Chapter 16 - Palak (part 1)

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बुधवार, सुबह 6 : 30 बजे ।
सुबह नींद से अपनी आंखें खुलने पर मैंने ख़ुद को अपने बिस्तर में पाया । मेरे परिवार के साथ हुए हादसे की तकलीफ भरी यादें और इस महल; नयन तारा में बीते मेरे वो डरावने पल आज भी मुझे डरा देते । लेकिन इन सबके बावजूद काफ़ी दिनों बाद आज मैं चैन से सो पायी थी ।
नजाने चंद्र की कहानी सुनते हुए मुझे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला । लेकिन मुझे याद था, मैं वहीं सोफ़ा पर सो गई थी । तो क्या चंद्र मुझे यहाँ लाया था या मैं सपना देखते हुए नींद में चल कर यहां पहुंची थी ? या फ़िर चंद्र के सिवाय यहां पर बसी उस दूसरी आत्मा ने ये किया था ?
मैं बस इस बात का अंदाजा लगा सकती थी । लेकिन मेरे मन में अब भी यही सवाल चल रहा था । मैं इसका जवाब बस चंद्र से मालूम कर सकती थी । पर इस वक्त वो यहां नहीं था ।
पर मुझे ऑफ़िस जाना था । इसी लिए मैं जल्दी से अपने सुबह के काम पूरे करने में जुट गई ।
नहाने के बाद अपना ब्लू एन्ड वाईट स्कर्ट टोप पहनते ही मैं जल्दी से कित्चन में पहुंची । और कित्चन के कामों में जुट गई ।


सुबह 9 : 00 बजे ।
घर का सारा काम खत्म कर लेने के बाद अब मैं ऑफ़िस जाने के लिए बिल्कुल तैयार थी । अपने पैरों में सेन्डल्स पहने के बाद अब बस मुझे सलोनी का इन्तजार था ।
मैं दरवाजे पास खड़ी होकर सलोनी की राह देख रही थी । लेकिन जाने से पहले मैं चंद्र से मिलना चाहती थी । और मेरी आंखें उसे ही ढूंढ रही थी ।
"मुझे ढूंढ रही हो ?" अचानक मैंने अपनी दायी ओर से चंद्र की आवाज़ सुनी । और झट से उसकी ओर मुड़ते ही मैंने उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान देखी ।
"और किसे ढूंढ सकती हूँ ।" चंद्र को देखते ही मेरे चेहरे पर भी हल्की मुस्कराहट आ गई । अचानक जैसे समय थम गया और हमारे बीच एक अनसुलझी खामोशी फैल गई ।
"चंद्र.. कल के लिए मुझे माफ़ करना । तुम्हारी कहानी के बीच कब नींद पता ही चला ।" तब खामोशा को तोड़ते हुए मैंने माफ़ी मांगी ।
"इट्स ओके । इतनी सी बात के लिए तुम्हें माफ़ी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं । वैसे भी तुम कल बहुत थक गयी थी । तुम्हें आराम की ज़रूरत थी ।" चंद्र ने धीरे से कहा ।
"लेकिन.. हमारी कहानी अभी अधूरी है ।" परेशानी में मेरे मुंह से निकल गया ।
"तुम उसकी चिंता मत करो । तुम्हारे घर वापस लौटने पर हम वहीं से कहानी शुरू करेंगे, जहाँ से हमने उसे अधूरा छोड़ा था ।" चंद्र ने धीमे से कहा और मैंने सर हिला कर अपनी सहमति जताई ।
"वैसे.. क्या तुम.. जानते हो कल रात मैं.. कमरे में कैसे पहुंची ?" कल रात के बारे में सोचते ही मैंने हिचकिचाते हुए धीमे से पूछा ।
"मैं तुम्हारे परेशानी की वजह समझता हूँ । लेकिन तुम घबराओ मत । कल रात तुम्हें तुम्हारे कमरे तक पहुँचाने वाला मैं ही था ।" चंद्र ने मेरे बिना कहे मेरी परेशानी को जान लिया, "असल में, तुम यही बैठे हुए सो गई थी । लेकिन तुम गहरी नींद में थी । इसलिए तुम्हें जगाने का मन नहीं किया ।" और मेरी तरफ़ देखकर धीमे से कहा ।
उसकी बात सुनकर मुझे सुकून मिला कि, जैसा मैं सोच रही वैसा नहीं था । चंद्र सच में बहुत अच्छा था । और मुझे खुशी थी कि वो मेरे साथ था ।
"शुक्रिया ! मेरे लिए इतना कुछ करने के लिए ।" उसकी ओर देखते ही मैंने हल्की मुस्कराहट के साथ कहा ।
लेकिन मेरी बात सुनने के बाद भी चंद्र बिल्कुल खामोश रहा । और उसने धीमे से अपनी पलके झुकाई । इसी बीच मैंने स्कूटर के हॉन की तेज़ आवाज़ सुनी ।
सलोना आ चुकी थी । और अब मेरे जाने के समय हो चुका था । तब चंद्र की ओर देखकर हाथ हिलाते ही मैं तेज़ी से आगे बढ़ गई ।

Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें