल वहां की दीवारों पर इसी तरह की खूनी लिखावट उभर आई ।
दीवार पर लिखी इन सब चेतावनियों को पढ़कर मैं काफ़ी परेशान थी, तो वही दूसरी तरफ़ उसका साया अपने पीछे महसूस करने का खौफ़ मुझे मार रहा था ।
तब अचानक मुझे वॉसरूम का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनाई दी ।
"पलक..? तुम ठिक तो हो ? ये तुम्हे क्या हो गया है ?" दरवाज़ा खुलते ही सलोनी आवाज़ सुनकर मेरी साँसे चलने लगी ।
"ह.. हाँ । मम..मैं बस ज़्यादा काम की वजह से थकान महसूस कर रही थी ।" मैंने अपनी तकलीफ़ छुपाते हुए कहा ।
"तो फ़िर तुम इस तरह से वियर्ड बिहेव क्यूँ कर रही हो ? अगर तुम्हे कोई प्रोबलम है तो मुझे बताओ ।" सलोनी ने मुझे परेशान देखकर कहा ।
"न...नहीं, ऐसी कोई बात नहीं ।" कांपती हुई आवाज़ में मैंने धीरे से कहा ।
"अगर यही बात है तो तुम आर्या से और मुझसे दूर क्यूँ भाग रही हो ?" सलोनी ने मेरी तरफ़ देखकर परेशान होकर सवाल किया ।
"ऐसी... कोई.. बात नहीं है । मुझे बस.. चक्कर से आ रहें थे । इसलिए.. मैं यहां मुँह धोने चली आई थी ।" मैंने हिचकिचाते हुए जवाब दिया ।
"अगर यही सच है तो फ़िर चलों मेरे साथ । अभी इसी वक्त चलकर आर्या से बात करो ।" सलोनी ने मेरा हाथ पकड़कर मुझे अपने साथ ले जाते हुए कहा ।
"न..नहीं, प्लिज़ मुझे उसके साथ कोई बात नहीं करनी ।" मैंने परेशान होकर मना करते हुए कहा और अपना हाथ छुड़ाकर अपनी ऑफ़िस डेस्क की तरफ़ मुड़ गई ।
लेकिन तभी हमने आर्या को वही हमारे पीछे खड़ा पाया । वो हमारी सारी बातें सुन चूका था । और इस बात से गुस्सा होकर वो हमारी तरफ़ आगे बढ़ ही रहा था कि उसी पल ऑफ़िस ऑवर्स पूरे होने की बेल सुनाई दी । और वो हमसे बिना कुछ कहें गुस्से में सीधा बाहर चला गया ।

Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें