Chapter 13 - Chandra (part 2)

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Hello Guys,😃
I'm back with another mystery of 'Unknown love'.💕 Enjoy.
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"मैं जानती हूँ, तुम्हारी तकलीफ़ें उन यादों से जूड़ी है । मानती हूँ कि मैं उन यादों को कभी नहीं मिटा पाउंगी ।" उसकी यकीन से भरी आवाज़ सुनते ही, "लेकिन अगर तुम चाहो तो मैं उन बातों को भूलाने में तुम्हारा साथ दे सकती हूँ । मैं तुम्हें.. इस तरह नहीं देख सकती ।" एक पल के लिए मैं रुकने पर मजबूर हो गया ।
पलक की बातों में अंजाना सा अपनापन था । उसे मेरी फ़िक्र थी । मगर मैं.. पलक की बातें अनसुनी करते हुए उसकी नज़रों से अदृश्य हो गया । लेकिन मेरी नज़रें अब भी उसी पर थी । मुझे फ़िक्र थी कि मेरे इस कठोर बर्ताव से पलक को तकलीफ ना पहुंची हो ।
"मुझे पता है तुम यही कही हो ।" उसकी नम आंखें चारों तरफ़ बस मुझे ही ढूंढ रही थी, "लेकिन अगर मेरी वजह से तुम्हे तकलीफ़ हुई हो तो प्लीज़ मुझे माफ़ कर देना । आई'एम.. वैरी सॉरी ।" और अपनी मायूसी भरी आवाज़ में पलक ने माफ़ी मांगी ।
वो सच में बहुत ही ज़्यादा उदास और घबराई हुई थी । और उसकी मायूसी भरी नज़रे बस मुझे ही ढूँढ़ रही थी ।
"मैं बस तुम्हारी हेल्प करना चाहती हूँ ।" पलक ने अपनी बेचैनी भरी आवाज़ में कहना जारी रखा, "मेरे बाबा कहते थे कि ऐसे बहुत से लोग होते हैं, जो हमारी खुशियों का हिस्सा बनते हैं । लेकिन.. ऐसे लोग बहुत कम होते हैं, जो हमारी तकलीफ़ में भी हमारे साथ दे ।" और आखिरकार मेरी खामोशी ने उसकी आँखों में आँसू भर दिए ।
उसे इस तरह तड़ते देखकर, "तुम्हे माफ़ी मांगने की कोई जरुरत नहीं ।" मैं एक बार फ़िर पलक के सामने जाने से ख़ुद को नहीं रोक पाया और मुझे देखते ही उसने अपने आंसू पौछ लिए ।
मैं पलक की तकलीफ नहीं देख पाया था । लेकिन मैं इतना बद्किस्मत था कि मैं उसके आंसू तक नहीं पौछ सकता था ।
"लेकिन तुम मेरे बारें में क्यूँ जानना चाहती हो ?" मैंने परेशान होकर जवाब मांगा ।
लेकिन उसके पास मेरी बात का कोई जवाब नहीं था । वो बस अपने मन में चल रहे सवालों के साथ मेरी तरफ़ देखती रही ।
"ठिक है । मैं तुम्हे सारी बाते बताने के लिए तैयार हूं ।" आखिरकार, "लेकिन तुम्हें वादा करना होगा कि मेरी बातें सुनने के बाद तुम उसके पीछे छुपी सच्चाई को जानने की कोशिश नहीं करोगी ।" पलक की झ़ीद के सामने मुझे झूकना ही पड़ा ।
पलक की बातों ने मुझे अपना मन बदलने पर मजबूर कर दिया था । उसकी बातों ने मुझे अपने बाबा की याद दिला दी थी, जो हमेशा हर चीज़ में मेरा साथ देते थे । लेकिन उस एक हादसे ने मुझे अपने बाबा और मेरे पूरे परिवार से हमेशा के लिए दूर कर दिया ।
मुझे यक़ीन दिलाते हुए, "आई स्वेर । मैं.. वादा करती हूँ, जैसा तुम चाहते हो मैं वहीं करूँगी ।" पलक ने उदासी भरी बिल्कुल हल्की - सी मुस्कान के साथ कहा ।
"उन दिनों हमारे कॉलेज की छुट्टियाँ चल रहीं थी ।" बड़ी मुश्किल से अपने जज़्बातो को काबू करते हुए, "चार सालों बाद मैं.. अपने दोस्तों केे साथ लंडन से भारत लौटा था और अपने घर जा रहा था । लेकिन अचानक आये एक तूफ़ान की वजह से हमें यहाँ रुकना पड़ा । तब हमें इस महल के बारे में पता चला । 'क़रीब डेढ़ सो साल पहले महाराज जय सिंह शांगवे ने अपनी बेटी राजकुमारी नैनावती के लिये इस महल को बनवाया था । सब कुछ ठिक चल रहा था । लेकिन एक दिन अचानक किसी वजह से राजकुमारी की मौत हो गई ।'" मैंने उन दिनों के बारे में बताना शुरू किया ।
मेरी बात सुनते ही, "क्या! लेकिन राजकुमारी की मौत कैसे हुई थी ?" हैरान होकर पलक ने जानना चाहा, जिसका मेरे पास कोई जवाब नहीं था ।
"मैं.. नहीं जानता ।" अपनी बात जारी रखते हुए, "मगर राजकुमारी की मौत के बाद महाराज ने यहां आना छोड़ । उसके बाद से यहां जो भी मंत्री या महाराज के दास - दासियाँ रहते थे उनके साथ अजीब हादसे होने लगे और कई लोगों की मौत हो गई ।" मैंने महल के बारे में, "उस दिन के बाद यहां के लोगों ने इस महल तक आना छोड़ दिया । महल के बारे में इन रहस्यमय कहानियों का पता चलते ही मेरे दोस्त यहां आए बिना नहीं रह पाए ।" कहना शुरू किया ।
"तो क्या इस महल के बारे में जानने के बाद भी तुमने उन्हें नहीं रोका ?" मेरी बात सुनते ही पलक ने चिंता करते हुए कहा ।
"मैं पहले अपने घर जाना चाहता था । अपने आई - बाबा से मिलना चाहता था । इसलिये मैंने उन्हें जाने से इन्कार किया । लेकिन मेरे मना करने के बावजूद वो मुझे बिना बताए इस महल में चलें आए । अगली सुबह जब मुझे पता चला कि वो होटल में नहीं हैं । तब मैं उन्हें ढूँढते हुए यहां आ पहुँचा ।" उन दिनों के बारे में सोचते ही, "तूफ़ानी मौसम के चलते हमें इस महल में दो दिनों तक रुकना पड़ा । और उन दो दिनों में हमारे साथ कुछ अजीबोगरीब हादसे होते गए । लेकिन फ़िर भी मेरे दोस्त यहां से जाने के लिये तैयार नहीं थे । मेरे मना करने के बाद भी उन्होंने इस जगह के रहस्यों को खोलना चाहा और यहां के सभी दरवाज़े खोल दिए ।" मेरे ज़हन में वो तकलीफ भरी यादें ताज़ा हो गई ।
"तो क्या उन्हें कुछ पता चला ?" पलक ने बेचैन होकर धीरे से सवाल किया ।
"नहीं, मुझे पता नहीं । क्योंकि उस दिन पूरे समय मैं उसी कमरे में था, जो आज तुम्हारा है । काफ़ी देर तक मैं अपने दोस्तों केे लौटने का इन्तजार करता रहा । लेकिन जब वो वापस नहीं लौटे तब मैं उन्हें ढूंढने निकल पड़ा । पर मैं उन्हें नहीं ढूंढ पाया । इसलिये 'शायद वो लौट आए हो और जाने की तैयारी कर रहें हो ।' ये सोच कर मैं वापस कमरे में लौट आया । लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ ।" मैंने कहा ।
"क्या..! तुम्हे वो नहीं मिले ?" पलक ने परेशान होकर सवाल किया ।
"नहीं, कमरे में लौटने के बाद मैंने अपने एक दोस्त की काफ़ी दर्दनाक चीख़ सुनी और मैं उसे ढूंढने उस तरफ़ दौडा । लेकिन उस तरफ़ जाते ही मुझे किसी की परछाईं नज़र आयी और मेरे कुछ करने से पहले ही वो परछाईं अचानक मेरे शरीर से पार होकर गुज़र गई । उसी पल मैंने अपनी गरदन से होकर नीचे कंधे तक एक ज़ोरदार और काफ़ी तेज़ दर्द महसूस किया । और मैं नीचे ज़मीन पर गिर पड़ा । कुछ देर बाद मैंने घबराकर अपनी आँखें खोली और उठ खड़ा हुआ ।" मैंने हर एक यादों को अपने मन में दोहराते हुए परेशान होकर कहा ।
"फिर क्या हुआ ? तुम्हे चोट तो नहीं आयी थी ? क्या तुम्हे अपने सब दोस्त मिले ?" पलक ने काफ़ी परेशान होकर सवाल किया ।
"नहीं, बेहोशी से जागने के बाद जैसे ही मैं दूसरी तरफ मुड़ा, मैंने अपने ही बेजान शरीर को नीचे ज़मीर पर पड़ा पाया और मेरे ज़ख़्म से लगातार खून बहता जा रहा था ।" मैंने परेशान होकर धीरे से कहा ।
मेरी बात सुनते ही, "क्या तुम.." पलक ने घबराकर कांपते हुए कहा । लेकिन वो इतना घबराहट के कारण उसके गले से आवाज़ ही नहीं निकल पाई ।
पलक की तरफ़ देखते ही, "हाँ, मैं मर चूका था ।" मैंने उसकी बात को पूरा करते हुए कठोरता से कहा ।
"उस वक्त मैं बस एक बार अपने घर लौटना चाहता था । अपने आई-बाबा और अपने परिवार से मिलना चाहता था । लेकिन मैं उन्हें एक बार भी नहीं मिल पाया । मैं बस किसी भी हाल में अपने दोस्तों को यहां से निकालना चाहता था । मरते वक्त भी मेरे मन के ये जज़्बात इतनी शक्तिशाली थी कि मैं इस दुनिया को नहीं छोड़ पाया और यहीं कैद होकर रह गया । उस दिन से मैंने तैय कर लिया कि जो मेरे साथ हुआ वहीं मैं किसी औ़र के साथ नहीं होने दूँगा ।" मैंने उसकी तरफ़ देखकर धीरे से और गुस्से में कहा ।
लेकिन मेरे इस गुस्से की वजह पलक नहीं थी । उस वक्त मैं अपनी ही नाकामयाबी को लेकर गुस्से में था ।
"म..मैं जानती हूँ, तूम अपने आई-बाबा और अपने परिवार को बहुत चाहते हो ।" मेरी बात सुनते ही, "लेकिन तुम्हे इस बात का सुकून तो है कि कमसे कम तुम्हारा परिवार सही सलामत है ।" पलक ने परेशान होकर धीरे से कहा ।
"हाँ, लेकिन अब मैं उनसे कभी नहीं मिल पाऊंगा ।" मैंने गुस्से में परेशान होकर धीरे से कहा ।
लेकिन तब, पलक के बारें में सोचते ही मुझे अपनी तकलीफ़ कम लगने लगी । और मैं बिलकुल शांत हो गया । उसी समय मैंने अचानक पलक को अपनी डायरी में कुछ लिखते देखा । और उसे वो सब लिखता देखकर मैं बिल्कुल हैरान हो गया ।
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1) What you love about Chandra,
why ?
2) Your Most Favorite Characters from Asambhav, Why ?
3) Why Palak need to write all that dangerous things, according to you ?
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Video made by :- B. Talekar (Me)
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