Chapter 11 - Chandra (Part 2)

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Hello friends,
I'm back with another ghost friendly chapter for you. Apology for keep you wait. But, after so long I hope you will enjoy this chapter. And a small surprise has waiting for you below the chapter. 😉
Hey.. but don't run there without reading the chapter.
Happy reading. 😃😊
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रात 12 : 30 बजे

मुझे पलक के कमरे से लौटे हुए क़रीब एक घंटा बित्त चुका था । लेकिन, उसका वो उदासी भरा चेहरा मेरी आंखों से ओझल नहीं हो पा रहा था ।
मुझे पलक की फ़िक्र हो रही थी और मेरी इसी बेचैनी के चलते एक बार फ़िर मैं उसे देखने के लिए जा पहुंचा ।
मैं अपने अदृश्य रूप में उसके कमरे तक जा पहुंचा । मैं बस दूर से देखना चाहता था कि वो ठीक है या नहीं । और वो.. बिल्कुल ठीक थी ।
कई दिनों बाद आज पहली बार मैं उसे अपने सामने बिना किसी डर के आराम से सोते हुए देख रहा था । मगर अभी भी शायद उसके साथ हुए वही पुराने हादसे उसे नज़र आ रहें थे, जिस वजह से वो नींद में भी काफ़ी घबराई हुई और परेशान नज़र आ रही थी । उसकी डरावनी यादें सपना बनकर उसे तकल़ीफ पहुंचा रही थी ।
कई सालों बाद आज पहली बार मुझसे किसीने बिना डरे बात करने की हिम्मत की थी । पलक से मिलने के बाद पहली बार मैं ये महसूस कर पा रहा था कि इस दुनिया में मेरे सिवाय ऐसे कई लोग हैं जिन्हें बहुत-सी तकलीफ़ें सहनी पड़ी । कोई औ़र भी है, जिसने शायद मुझसे भी ज़्यादा मुश्किलों का सामना किया था ।
आज तक मैं यहीं समझता रहा कि जिन मुसीबतों का सामना मुझे करना पड़ा, वही मुसीबतें मैं किसी औ़र को नहीं सहने दे सकता था । मेरी इसी सोच के कारण मरने के बाद भी मैं इस दुनिया को छोड़ नहीं पाया । अपने इसी गुस्से और जुनून के चलते मैं काफ़ी ख़तरनाक और डरावना बन चूका था । लेकिन, पलक की सच्चाई और उसके मज़बूत इरादों ने मेरे उस डरावने रूप को बदल दिया था । अब.. जब भी मैं उसके बारें में सोचता मुझे औ़र भी ज़्यादा अफ़सोस होने लगता ।
पलक के साथ हुए उन हादसों के कारण मैं पहले भी उसे तड़पते और रोते हुए देख चूका था । पता नहीं उसने उन मुसीबतों का सामना अकेले कैसा किया होगा, जिसके चलते वो अकेले एक भूतियाँ महल में रहने के लिए तैयार हो गई ! और इतने दिनों तक मेरी दी गई तकलीफ़ें झेलने के बाद भी डर और घुटन के साथ जीती रही ।
जब उसने पहली बार इस महल में अपने कदम रखें थे, उसी पल से मैंने ये फैसला कर लिया था कि मैं उसे यहां नहीं रहने दूँगा । उस वक्त शायद अपना कदम महल के अंदर रखते ही पलक को भी किसी के होने का एहसास हो चुका था । उस समय मैं बिल्कुल उसके क़रीब; उसके पीछे खड़ा था । लेकिन, ये जानते हुए भी पलक ने अपना इरादा नहीं बदला ।
उस दिन के बाद मैंने कई बार उसे चेतावनी दी । बारिश वाली उस रात मैं वही उसके कमरे की खिड़की के बाहर था । उसके दाई ओर; उसके क़रीब । लेकिन एक बार फ़िर डरने के बावजूद उसने ख़ुद को बचाने की कोशिश तक नहीं की ।
मैं बिना कुछ कहें बस पलक को यहां से निकालना चाहता था और नाहिं मैं उसे कोई तकलीफ़ पहुँचाना चाहता । लेकिन, मेरे इतना कुछ करने के बावजूद भी जब वो नहीं मानी तब मेरी नफ़रत बेकाबू होती गई और फ़िर मैं पलक के सामने आकर उसे डराने लगा ।

Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें