Chapter 11 - Chandra (Part 1)

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रात 11 : 30 बजे ।

पलक से अपनी बात कहते ही मैं अपनी उसी ख़ास जगह लौट आया । मेरी मौत के उस खौफ़नाक दिन के बाद इस महल की छत ही मेरा ठिकाना बन चुकी थी; उस हादसे के बाद मैं अपना ज़्यादातर समय वही गुज़रता था ।
मेरी रूह मेरे शरीर का साथ पहले ही छोड़ चुकी थी । लेकिन मरने के बाद भी मेरे इरादों ने मेरा साथ नहीं छोड़ा । अपनी ज़िन्दगी के ख़त्म होने के बाद भी मैं किसी औ़र की ज़िन्दगी को बरबाद नहीं होने देना चाहता; मेरी रूह ने शरीर ज़रूर छोड़ा था लेकिन, मैं अपनी सोच और अपने आईं - बाबा की सीख नहीं छोड़ पाया था । और मेरी इसी सोच के कारण मरने के बाद भी मैं.. इस दुनिया से नहीं जा पाया था ।
उस जानलेवा दिन के बाद मैं रूह यही इसी महल में रह गयी या फ़िर यू कहूँ कि मेरी रूह इस पृथ्वी पर फ़स गयी थी । मरने के बाद मैं चाहता तो इस महल से दूर जा सकता था । लेकिन, अपने इस डरावने भूतियाँ रूप में किसके पास जाता और क्यूँ जाता । अगर मेरे आईं - बाबा मुझे इस तरह मिल भी लेते तो अपने मरे हुए बेटे को देखकर उन्हें बहुत तकलीफ़ होती । और मैं उन्हें ये दुःख नहीं पहुंचना चाहता था । इसी लिए मैंने अपनेआप को इसी महल के अंदर कैद कर लिया । उस दिन के बाद इस महल के आसपास इन्सानों की मौजूदगी का पता चलते ही मैं उन्हें डराकर भगा देता ।
लेकिन आज पहली बार मैं किसी इन्सान की मौजूदगी को अपना पाया था । पलक को अपने कमरे में गए करीब एक घंटा बीत चुका था । लेकिन, उसकी कही हर एक बात मेरे जे़हन से नहीं मीट पायी थी ।
पलक के वो शब्द हर वक्त मुझे सोच में डाल रहे थे; उसकी कही हर बात मुझे गहराई तक छू गयी थी ।
पता नहीं पलक में ऐसा क्या था, जो मरने के बाद भी मेरे जज़्बातों को जगा रहा था । उस दिन पहली बार उसके कदम इस महल में पड़ते ही मैं काफ़ी बेचैन हो उठा । उसका एहसास, उसकी महक और उसे यहाँ पाकर मैं ख़ुद को उससे दूर नहीं रख पाया । अपने अंदर इन्सानों के लिए, पलक के लिए बेहद नफ़रत होते हुए भी मैं.. उसके करीब जा पहुंचा । उस दिन के बाद मैं हर रोज़ अपने जेहन में इसी नफ़रत को उसके पास जाता रहा; एक इन्सान को इस महल से निकालने के पागलपन में उसे तड़पाता रहा । लेकिन आज पलक के कारण मैं अपनी इस कैद से ख़ुद को आज़ाद कर पाया था ।
और तब पलक का ख्याल, उसके मासूम-से चेहरे पर छाया डर, उसकी आंखों में भरा वो अंजान खौफ, एक बार फ़िर मुझे उस तक ले गया ।
अगले ही पल मैं पलक से कुछ दूरी पर उसके कमरे में था । एक रूह होने के कारण मैं कभी भी कही भी पहुंच सकता था । कही भी जाने के लिए मुझे बस कुछ ही पलों का समय लगता था । किसी भी जगह तक पहुंचने के लिए मुझे बस उस जगह के बारे में सोचना पड़ता था और मैं.. उसी जगह प्रगट हो जाता ।
अगले ही पल अपनी आंखें खोलते ही पलक ने मुझे सामने पाया, "तुम.." और हल्की मुस्कराहट के साथ कहा ।
उस वक्त उसकी आंखें हल्की नींद से घीरी थी । उसकी आवाज़ में बसे हल्के कंपन से उसकी थकावट का अंदाज़ा लगाया जा सकता था । पलक अपने बिस्तर पर लेटी थी, उसे आराम की ज़रूरत थी । पर वो.. सो नहीं पा रही थी ।
उसे देखते ही, "तुम.. अब तक सोयी नहीं !" मैंने धीमे से सवाल किया । और उसने थकान भरी फ़ीकी मुस्कराहट के साथ मना किया ।
"काफ़ी रात हो चुकी है । तुम्हें सोना चाहिए ।" उसे कहते ही मैं जाने के लिए मुड़ गया ।
"पर.. तुम कहाँ जा रहे हो ?" उसके उन बेचैनी और घबराहट से भरे शब्दों ने मुझे वही रोक लिया ।
पलक की तरफ़ पीछे मुड़ते ही, "तुम्हें आराम की ज़रूरत है । और मैं.. तुम्हें नींद ना आने का करण नहीं बनना चाहता ।" मैंने कहते हुए अपना सर झुका लिया ।
उस वक्त मुझे अपनी की गयी हरकतों पर काफ़ी अफ़सोस हो रहा था । एक तरह से पलक के इस अंजान डर का कारण मैं था; मेरी हरकतों ने उसे इस डर के साथ रहने पर मजबूर किया था ।
"नहीं, कारण तुम नहीं हो ।" पलक के ये शब्द सुनते ही मेरी नज़रे उस पर उठ गई ।
"मु..झे अकेलेपन से डर लगता है ।" उसने कांपतेे हुए होठों से कहा ।
"और तुम्हारे इस डर की वजह मैं हूँ ।" मैं अपने मायूसी में ख़ुद को कहने से नहीं रोक पाया । और मेरे कहते ही पलक ने सर उठाकर मेरी तरफ़ देखा ।
"नहीं, मेरे डर की वजह तुम नहीं हो ।" पलक ने तिलमिलाकर उठकर बैठते ही, "मेरे इस डर की वजह मेरे साथ हुआ वो सबसे भयानक हादसा है, जिसमें मुझे भी मर जाना चाहिए था ।" काफ़ी मायूस होकर कहा और उसकी आंखों पर आंसू उतर आए, जो मुझे अजीब-सी चूभन महसूस करवा रहे थे ।
"नहीं, तुम्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए ।" पलक के आंसुओं को देख मुझसे नहीं रहा गया, "तुम्हारे पास तुम्हारी पूरी ज़िन्दगी बाक़ी है । तुम बहुत कुछ कर सकती हो । तुम अभी ज़िन्दा हो और इसके पीछे ज़रूर कोई वजह होगी ।" उसे शांत करने के लिए मैंने जो ठीक समझा कहता रहा ।
सच कहूं तो मैं ख़ुद नहीं जानता था कि मैं क्या कह रहा था; उसका मतलब क्या था । लेकिन पलक को रोता देखकर मैं नहीं रूक पाया । उस वक्त मुझे जो सही लगा मैं कहता गया ।
पलक ने अपने आंसू दूर करते हुए, "थेन्क यू ।" हल्की मुस्कान के कहा और मैं बिना कुछ कहे उसे देखता रहा ।
"चंद्र, क्या तुम थोड़ी देर के लिए यहां रूक सकते हो ?" पलक ने हिचकिचाहट भरी आवाज़ में धीमे से पूछा और उसके इस सवाल से मेरी हैरानी भरी नज़रें उसी पर थम गई ।
"बस मेरे सोने तक । उसके बाद तुम चले जाना ।" उसने कहना जारी रखा और मैं उसे ईन्कार नहीं कर पाया ।
मेरी हाँ सुनते ही पलक अपना कंबल ओढकर लेट गयी । मुझे अपने साथ देखकर उसने हल्की मुस्कराहट के साथ अपनी आंखें बंद कर ली । और एक बार फ़िर सोने की कोशिश की । उसके कुछ ही बाद पलक को चैन से सोते देख मैं अपनी जगह लौट आया ।
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B!jal.. 😃😊

Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें