Chapter 3 - Palak (Part 2)

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हम  दोनों  इन  सब  बातो  को  माने  या  ना  माने ।  लेकिन  यहाँ..  कुछ  तो  था,  जो  बहुत  ही  अजीब  था ।  और  हमारी  समझ  के  परे  था ।
"तुम  यहाँ  अपने  ही  ख्यालों  में  खोई  हुई  हो ।  और  मैं  कब  से  दरवाज़े  के  पास  खड़ी  होकर  तुम्हें  बता  रही  हूँ  कि  मैं  जा  रही  हूँ ।  पर  तुम  हो  कि  कोई  जवाब  ही  नहीं  दे  रही ।"  सलोनी  ने  हँसते  हुए  ऊँची  आवाज़  में  कहा । 
"आई..आई'एम  सॉरी ।  वो  मैं  कुछ  सोच  रही  थी ।"  मैंने  उसके  पास  जाते  हुए  कहा  और  फ़िर  मैं  सलोनी  को  छोड़ने  नीचे  गेट  तक  गई । 
"तुम  मेरे  जाने  के  बाद  गेट  और  ये  दोनों  दरवाज़े  ठिक  से  बंध  कर  लेना ।  वैसे  इसकी  कोई  जरूरत  नहीं,  क्योंकि  यहाँ  कोई  भी  नहीं  आता ।"  सलोनी  ने  मज़ाक़  में  हँसते  हुए  कहा । 
"अरे...  हाँ,  मैं  तो  तुम्हें  ये  गिफ्ट  देना भूल  ही  गई ।"  सलोनी  ने  बहार  आते  समय  मेरे  हाथ  में  एक  बोक्स  देते  हुए  मुस्कुराकर  कहा । 
उस  बोक्स  के  मेरे  हाथ  में  आते  ही,  सलोनी  के  कहने  पर  मैने  उसे  खोलकर  देखा ।  और  उसमें  एक  नया  स्मार्ट  फ़ोन  था । 
"थेन्क  यू !  लेकिन..  इसकी  क्या  ज़रूरत  थी ?"  मैंने  धीरे  से  हिचकिचाते  हुए  कहा । 
"ज़रूरत..?  ज़रूरत  तो  है ।  पर  ये  मैंने  नहीं  दिया ।  ये  गीता  ने  भेजा  है,  तुम्हारे  लिए ।  इसमें  हम  सबके  कोन्टेक्स  मैंने  पहले  ही  सेव  कर  दिये  हैं ।  अगर  तुम्हे  कोई  भी  प्रोबलम  हो,  कुछ  काम  हो  तो  तुरंत  बस  एक  कॉल  कर  देना ।  ओके ?"  सलोनी  ने  गेट  से  बहार  जाते  हुए  थोड़ी  ऊँची  आवाज़  में  कहा  और  फ़िर  सिढ़ियाँ  उतरते  हुए  अपनी  स्कूटर  के  पास  चली  गई । 
उस  वक्त  मैं  बाहर  गेट  के  पास  खड़ी  होकर  उसे  जाते  हुए  देख  रही  थी ।  और  उसे  जाते  देख  मुझे  अजीब - सी  बेचैनी  होने  लगी ।  लेकिन  मैंने  अपनी  इस  बेचैनी  को  अपने  चेहरे  पर  नहीं  आने  दिया ।  और  सलोनी  के  बाहर  जाते  ही  मैंने  गेट  के  दरवाज़े  बंध  कर  दिये । 
"अरे..  हाँ,  मैं  तो  बताना  ही  भूल  गई ।  कल  सुबह  8:30  को  रेडी  रहना ।  मैं  तुम्हें  ऑफ़िस  जाते  समय  लेने  आऊंगी ।"  सलोनी  ने  स्कूटर  स्टार्ट  करते  ही  ऊँची  आवाज़  में  कहा । 
"हाँ,  मैं  तैयार  रहूँगी ।"  मैंने  जवाब  देते  हुए  थोड़ी  ऊँची  आवाज़  में  कहा । 
"ओके  देन  बाय..!  गुड  नाईट..!  कल  मिलते  हैं ।"  सलोनी  ने  जाते  समय  आख़िरी  बार  मुस्कुराते  हुए  कहा  और  मैंने  हाथ  हिलाते  हुए  उसका  जवाब  दिया । 
सलोनी  के  जाते  ही  मैंने  अंदर  आकर  पेलेस  का  दरवाज़ा  बंध  करते  हुए  मैंने  ख़ुद  को  इस  बड़े - से  महल  में  कैद  कर  लिया ।  और  नीचेवाले  कमरे  की  सभी  लाईट्स  बंध  करते  ही  मैं  ऊपरवाले  कमरे  में  चली  गई । 
ऊपर  के  कमरे  में  पहुंचते  ही  मैंने  अपना  जैकेट  निकालकर  बेड  पर  रखां  और  कमरे  की  लाईट्स  बंध  करते  ही  बिस्तर  पर  लेट  गई ।  थकान  की  वजह  से  मुझे  नींद  आने  ही  वाली  थी  कि  तभी  मुझे  लगा  कि,  मुझे  एक  बार  गीता  से  बात  कर  लेनी  चाहिए ।  और  फ़िर..  मैंने  वही  किया । 
"हेलो..!  पलक  कैसी  हो  तुम ?"  गीता  ने  फ़ोन  उठाते  ही  खुश  होकर  कहा । 
"मैं  बिल्कुल  ठिक  हूँ ।"  मैंने  गीता  की  बात  का  जवाब  देते  हुए  धीरे  से  कहा ।  "तुम  ठिक  से  पहुँच  तो  गई  ना ?"  गीता  ने  परेशान  होते  हुए  सवाल  किया । 
"हाँ,  तुम  बिल्कुल  फ़िक्र  मत  करो ।  मैं  यहाँ  ठिक  से  पहुंच  गई  हूँ ।"  मैंने  कहा । 
"और..  थेन्क  यू  वेरी  मच ।"  मैने  फ़ोन  के  बारे  में  बात  करते  हुए  कहा । 
"थेन्क्स ..!?  प्लिज़  तुम  थेन्क्स  मत  कहो ।  ये  मैंने  तुम्हारे  लिए  नहीं,  अपने  लिए  किया  है ।  तुम्हें  पता  है,  जब  तुम  जा  रही  थी  तब  मुझे  बहुत  दु:ख  हो  रहा  था ।  मैं  इस  बात  से  बहुत  दु:खी  थी  कि अब  मैं  तुमसे  कभी  मिल  नहीं  पाउंगी ।  इसलिए  मैंने  तुम्हारे  लिए  वो  फ़ोन  भेजा,  जिससे  कमसे  कम  मैं  तुमसे  बात  तो  कर  पाउंगी ।"  गीता  ने  जज़्बाती  होकर  धीरे  से  कहा । 
"मुझे..  भी..  तुम्हें  छोड़कर  जाने  में  काफ़ी  तकलीफ़  हो  रही  है ।  लेकिन..  मैं  क्या  करती ।  अगर  मैं  वहाँ  रूक  जाती  तो  जी  नहीं  पाती ।"  "जो  भी  हुआ  उसके  बाद  वहाँ  रहना  मेरे  लिए  नामुमकिन  हो  गया  था ।"  मैंने  परेशानी  में  कांपती  हुई  आवाज़  में  कहा । 
"मुझे  पता  है,  इतना  सब  होने  की  वजह  से  तुम  बहुत  दु:खी  हो ।  इसी  लिए  मैंने  तुम्हारी  बात  मानकर  तुम्हें  जाने  दिया ।  लेकिन  तुम  वहाँ  ठिक  से  रहना  और  अपना  ख़्याल  रखना ।  अगर  किसी  भी  चीज़  की  ज़रूरत  पड़े  तो  मुझे  ज़रूर  बताना ।  और  तुम..  सलोनी  को  भी  हर  बात  बिना  किसी  फ़िक्र  के  बता  सकती  हो ।  वो  बहुत  अच्छी  है ।  वो  तुम्हारी  हेल्प  ज़रूर  करेगी ।  ओके.?"  गीता  ने  मेरी  फ़िक्र  करते  हुए,  मुझे  सारी  बातें  समझाते  हुए  परेशान  होकर  कहा । 
"हाँ,  मैं  ज़रूर  बताऊँगी ।  तुम  मेरी  बिल्कुल  चिंता  मत  करो ।  और  तुम  भी  अपना  ख़्याल  रखना ।"  मैंने  गीता  की  बात  समझते  हुए  धीरे  से  कहा । 
"ठिक  है ।  तो  अब  मैं  फ़ोन  रखती  हूँ ।  और  मैं  तुम्हे  कॉल  करती  रहूँगी,  ठिक  है ।  बाय..!  गुड  नाईट  एन्ड  टेक  केयर ।"  गीता  ने  अपनी  बात  ख़त्म  करते  हुए  कहा । 
"बाय..!  टेक  केयर ।"  मैंने  अपनी  बात  ख़त्म  करते  हुए  आखिर  में  कहा  और  फ़ोन  रख  दिया । 
गीता  से  बात  करने  के  बाद  अब  मेरा  मन  कुछ  हल्का  हो  गया  था ।  इसलिए  हमारी  बात  ख़त्म  होते  ही  मैंने  अपना  फ़ोन  रखते  ही  बेड  पर  लेटकर  अपनी  आंखे  बंध  कर  ली  ।  और  सोने  की  कोशिश  करने  लगी ।  मैं  सचमें  बहुत  थकी  चूकी  थी ।  मगर  मैं  बिल्कुल  भी  सो  नहीं  पा  रही  थी । 
बहुत  मुश्किलों  से  कुछ  देर  बाद  जब  मुझे  नींद  आने  लगी,  तब  अचानक  कड़कती  हुई  बिजलियों  ने  मुझे  जगा  दिया ।  मेरी  आँखें  खुलते  ही  मैं  बिस्तर  से  उठ  खड़ी  हुई  और  अपने  पीछेवाली  खिड़की  के  पास  गई ।  खिड़की  के  पर्दे  हटाते  ही  मैंने  खिड़की  के  दरवाज़े  खोलकर  बहार  देखा । 
वहाँ  बहार  काफ़ी  अँधेरा  था  और  बहुत  तेज़ी  से  हवाएँ  चल  रही  थी ।  उस  समय  हवा  की  रफ्तार  इतनी  ज़्यादा  थी  कि  मुझे  हवाएँ  चलने  की  आवाज़े  भी  सुनाई  दे  रही  थी ।  और  इसीके  साथ  मैं  पैंड़ो  के  हिलने  की  आवाज़े  भी  साफ़  सुन  सकती  थी ।  उन  तूफ़ानी  हवाओं  के  साथ  बिजली  गिरते  ही  कुछ  समय  के  लिए  हर  जगह  रोशनी  फैल  गई ।  और  बिजली  कड़कने  की  उस  ज़ोरदार  आवाज़  से  मानों  आकाश  टूट  पड़ा  हो । 
इस  तरह  का  बिगड़ा  हुआ  मौसम  देखकर  लग  रहा  था,  जैसे  यहाँ  बहुत  ज़ोर  से  बारिश  होनेवाली  थी । 
सारा  आकाश  काले-घने  बरसाती  बादलों  से  भर  गया  था  और  बारिश  होने  ही  वाली  थी ।  लेकिन  मैं  अभी  भी  खिड़की  के  पास  खड़ी  बाहर  देख  रही  थी । 
तभी  एक  बार  फ़िर  ज़ोर  की  कड़कड़ाहट  के  साथ  बिजली  कड़की ।  लेकिन  इस  बार  बिजली  कड़कते  ही  मुझे  किसी  अंजान  डर  ने  घेर  लिया ।  इस  बार  बिजली  के  कड़कते  ही  मुझे  महसूस  हुआ,  जैसे  खिड़की  के  बहार  मेरी  दाई  तरफ  कोई  है,  जो  मुझे  देख  रहा  है,  मुझे  सुन  रहा  है ।  यहाँ  आते  ही  बार-बार  मुझे  यहीं  महसूस  हो  रहा  था  कि  वो  जो  कोई  भी  है,  मगर  वो  मेरे  क़रीब  रहकर  मुझ  पर  नज़र  रख  रहा  था । 
मगर  इतना  कुछ  अजीब  महसूस  होने  के  बाद  भी  मैं  ख़ुद  को  यहीं  समझाने  की  कोशिश  कर  रही  थी  कि  ये  सब  मेरी  कल्पना  है ।  या  शायद  बिजली  के  चमकने  से  या  उससे  बनी  परछाइयों  की  वजह  से  मुझे  ऐसा  महसूस  हो  रहा  था । 
इस  तरह  से  आख़िरकार  मैंने  अपनेआप  को  मना  लिया ।  और  खिड़की  के  दरवाज़े  बंध  करने  के  बाद  मैं  बिस्तर  पर  लेटकर  एक  बार  फ़िर  सोने  की  कोशिश  करने  लगी । 
मैने  ख़ुद  को  इस  बात  से  ध्यान  हटाने  के  लिए  मना  तो  लिया  था ।  मगर  मैं..  अब  भी  काफ़ी  डरी  हुई  थी ।  इसलिए  मैं  अपने  सर  के  ऊपर  से  चद्दर  ओढ़कर  सोने  की  कोशिश  की ।  मगर  मुझे  अभी  भी  यहीं  डर  परेशान  किये  जा  रहा  था  कि  खिड़की  में  से  कोई  मुझे  देख  रहा  था ।  लेकिन..  कुछ  देर  बाद  आख़िरकार  मुझे  नींद  ने  घेर  ही  लिया ।

Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें