Chapter 14 - Palak (part 1)

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Hello Guys,
Apologize for being late. But now I'm percent with another Lovely Glimpse of mysterious Love.💗
Day by day bond of our Chandra & Palak becoming more storage and fluent. Her fear towards Chandra now converted into the faith. So Without taking more time.. Here we go..
Enjoy the Journey. 😊💞
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सोमवार,
रात  8 : 30  pm.
चंद्र  की  बातों  से  साफ़  ज़ाहिर  था  कि  अपने  परिवार  से  दूर  होने  के  कारण  उसे  बहुत  तक़लीफ  पहुँची  है,  जिसे  सुनकर  मुझे  बहुत  दुःख  हो  रहा  था ।  मैं  अपने  परिवार  को  पहले  ही  खो  चूकी  थी ।  इसलिये  परिवार  से  दूर  होने  की  तड़प  मैं  अच्छी  तरह  समझ  सकती  थी ।
चंद्र  की  कही  हर  वो  बात,  उसके  हर  एक  शब्द  मेरे  कानों  में  पड़ते  ही,  जैसे  मैं  उसकी  परेशानी  और  तकलीफ़  अपने  अंदर  महसूस  कर  सकती  थी ।
उसके  साथ  हुई  उन  सभी  ख़तरनाक  घटनाओं  का  डर  मैं  चंद्र  के  चेहरे  और  उसकी  आवाज़  से  महसूस  कर  पा  रही  थी ।  अपने  साथ  हुए  उन  सभी  हादसों  के  बारे  में  कहते  समय  चंद्र  की  आवाज़  में  एक  अजीब - सी  कंपन  थी,  जैसे  वो  उन्हीं  खौफ़नाक  पलों  से  फ़िर  एक  बार  गुज़र  रहा  था ।
चंद्र  उस  वक़्त  सच  में  काफ़ी  ज़्यादा  परेशान  था ।  और  मुझे  दुःख  था  कि  इस  समय  चंद्र  के  तकलीफ  की  असली  वजह  मैं  ख़ुद  थी ।  लेकिन  फ़िर  भी  पता  नहीं  क्यूँ,  उसे  इतनी  तकलीफ़  में  देखने  के  बावजूद  मैं  उन  बातों  को  लिखने  से  ख़ुद  को  नहीं  रोक  पायी ।  चंद्र  की  बातों  में  खोते  ही  अचानक  मैंने  अपनी  डायरी  और  पेन  निकाल  लिए  और  मेरी  अंगूलियो  ने  अपनेआप  उन  बातों  को  डायरी  में  लिखना  शुरू  कर  दिया ।
"तुम..  ये  सब  अपनी  डायरी  में  क्यूँ  लिख  रही  हो ?"  मुझे  डायरी  में  लिखते  देख,  "मुझे  लगा  था  कि  तुम  मेरी  परेशानी  समझ  सकती  हो ।  इसलिये,  तुम  पर  भरोसा  करके  मैंने  तुम्हें  अपनी  सच्चाई  बतायी ।"  चंद्र  ने  काफ़ी  परेशान  होकर,  "लेकिन  तुम...  ये  सब  लिखकर  क्या  साबित  करना  चाहती  हो ?  कहीं  तुम  इसे  अपनी  मेगेज़िन  में..."  झुँझलाहट  और  गुस्सा  में  कहा ।
उस  समय  चंद्र  का  गुस्सा  बिल्कुल  जायज  था ।  मैं  उसकी  बेचैनी  और  तड़प  समझ  पा  रही  थी ।  लेकिन  उसका  गुस्सा  सहने  के  बावजूद  मुझे  यही  महसूस  हो  रहा  था  कि  चंद्र  की  कही  इन  सभी  बातों  को  मुझे  याद  रखना  चाहिए ।  और  मैं..  वही  कर  रही  थी ।
लेकिन  पहले  मुझे  चंद्र  का  गुस्सा  शांत  करना  था;  उसे  मेरे  मन  की  बात  समझानी  थी ।
"नहीं  चंद्र,  तुम  गलत  समझ  रहे  हो ।"  चंद्र  की  तरफ़  देखते  ही,  "मैं  ऐसा  कुछ  नहीं  करना  चाहती,  जिससे  तुम्हें  तकलीफ़  हो ।  मैं  तुम्हारी  हर  परेशानी  को  समझ  सकती  हूँ ।  भरोसा  करो  मैं  ऐसा  कभी  भी  नहीं  करूँगी ।"  उसे  यक़ीन  दिलाते  हुए  मैंने  धीरे  से  कहा ।
मेरी  बात  ख़त्म  होते  ही,  "तो  फ़िर  तुम  ये  सब.."  चंद्र  ने  हैरान  होकर  मुझे  टोक  दिया ।  लेकिन  मेरी  तरफ़  देखते  वो  अचानक  ख़ामौश  हो  गया ।
उस  वक़्त  चंद्र  के  चेहरे  पर  मुझे  उसकी  परेशानी  साफ़  नज़र  आ  रही  थी ।  मैं  उसकी  परवाह  करती  थी ।  लेकिन  जो  मैं  कर  रही  थी  वो  करना  शायद  मेरे  लिए  ज़रूरी  था ।
"तुम  फिक्र  मत  करो ।  मैं  ये  बात  हमेशा  अपने  तक  ही  रखुंगी ।"  मैंने  चंद्र  की  तरफ़  देखकर,  "ये..  मेरी  पर्सनल  डायरी  है ।  और  मैं  इसमें  बस  वही  बातें  लिखती  हूँ,  जिसे  मैं  कभी  भूलना  नहीं  चाहती ।"  धीरे  सेे  कांपती  हुई  आवाज़  में  जवाब  दिया ।
"लेकिन  इस  तरह  की  डरावनी  यादों  को  तुम्हें  अपने  दीलो - दिमा़ग  में  जगह  देने  की  कोई  ज़रुरत  नहीं ।"  चंद्र  ने  काफ़ी  परेशान  होकर,  "मैं..  नहीं  चाहता  कि  तुम  इस  तरह  की  भूतियाँ  और  मनहूस  बातें  याद  रखो ।"  मेरी  चिंता  करते  हुए  कहा ।
"तुम  बिलकुल  सही  हो,  चंद्र ।  मैं  ख़ुद  भी  इन  बातों  को  याद  नहीं  रखना  चाहती ।  लेकिन..  प्लीज  मुझ  पर  भरोसा  रखो ।"  चंद्र  के  पास  जाते  ही,  "मैं  कभी  कोई  ऐसा  काम  नहीं  करूंगी,  जिससे  तुम्हें  तकलीफ  हो ।  लेकिन  मेरा  मन  कहता  है,  'मुझे  ये  लिखना  चाहिए' ।  प..पर  तुम  फ़िक्र  मत  करो ।  मुझे  कुछ  नहीं  होगा ।"  मैंने  उसे  यक़ीन  दिलाते  हुए  धीरे  से  कहा ।
और  मेरी  बात  सुनते  ही  उसकी  नज़रे  मुझ  पर  उठ  गई,  जिन  में  हैरानी  और  फिक्र  एक  साथ  झलक  रहे  थे ।
मेरी  तरफ़  देखते  ही,  "और  मैं  तुम्हें  कुछ  होने  भी  नहीं  दुंगा ।"  चंद्र  ने  काफ़ी  लगाव  के  साथ  धीरे  से  कहा ।  लेकिन  फिर  अचानक  उसने  अपना  चेहरा  दूसरी  ओर  मोड़  लिया ।  और  मुझसे  दूर  हो  गया ।
"क..क्या  मैं  तुमसे  कुछ  पूछ  सकती  हूँ ?"  मैंने  हिचकिचाते  हुए  धीरे  से  सवाल  किया ।
मेरे  सवाल  पर  मेरी  तरफ  मुड़ते  ही,  "लेकिन,  पहले  प्रोमिस  करो  कि  वो  सवाल  मेरी  ज़िन्दगी  के  बारे  में  नहीं  होगा ।  अब  मैं  तुम्हे  और  कुछ  नहीं  बता  सकता ।"  चंद्र  ने  शर्त  रख  दी ।
मेरे  पास  उसकी  शर्त  मानने  के  सिवा  कोई  रास्ता  नहीं  था,  "आई  प्रोमीस ।  मैं  ऐसा  कोई  सवाल  नहीं  करूँगी  जिससे  तुम्हे  तकलीफ़  हो ।"  और  मैंने  उसे  इस  बात  का  भरोसा  दिलाया ।
और  तब  उसकी  अनकही  सहमती  मिलते  ही,  "मैं  पहले  आत्मा  और  भूत - प्रेत  पर  यक़ीन  नहीं  करती  थी ।  लेकिन  तुम्हें  मिलने  के  बाद  मेरी  सोच  बदल  गई  है ।"  मैंने  हिचकिचाते  हुए,  "मेरी  खुश - नसीबी  है  कि  तुम  मेरे  साथ  हो ।  अगर  तुम्हारी  जगह  कोई  औ़र  होता  तो  वो  शायद  मुझे  कब  का  मार  चुका  होता ।"    धीरे  से  कहा ।
"और  मैं  ये  चाहता  भी  नहीं  कि  मेरी  जगह  किसी  औऱ  को  ये  दर्द  सहना  पड़े ।"  चंद्र  ने  तुरंत  काफ़ी  परेशान  होकर  कहा ।
चंद्र  की  तरफ  देखकर,  "लेकिन  क्या  ऐसी  औऱ  भी  शक्तियाँ  मौजूद  हैं,  जिनसे  हम  अब  भी  अंजान  हैं ?"  मैंने  परेशान  होकर  हिचकिचाते  हुए  कहा ।
"बिल्कुल  है ।  लेकिन  तुम  ये  क्यूँ  जानना  चाहती  हो ?"  मेरी  बात  का  जवाब  देते  हुए,  "इन  शक्तियों  के  बारे  में  जानना  काफी  ख़तरनाक  है ।  इन  चीजों  से  तुम  जितना  दूर  रहो  उतना  ही  बेहतर  है ।"  चंद्र  ने  गंभीरता  से  कहा ।
"मैं  समझ  सकती  हूँ,  तुम्हें  मेरी  चिंता  है ।  इसीलिए  तुम  मुझे  सुरक्षित  रखना  चाहते  हो ।"  चंद्र  की  तरफ़  देखकर,  "लेकिन  मुझे  इन  बातों  से  बहुत  डर  लग  रहा  है,  जिसे  मैं  अपने  मन  से  निकाल  नहीं  पा  रही ।"  मैंने,  "इसीलिए  मैं  इन  चीजों  के  बारें  में  जानना  चाहती  हूँ ।  प्लीज़..!  चंद्र,  इस  काम  में  मुझे  तुम्हारी  हेल्प  चाहिए ।"  उसे  मनाते  हुए  कहा ।
"ठीक  है ।"  चंद्र  ने  काफ़ी  सोच - समझकर,  "अगर  तुम  जानना  ही  चाहती  हो  तो  मैं  कोशिश  करुँगा  कि  मैं  तुम्हें  वो  सब  बता  पाऊँ  जिताना  मैं  आज  तक  जान  पाया  हूँ ।  लेकिन  इस  बारे  में  हम  कल  बात  करेंगे ।"  मेरी  तरफ़  देखकर  गंभीरता  से  कहा ।
अपनी  बात  कहते  ही  चंद्र  बीना  एक  रुके  वहाँ  से  चला  गया ।  और  उसके  जाने  के  बाद  मैं  ऊपर  वाले  कमरे  में  सोने  चली  गई ।

!  चंद्र,  इस  काम  में  मुझे  तुम्हारी  हेल्प  चाहिए ।"  उसे  मनाते  हुए  कहा । "ठीक  है ।"  चंद्र  ने  काफ़ी  सोच - समझकर,  "अगर  तुम  जानना  ही  चाहती  हो  तो  मैं  कोशिश  करुँगा  कि  मैं  तुम्हें  वो  सब  बता  पाऊँ  जिताना  मैं  आज  तक  जान  प...

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Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें