Chapter 25 - Chandra (part 5)

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कहानी अब तक: "...तब आगे बढ़ते हुए निसर्व अचानक सर के बल उस टीले की चोटी से नीचे गिर पड़ा। तभी गिरते समय एक तरफ सर घुमाते ही उसने अपने सामने वैदेही को खड़ा पाया, जो उसी के साथ बिल्कुल सीधे नीचे जा रही थी। और उसी पल निसर्व को वैदेही का सच नज़र आया।" अपने मन में शोर मचाती उलझनों को परे करते हुए मैं लगातार कहानी सुनाने पर ध्यान दे रहा था।

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"वैदेही का सच!? वो क्या था, चंद्र?" पलक के चेहरे पर हैरत के भाव साफ़ दिख रहे थे।
"हां, वैदेही का सच।" जवाब देते हुए मैं पलक की ओर मुड़ा। और उसके पास जाकर बैठ गया।
"गिरते समय निसर्व को तेज़ रौशनी नज़र आई और उस रोशनी से गुजरते हुए वो उस समय में पहुंच गया, जिस समय वैदेही ने अपनी जान दी थी।
निसर्व एक बार फ़िर मूसलाधार बरसाती रात में उसी टीले पर खड़ा था और उसके सामने दूर दो इंसान खड़े थे, वैदेही और उद्धम सिंह । उद्धम सिंह वैदेही को पाने के जुनून में बिल्कुल बोखला गया था। वो पागल सा हो गया था। और अपने जुनून में वो इतना अंधा हुआ के वैदेही के साथ जबरदस्ती करने पर उतर आया। इसी ज़ोर आजमाई के बीच वैदेही ने उद्धम सिंह के कमर पर बंधा खंजर निकाल कर उसके आगे तान दिया।
'तू मने कभी हासिल ना कर पावेगा, शैतान।
थारा ये सपणा कभी पूरा ना होगा। राणा जी तने माफ़ नहीं करेंगे।' वैदेही खुद को बचाने के लिए जूझ रही थी। और निसर्व उन्हें हैरान होकर देख रहा था।
'अरे मारी राणी, राणा जी तो तब कुछ करेंगे जब उण्हें कुछ पता चलेगा। आज रात तारे गांव का हर वो इंसान हमेशा के लिए मौत की नींद सो जायेगा, जो मारा सामना करने की जुर्रत करेगा। पण हां, एक रास्ता है। अगर तू खुदको मणे सौंप देगी, तो तारे गांव वाले बच जावेंगे।' उद्धम सिंह अब भी घटियां हरकतों से बाज नहीं आया।
'अरे ओ शैतान भेड़िए। मने ये पता है कि तू किसी भी कीमत पर उन्हें नहीं बक्षेगा।
पण याद रखना, एक दिण थारा ये वास्तविक रूप सबके सामणे आवेगा। और तब तक यहां के बादलों से खूण की वर्षा होगी। खूण की ये वर्षा थारे और इस दुनियां वालों को म्हारे और उन सभी बेगुनाह लोगों की निर्मम हत्या को भूलणे नहीं देगी, जिन्हें तूणे मारा है। तु भी उसी तरह तड़प-तड़प कर मरेगा, जिस तरह तूणे यहां की मासूम प्रजा को तड़पाया है।' वैदेही की वो भयानक सिसकियां चारों ओर गूंज उठी।
उसी पल वैदेही ने वो खंजर उद्धम की ओर फेंका। पर उद्धम अपना बचाव करते हुए एक तरफ़ मुड़ गया। मगर मौक़ा पाकर वैदेही ने टीले की चोटी से छलांग लगा दी। वैदेही के छलांग लगाते ही उद्धम ने आगे बढ़कर उसे देखा।
वैदेही का बेजान शरीर नीचे ज़मीन पर पड़ा। उसके सर और मुंह से खून निकल रहा था। आंखरी बार झटपटाहट के साथ वैदेही ने दम तोड़ दिया।
'तारा जान देना फिजूल हो गया, वैदेही। जे तू मारी बात मान लेती तो महलों में राज करती। पण अब तारे लोग कभी शांति से ना जी पावेंगे। मने ठुकराने की सजा अब तारे गांव ने चुकानी पड़ेगी। आज से तारे गांव के लोग मर-मर के जिनेंगे। ना उनके पास पैसा होगा, ना उन्हें खाने वास्ते रोटी मिल पावेगी। अगर किसीणे गांव की सीमा पार करने की कोशिश की तो मैं उसे भी मौत की गोद में सुला दूंगा। और इस सबका दोष सिर्फ़ तने लगेगा, वैदेही। सिर्फ़ तने...' उद्धम सिंह को गुस्से में कहते सुनकर निसर्व बिल्कुल दंग रह गया।
उसी समय जोरदार बिजली कड़की और निसर्व की आंखे खुलते ही वो नीचे ज़मीन पर पड़ा था। उसी समय सर घुमाते ही उसने वैदेही के बेजान शरीर को ज़मीन पर पड़े देखा। खून से लथपथ उसका शरीर आज भी काफ़ी तकलीफ़ में था। उसकी वो बेबस आंखे अब भी खुली थी, जो शायद किसी के इंतज़ार में थी।
निसर्व ये सब देखकर काफ़ी हैरान था। मगर इस सबसे ज़्यादा हैरानी उसे इस बात की थी कि, इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद भी वो ज़िंदा था। इसके अगले ही पल वैदेही का बेजान शरीर रेगिस्तान में उड़ती रेत की तरह बिखरकर गायब हो गया।
निसर्व इस कहानी की सभी कड़ियों को जोड़ने में लगा ही था कि तभी उसे जोगिंदर काका और श्रवा की आवाज़ सुनाई दी। वो दोनों निसर्व को ढूंढते हुए वहां आ पहुंचे थे। और जोगिंदर काका के हाथ में एक पुरानी कटार थी। और वो दोनों तेज़ी से निसर्व को तरफ़ बढ़ रहे थे।
तभी अचानक निसर्व को अपने गले पर तेज़ दर्द मेहसूस हुआ, जैसे कोई उसका गला घोंट रहा हो। निसर्व को एकाएक दर्द से झटपटाते देख श्रवा और जोगिंदर काका घबरा गए और तेज़ी उसकी तरफ़ दौड़ पड़े। मगर ठीक उसी वक्त निसर्व को किसी अंजान शक्ति ने ऊपर हवा में उठा दिया। और उसे पीछे धकेलने लगा।
निसर्व सांस लेने के लिए झटपटा रहा था। उसका दम घुटने लगा। उस अदृश्य शक्ति की पकड़ निसर्व के गले पर कसती ही जा रही थी। मगर निसर्व बिल्कुल बेबस था। वो ख़ुद को बचाने के लिए कुछ भी नहीं कर पा रहा था। और ना ही श्रवा और जोगिंदर काका कुछ कर पा रहे थे। क्यूंकि जैसे जैसे उनके आगे बढते निसर्व और पीछे खिंचता चला जा रहा था।
धीरे-धीरे अब निसर्व की सांसे टूटने लगी थी। उसका दम घुटने लगा था।
'इसे पकड़ो, साब...' जोगिंदर काका की आवाज़ सुनते ही निसर्व ने आंखे खोली। और उसी पल जोगिंदर काका ने वो कटार निसर्व की दिशा में उछाल दी।
निसर्व अब काफ़ी कमज़ोर पड़ चुका था। उसमें अब बस थोड़ी सी ही जान बची थी। मगर फिर भी उसने हिम्मत करते हुए अपनी आंखरी बची हुई कुछ सांसों को समेटते हुए पूरी जान लड़ा दी। और आंखीरकार उसने वो कटार पकड़ ली।
तब जैसे ही वो कटार निसर्व के हाथ में पड़ी तब उसने जो देखा उसे देखकर वो बिल्कुल दंग रह गया। उस कटार का स्पर्श होते ही निसर्व को अपने सामने एक हट्टाकट्टा आदमी दिखाई दिया, जिसने जरीदार शेरवानी और सर पर रौबदार पगड़ी पहनी थी। उसकी बड़ी मुछे घमंड में तनी होने के साथ ही चेहरे पर बेहूदा मुस्कान थी। और उसकी आंखों में छल-कपट लालच और हवस साफ़ नज़र आ रहे थे।" कहानी सुनाते हुए एक पल के लिए जैसे वो भयानक दृश्य मेरी आंखों के सामने उजागर हो गया। और कहते हुए मेरी रफ़्तार धीमी पड़ गई।
"क्या वो ख़ुद राणा उद्धम सिंह था?! क्या उस सभी भयानक घटनाओं के पीछे वहीं था?" कहानी को लेकर अनुमान लगाते ही पलक हैरान रह गई। और उसकी कई सवालों भरी अशांत नजरे मुझे घूरती रही।

Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndiaजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें