Chapter 10 - Palak (Part 1)

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शाम 6 : 00 बजे ।
उस समय मैं सलोनी और आर्या की बातों को लेकर काफ़ी परेशान थी । सलोनी आर्या की दोस्त होने के नाते उसका साथ दे रही थी । लेकिन आर्या बार-बार मुझसे सच्चाई जानने की कोशिश में लगा था, जो मैं उसे नहीं बता सकती थी ।
महल में रहनेवाला वो जो भी था बहुत अच्छा था । मगर ये बात मैं सलोनी या आर्या को कैसे समझा पाती । और अगर आर्या इस सच्चाई को जान गया तो वो ये बात सलोनी को ज़रूर बता देता, जो मैं.. नहीं चाहती थी । क्योंकि मैं ये जानती थी कि जब सलोनी को इस सच्चाई का पता चलेगा तब बिना कुछ सोचे वो मुझे अपने साथ ले जाती । शायद किसी भी इन्सान के लिए किसी आत्मा के साथ रहना नामुमकिन था । और मैं भी इस सच को अच्छी तरह से जान चुकी थी । मैं उन खौफ़नाक दिनों को अपने झहन से नहीं मिटा सकती थी । लेकिन फ़िर भी आज पहली बार मुझे महल में आते हुए कोई डर या परेशानी नहीं थी । आज मुझे यहां वापस लौटकर काफ़ी हद तक सुकून मिल रहा था । मगर अभी भी मेरा अकेलापन मुझे बेचैन कर रहा था ।
महल में आते ही मैं सीधा ऊपर वाले कमरे में गई । और ऊपर जाते ही अपना बैग और मोबाईल बिस्तर पर रखकर अपनी आँखें बंध कर के बिस्तर पर बैठ गई ।
मैं बस अपनी आँखें बंध करके आराम से बैठी ही थी कि तभी अचानक मुझे अपने पीछे किसी के होने का एहसास हुआ, जो मुझे देख रहा है । उस वक्त अचानक किसी की मौजूदगी के एहसास ने एक पल के लिए मुझे डराकर रख दिया । मेरे दिल की धड़कने अचानक तेज़ हो और मुझे हल्का पसीना आने लगा । मगर अगले ही मैं समझ चुकी थी कि ये वही था, जो अंजान होकर भी मेरे लिए अंजान नहीं था । एक रूह होने के बाद भी किसी इन्सान से ज़्यादा अच्छा था ।
उसने मेरी जान बचायी थी और मैं इस बात के लिए उसे शुक्रिया करना चाहती थी । लेकिन मेरे देखते ही वो गाय़ब ना हो जाए, यही सोचकर मैंने अपनी आँखें नहीं खोली । मगर फ़िर भी उसने कुछ नहीं कहा और इस बार भी मुझे उसे शुक्रिया कहने का मौक़ा नहीं मिल पाया ।
इससे पहले कि मैं पलटकर उसे देख भी पाती वो ग़ायब हो गया । शायद.. वो समझ चूका था कि मुझे उसकी मौजूदगी का एहसास हो गया था और कहीं उसकी वजह से मैं.. फ़िरसे डर ना जाऊँ, यही सोचकर वो मुझसे बिना कुछ कहें चला गया था ।
उसके जाने के कुछ देर तक मैं वहीं बैठी रही । लेकिन फ़िर भूख और कमज़ोरी महसूस होते ही मैं नीचे कित्चन में गई । वहां की एक खिड़की खोलते ही मैं अपने लिए चाय बनाने में लग गई ।
मैंने स्टॉव जलाते ही चाय उबालने के लिए रखी । एक तरफ़ मेरी चाय उबल रही ती तो वहीं दूसरी तरफ़ मैं अपने दूसरे कामों में जुट गई । चाय के बर्तन को स्टॉव पर छोड़कर मैंने बेसींग में पड़े बरतनों को साफ़ करके रखना शुरू कर दिया ।
मैं अपने काम में खोई थी और तभी एक बार फ़िर मैंने अचानक अपने पीछे बहुत तेज़ हवा का झोका महसूस किया । और मैंने घबराकर झट से पीछे मुड़कर देखा ।
वो कित्चन के दरवाज़े के पास ही खड़ा था । और उसी की वजह से स्टोव की आग बूझ चुकी थी ।

Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें