Chapter 1 - Palak

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आज मैं.. बिल्कुल अकेली हूँ । लेकिन कुछ समय पेहले ऐसा नहीं था । कुछ समय पेहले तक मेरा पुरा परिवार मेरे साथ था ।
मोहिते एन्ड मोहिते इंडस्ट्री के मालिक, मीस्टर. शिवराज मोहिते मेरे बाबा थे । उस रात मैं, मेरा भाई और मेरे आईं-बाबा हम सब कार से घर लौट रहें थे । और तब हमारे साथ हुए एक हादसे ने सबको मुझसे दूर कर दिया ।
उस रात हुए ऐक्सिडेंट से मुझे बचा लिया गया और मुझे हॉस्पिटल लेजाया गया । दो महीनों तक हॉस्पिटल में बेहोश रहने के बाद मुझे होश आया ।
मेरे होश में आने पर मेरी दोस्त गीता से मुझे पता चला के, 'अब मेरा परिवार नहीं रहा । बाबा के जाने के बाद उनकी विल खोली गई । और जब मेरे अंकल-आंटी को इस बात का पता चला के 'मेरे बाबा के बाद उनकी सारी प्रोपटिज़ पर बस मेरा हक़ होगा और जब तक मैं इंडस्ट्री का हर काम सँभालने लायक नहीं बन जाती तब तक इसे चलाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ और सिर्फ़ मातृछाया ट्रस्ट पर होगी ।' तो वो सब लोग इस बात से गुस्सा होकर मुझे बिना बताये मुझे हॉस्पिटल में अकेला छोड़कर चलेे गए ।
अब मैं.. इस बड़ी ज़ायदाद की अकेली वारिस थी । मगर मेरे परिवार के चलें जाने के बाद अब मैं यहाँ नहीं रहे सकती थी । मैं बिल्कुल अकेली पड़ चुकी थी और बहोत ही ज्यादा उदास रहने लगी थी । मुझे इस हादसे का इतना गहरा झटका पहुँचा था कि मैं नाहिं कुछ सोच पा रही थी और नाहिं मुझमें कुछ समझने की शक्ति बची थी । जब भी वो हादसा मुझे याद आता मेरी आँखों से अपनेआप ही आँसू बहने लगते और मैं अकेले में बैठकर कई घंटों तक रोती रहती ।
इस भयानक हादसे के बाद मुझसे मेरा सब कुछ छूट गया था । मेरा परिवार, मेरी पढ़ाई और इसके साथ ही मेरी जिने की उम्मीद भी छूट गई थी ।
उस ऐक्सिडेंट के बाद मैं करीब दो महीनों तक हॉस्पिटल में रही । और इस वजह से मेरी कॉलेज की पढ़ाई छुट गई । गीता और मैं एक ही क्लास में थे और अगर आज मैं ठिक होती तो उसी के साथ कॉलेज के आख़िरी साल में पढ़ रही होती ।
इस मुश्किल समय में गीता ने मेरा बहोत साथ दिया । हॉस्पिटल के इन दो महीनों में मैं पूरी तरह से बेहोश थी । लेकिन उसने वो सब किया जो मुझे बचाने के लिए ज़रूरी था ।
उसने मुझे बताया था के ऐक्सिडेंट में मुझे भी काफ़ी गहरी चोटें आयी थी और मुझे बचाना नामुमकिन सा हो गया था । मुझे बचाने के लिये डॉकटर को मेरे दिमाग़ का ऑपरेशन करना पड़ा । क्योंकि मेरे सर में लोहे का तार घुस गया था, जिसे ना निकालने पर मेरी मौत हो जाती ।
गीता की बातें सुनकर में जान चुकी थी कि उसने मेरे लिये क्या कुछ किया है । पर अब मेरे होश में आने के बाद मैं यहाँ नहीं रहे सकती थी । और मैंने यही बात गीता को भी समझाई, तब उसने मेरी खुशी के खातिर मेरे शहर छोड़कर जाने के फैसले पर अपनी सहमती ।
मेरे होश में आने के कुछ दिनों बाद मुझे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया और उसी दिन मैंने जाने की सारी तैयारियाँ कर ली ।
यहाँ से जाने से पेहले मैंने अपने बाबा की सारी प्रॉपर्टीज मातृछाया ट्रस्ट के नाम कर दी और यहाँ का सारा काम ख़त्म होते ही मैं जाने के लिए निकल पड़ी ।
उस समय गीता भी मेरे साथ आना चाहती थी । वो वहां कुछ समय मेरे साथ रहकर देखना चाहती थी कि मैं वहाँ ठिक से रहे पाउंगी भी या नहीं । लेकिन मैं नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से अब उसे और परेशानी हो । इसलिए मैंने उसे अपने साथ चलने से मना कर दिया ।
अगले दिन वो मुझे स्टेशन तक छोड़ने आई । स्टेशन पर पहुँचते ही मैं अंदर ट्रेन में जाकर अपनी जगह पर बैठ गई । अभी ट्रेन छूटने में काफ़ी समय था । इसलिए गीता भी मेरे साथ बैठी थी ।
"मुझे तुम्हारी बहोत चिंता हो रही है । पता नहीं तुम अकेले इतनी दूर कैसे जाओगी ? ऊपर से तुमने मुझे अपने साथ आने से भी मना कर दिया ।" गीता ने मेरा हाथ पकड़कर परेशान होकर कहा ।
"तुम चिंता मत करो । मुझे कुछ नहीं होगा । मैं अब ठिक हुँ ।" मैंने उसे समझाते हुए धीरे से कहा ।
"मैं जानती हूँ कि अब तुम ठिक हो । पेहले तो तुम्हारा इतना दूर जाना ही मेरे लिए काफ़ी दु:ख की बात है । मगर फ़िर भी जब तक तुम वहां सही-सलामत पहुँच नहीं जाती तब तक मैं चैन से बैठ भी नहीं पाउंगी ।" गीता ने उदास होकर काफ़ी परेशानी में कहा ।
"प्लिज़.. गीता, ऐसी बातें करके मेरे लिए यहाँ से जाना और मुश्किल मत बनाओ । क्योंकि अगर तुम्हारी बातें सुनकर मैं यहाँ रूक गई तो मैं जि नहीं पाउंगी ।" मैंने उदास होकर उसे समझाते हुए धीरे से कहा ।
"ठिक है ।" "वैसे मैंने अपनी दोस्त से तुम्हारे बारें में बात कर ली है । वो तुम्हे वहाँ स्टेशन पर लेने आ जाएंगी ।" गीता ने मेरी तरफ़ देखकर हल्की सी मुस्कुराहट के साथ कहा और तभी ट्रेन छूटने का समय हो गया ।
"अब तुम जाओ । ट्रेन बस छूटने ही वाली है । तुम मेरी चिंता मत करना । मैं वहाँ ठिक से पहुँच जाऊंगी ।" मैंने ट्रेन छूटने की आवाज़ सुनकर उसकी तरफ़ देखकर धीरे से कहा ।
"वो मैं नहीं कर सकती । तुम्हारे वहाँ पहुंचने तक मुझे चिंता होती ही रहेगी । लेकिन विश यू अ वैरी हेप्पी एन्ड सेफ़ जर्नी । एन्ड आई.. मीस यू ।" गीता ने जाने के लिये खड़े होकर कहा ।
"मीस यू टू, माई फ्रैन्ड ।" मैंने गीता की तरफ़ देखकर कहा और उसके साथ खड़ी हो गई ।
मेरे कहते ही उसने मुझे गले लगा लिया और उसके बाद गीता जल्दी से ट्रेन से नीचे उतर गई ।
"ठिक से जाना और जाते ही मुझे इन्फॉर्म करना ।" गीता ने नीचे उतरते ही खिड़की में से मेरा हाथ पकड़कर कहा ।
मुझे पता था वो मेरे जाने से बहोत दु:खी थी । और उसे छोड़कर जाने में मुझे भी बहोत तकलीफ़ हो रही थी । लेकिन मैं.. उसे इस बात का पता नहीं चलने देना चाहती थी । क्योंकि ऐसा होते ही शायद वो मुझे यहाँ रोक लेती । और उस समय जो मुझे रोक सकता था ऐसी एक वही थी ।
"हाँ, मैं करूँगी । तुम बिल्कुल फ़िक्र मत करो ।" मैंने धीरे से कहा और उसी समय ट्रेन शुरू हो गई ।
ट्रेन के आगे बढ़ते ही गीता का हाथ मुझसे छूटता गया । और इसी के साथ मेरा नया सफ़र शुरू हो चुका था ।
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Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें