Hello my dear friends,
Main apki B. Talekar fir present hun naye chapter ke sath.
Shuru karne se main aapko batana chahti hu ki 'chapter 24 (part 3)' main kahani ka kuchh hissa missing tha, jo maine hal hi main edit kiya hai. Isliye is kahani ka pura maza uthane ke liye please chapter 24 (part 3) jakar padhe.
Aapki inconvenience ke liye mafi chahti hun. To chaliye ab quickly shuru karte hai ye kahani. 😄💖कहानी अब तक: हर बार की तरह आज भी शायद मैं बाकी लोगों के सामने खामोश ही रहता या वहां से चला जाता। लेकिन इस बार अपने बाकी दोस्तों की तरह पलक ने मुझे भी अपनी गतिविधि में शामिल कर ही लिया।
अब आगे...
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सुबह 11:45 बजे।
दोपहर तक सलोनी और पलक ने अपने सभी काम पूरे कर लिए थे। लंच के बाद सलोनी वापस लौट चुकी थी। और अब वादे के मुताबिक़ मैं कहानी शुरु करने के लिए पलक का इंतज़ार कर रहा था।
सलोनी को बाहर तक छोड़ते ही, "तो अब हम कहानी शुरू करे?" पलक वापस लौट आई। हॉल में सोफा पर बैठते ही पलक ने अपनी डायरी और पेन उठा लिए।
इस कहानी को लेकर उसकी उत्सूखता जाहिर तौर पर साफ़ नज़र आ रही थी। मगर वो अपने आप को रोके हुए थी।
"ठिक तुम्हारी ही तरह निसर्व भी जोगिंदर काका और उनके लोगों की परेशानी की वजह जानना चाहता था।" पलक को देखकर मुस्कुराते हुए मैंने कहा।
मेरी बात सुनते ही पलक चौक गई, जैसे मैंने उसकी कोई चोरी पकड़ ली हो। अपनी बड़ी-बड़ी हैरान आंखों से घूरते हुए उसने मेरी ओर देखते ही शर्माकर अपना सर झुका लिया।पलक से दूरी कायम रख उसके पास बैठते हुए, "निसर्व के ज़ोर देने पर जोगिंदर काका ने गांव के बारे में बताना शुरू किया।
उन्होंने बताया कि, 'मैं जो केहणे जा रहा हूं वो कोई कहाणी ना से, हुकूम। ये तो म्हारे गांव का खूण से लथपथ वो इतिहास से, हुकूम जिसे याद कर आज भी म्हारे कस्बे की आत्मा कांप जावे से। लगभग सो डेढ़ सो साल पहले की बात से -- राजेस्थाण के जैसलमेर का एक छोटा सा गांव सगरोन की बस्ती, वहां के लोग काफ़ी गरीब और जन-साधारण थे, साब। ज्यादातर लोगों को खेती के अलावा कुछ आता को नी था। पण इसके बावजूद राणा सूर्य भाण सिंह के कारण लोग शांति से जी रहे थे।
उनके राज्य में प्रजा को कोई दुख को नी था। किंतु उणका साला; उद्धम सिंह घना क्रूर और शातिर था। उसणे महाराणी और राणा सा को ऐसे मोहित किया कि राणा सा ने पूरे राज्य की कर व्यवस्था का कार्यभार उन्हें सौंप दिया और उसे कर व्यवस्था का मंत्री बणा दिया। पण उद्धम सिंह ने अपणे स्वार्थ के कारण प्रजा को कर के नाम पर लूटणा शुरू कर दिया।'" मैंने आगे की कहानी की शुरूआत कर दी।
"तो क्या राणा सूर्यभान सिंह ने उसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया?" पलक ने अपनी चिंता ज़ाहिर करते हुए सवाल किया।
पलक को देखते ही, "हां, मगर किसी को रोका तो तब जा सकता हैं जब हमें उसकी ख़बर हो।" मैं नैनावती को लेकर अपनी गहरी चिंता के बीच कह गया।
"मतलब!?" पलक मेरी बात से अंजान थी। और उसके लिए यहीं बेहतर था।
"मतलब कि, उद्धम सिंह ने राणा सूर्यभान को इस बात की ख़बर नहीं लगने दी।" बात पलटते हुए, "उसने अपनी पेहचान और सत्ता का इस्तेमाल कर सभी को अपनी तरफ़ कर लिया था और जो लोग उसके साथ नहीं थे वो भी उसके ज़ुल्मो के आगे बेबस थे।" मैंने इसकी दिशा कहानी की ओर मोड़ दी।
"सही समय पर अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ न उठाने से अन्याय की जड़े मज़बूत होती जाती है।" मेरा जवाब सुनकर पलक चिंता में पड़ गई। "फिर क्या हुआ?" लेकिन वो आगे की कहानी जानने के लिए उत्सुक थी।
"सही कहा।" पलक की बात ने एक पल के लिए मुझे ख़ामोश कर दिया। मैं उसकी बात से से सहमत था।
कहानी जारी रखते हुए, "जोगिंदर काका ने आगे कहना जारी रखा, 'उद्धम सिंह के ज़ुल्मो से प्रजा काफ़ी दुःखी थी। इस दौरान एक दिन उद्धम सिंह की नज़र राजवैध की बेटी वैदेही पर पड़ी। वैदेही बहोत ही खुबसूरत और सुसिल कण्या थी। उसका लगन पक्का हो गया था। पण उद्धम सिंह किसी भी तरह वैदेही को पाणा चाहतों थो। वो हर बार अलग-अलग तरीकों से वैदेही, उसके पिता और घर वालों पर दबाव डालने की कोशिश करता।
पण राजवैध बहोत ही निष्ठावान थे। उण्हें उद्धम सिंह की असलियत मालूम थी। इसलिए वो जल्द से जल्द वैदेही का विवाह कर देना चाहते थे।
इस दौरान राज्य में ख़बर फैली कि हमारे पास के गांव में लोग रहस्यमय ढंग से मर रहे हैं। एक आदमी जो घर पर अकेला था। उसे अचानक आईने में अपना सर जलता हुआ नज़र आया। वो दर्द से पागल हो रहा था। और अंखिरकार इससे छूटकारा पाने के लिए उसने अपने सर को पानी में डुबाए रखा, जिससे उसकी मौत हो गई। एक औरत जिसे खाणा बणाते हुए अचानक अपने शरीर पर ढेरों बिच्छू चलते नज़र आए। वो ये देखकर इतनी घबरा गई कि उन बिच्छू को दूर करने के लिए उसने जलते चूल्हे से अग्नि उठा ली और उन बिच्छू को दूर करते हुए उसने ख़ुद को आग लगा ली। एक पंद्रह साल युवा लड़का जिसे खेलते समय अचानक लगा कि उसके मुंह से सांप निकल रहे हैं, जिससे बचने के लिए उसने पास ही पड़ी कुल्हाड़ी से अपनी जीभ काट ली।
कुछ लोग अचानक पागल हो गए। चीखने चिल्लाने लगे और कुछ ने आत्महत्या कर ली। तो किसी ने अपने परिवार को मार कर ख़ुद को ख़त्म कर लिया। धीरे-धीरे ये हादसे हमारे गांव तक आ गए। हमारा गांव इस आफ़त से तबाह होने लगा। मगर इस दुःख में राहत मिलने की बजाए प्रजा पर एक और आफ़त टूट पड़ी।'" मैं अपनी जगह से उठकर पालक के आसपास चक्कर काटने लगा।
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Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndia
Paranormal#1 in Paranormal #1 in Ghost #1 in Indian Author #1 in Thriller #WattpadIndiaAwards2019 #RisingStarAward 2017 ये कहानी 'प्यार की ये एक कहानी' से प्रेरित ज़रूर है, लेकिन ये उससे बिल्कुल अलग है। कहते हैं कि सच्चा प्यार इंसानी शरीर से नहीं बल्कि रूह...