हेल्लो दोस्तों, इससे पेहले की आप शुरू करे देरी के लिए मैं माफ़ी चाहती हूं । हर बार की तरह समय की कमी होने के बावजूद इस बार भी मैंने दिल लगाकर इस चैप्टर को लिखा है । लेकिन इसके बावजूद कोई कमी हो तो संभल लीजिएगा । और अपने कमाल के एक्स्पीरियंस बांटना बिल्कुल मत भूलना । मेरे लिए आपके वोट और कॉमेंट हमेशा कीमती रहेंगे ।
आपकी, बि. तळेकर ♥️
🔹🔷🔹🔷🔹🔷🔹🔷🔹🔷"जब तरंग को इस बात का ऐहसास हुआ तो उसने ये बात तुरंत पूर्वा को बताई । ये बात जानकर पूर्वा परेशान हो गई । उसने तरंग को बताया कि, 'अगर ऐसा हुआ तो बहोत बुरा होगा । कोई भी आत्मा किसी ज़िंदा इंसान के शरीर में उसकी मर्ज़ी के बिना पूरी तरह कब्ज़ा नहीं कर सकती । लेकिन छोटे बच्चे.. उनकी कोई मर्ज़ी नहीं होती । वो तो हर बात दूसरों से सीखते है । इस तरह वो रूह सुप्रिया दीदी के बच्चे को जन्म से पहले ही मार देगा और उसकी जगह ख़ुद ले लेगा । अगर ऐसा हुआ तो जन्म के उस बच्चे के शरीर पर पूरी तरह उस रूह का कब्ज़ा होगा । इस लिए हम ये नहीं होने दे सकते । तुम्हें किसी भी तरह उस रूह को वापस अपने पास लौटने के लिए राज़ी करना होगा ।' इतना सब जानने के बाद तरंग बहोत परेशान हो गया । वो ख़ुद किसी भी डर या खौफ के साथ जी सकता था । लेकिन वो अपने परिवार को किसी भी मुसीबत में नहीं देख सकता था । इस लिए उसने उस रूह को वापस बुलाने का फैसला कर लिया ।" कहानी पर लौटते हुए, "उसी रात जब सुप्रिया अपनी दवाईयां लेकर आराम कर थी तब तरंग उसके पास पहुंचा और उसने उस रूह से वापस लौटने की गुज़ारिश की । 'मैं जानता हूं तुम मुझे सुन रहे हो । मैं तुमसे गुज़ारिश करता हूं तुम मेरी बहन और मासूम बच्चे को जाने छोड़ दो । वो तुम्हारी भी बहेन है । तुम उसे नुक़सान नहीं पहुंचा सकते । वैसे भी वो एक छोटा बच्चा है । वो कमज़ोर है । लेकिन मैं जवान हूं । तंदुरुस्त हूं । और तुम एक तंदुरुस्त शरीर ही चाहोगे । मैं तुम्हें मेरा शरीर पेश करता हूं । तुम उन्हें छोड़ दो ।' तरंग अपनी बहेन के कमरे में जाते ही परेशान होकर कहा और इसी के साथ अपने हाथ बाबा काल भैरव की मौली निकाल दिया । तरंग के ऐसा करते ही वो आत्मा तरंग के पास वापस लौट आई । 'बिल्कुल सही फैसला किया, तरंग । मैंने जितना सोचा उससे कई ज़्यादा समझदार निकले ।' अगले ही पल तरंग के कानों में उस रूह की आवाज़ गूंजी, जो उसी के कंधों पर सवार था । 'मेरी बात सुनने के लिए बहोत बहोत शुक्रिया । लेकिन मैंने तुम्हें अपने शरीर में पनाह दी । इसलिए तुम्हें मेरे लिए कुछ करना होगा ।' तरंग ने धीमे से कहा । 'ये कोई एहसान नहीं । ये तुम्हारा कर्ज़ है । तुम्हारी वजह से मेरा शरीर मुझसे छीन गया । और अब इस शरीर पर मेरा भी अधिकार है । लेकिन फ़िर भी कहो क्या चाहते हो मुझसे ।' तरंग की मांग पर वो रूह भड़क उठी । मगर उसने तरंग को सहमति दे दी । 'तुम्हें पूर्वा की बहेन वाणी को वापस लाने में हमारी मदद करनी होगी ।' तरंग ने डर की वजह से हल्की सी कांपती अपनी आवाज़ में कहा ।" मैंने कहना जारी रखा ।
"क्या ! तरंग ने एक रूह से सौदा कर लिया, जो उसी के शरीर पर कब्ज़ा किए बैठा था !?" पलक इस बात से काफ़ी हैरान थी । मगर मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए उसने धीरे से कहा ।
"हां, अपने परिवार और अपनी दोस्त की ख़ुशी के लिए उसने उस रूह से सौदा कर लिया ।" पलक की बात का जवाब देते ही मैं फ़िर कहानी पर लौटा । "अगले दिन सुबह जब तरंग पूर्वा के घर पहुंचा तो उसे पता चला की वाणी की तबियत अचानक बिगड़ जाने की वजह से उसे हॉस्पिटल ले जाया गया है । और पूर्वी भी अपने परिवार के साथ वहीं पर है । और इस बात का पता चलते ही तरंग तुरंत हॉस्पिटल जा पहुंचा । वहां पहुंचने पर उसने देखा कि वाणी ICU में थी और डॉक्टर्स उसकी ट्रीटमेंट में लगे थे । तरंग के पास आते ही पूर्वा उसे अपने परिवार से दूर एक ओर ले गई । 'अच्छा हुआ तुम आ गए । मैं ये बात तुम्हारे सिवा किसी और से नहीं कर सकती ।' और परेशान होकर कहते हुए उसने तरंग को गले लगा लिया । पूर्वा अपनी बहेन को लेकर काफ़ी परेशान और डरी हुई थी । जिस वजह से वो ये तक भूल गई थी के तरंग अकेला नहीं था । और इस बात का ऐहसास होते ही वो पिछे हट गई । तरंग के सवाल पर, 'मैं जानती हूं, दीदी की तबियत ख़राब नहीं हुई । वो बिल्कुल ठिक है । लेकिन कोई है जो दीदी को दूसरी दुनियां में खींच रहा है । और इस लिए उसका शरीर कमज़ोर पड़ रहा है । उसका साथ छोड़ रहा है ।' पूर्वा ने सारी हकीक़त बता दी । 'मैं तुम्हें यही बताना चाहता था के मैंने तुम्हारी दीदी को वापस लाने का रास्ता ढूंढ़ लिया है । लेकिन इससे पेहले ये सब हो गया ।' जैसे ही तरंग ने परेशान होकर ये कहा, 'तो इसमें कौनसी बड़ी बात है । हम ये काम अब भी कर सकते हैं ।' वैसे ही उस आत्मा की आवाज़ फ़िर उसके कानों में गूंजी । 'लेकिन ये कैसे मुमकिन है ?! वाणी अभी बहोत कमज़ोर है । हम ये रिस्क नहीं ले सकते ।' अचानक तरंग को कहते सुन पूर्वा हैरान हो गई । 'क्या तुम सच में अब उससे बातें करने लगे हो ?' और उसे हैरत भरी नज़रों से घूरते हुए पूर्वा ने पूछा । और उसके बाद तरंग ने उस रूह से किए गए अपने सौदे के बारे में सब कुछ बताया । 'ये तुम क्या बोल रहे हो ? तुमने अपना दिमाग़ तो नहीं खो दिया ! तुम उस आत्मा पर भरोसा कैसे कर सकते हो, जो तुम्हारा शरीर हथियाना चाहता है !? और मैं उस पर कैसे भरोसा कर लूं कि वो मेरी दीदी को कोई नुक़सान नहीं पहुंचाएगा ?' पूर्वा ने काफ़ी परेशान होकर ऐतराज़ जताया । पूर्वा की बात सुनते ही, 'इसे कहो मैं उसे पसंद करता हूं इसका मतलब ये नहीं कि वो मेरे बारे में कुछ भी कहेगी और मैं उसे छोड़ दूंगा । वैसे भी मेरी बात मानने के सिवाय इसके पास और कोई चारा नहीं ।' गुस्से में बड़बड़ाते हुए उस रूह ने कहा । और उसकी बाते सुनते ही तरंग गहरी सोच में पड़ गया । तरंग और पूर्वा धीरे-धीरे काफ़ी अच्छे दोस्त बन चुके थे । और वो उस रूह को पूर्वा के क़रीब नहीं आने देना चाहता था । क्योंकि तरंग ये अच्छी तरह समझ चुका था कि चाहे वो उसकी बात मान गया था । लेकिन वो कितना ख़तनाक था । यहां तक की वो एक मासूम बच्चे तक की जान लेने के लिए तैयार हो गया था । मगर तरंग ये भी जानता था कि इस वक़्त वो सही था । 'हमारे पास ये समझौता करने के सिवा और कोई रास्ता नहीं है, पूर्वा । हमें तुम्हारी दीदी को बचाने के लिए ये करना ही होगा ।' पूर्वा के चेहरे पर हाथ रखते ही तरंग ने उसे मानते हुए कहा । और तरंग पर भरोसा करते हुए उसने अपनी सहमति दे दी । लेकिन अब उन्हें बस इस बात का इंतज़ार था कि कुछ समय के लिए वाणी अपनी ज़िंदगी की ये जंग जारी रखें । उन्हें अकेले में वो समय मिले ताकि वो उसे बचा सके । और ऐसा ही हुआ । वाणी की कंडीशन स्टेबल होते ही पूर्वा और तरंग चुपके से उसके पास पहुंचे । 'अब हमें क्या करना होगा ?' तरंग वाणी की मदद करना चाहता था । लेकिन वो नहीं जानता था कि ये काम कैसे करता है । 'हमें भी उसके पास जाना होगा । और क्या ।' उस रूह ने अकड़ कर कहा । 'वाणी दीदी की मदद करने के लिए तुम्हें भी उसी दुनियां में जाना होगा जहां वो है । तुम यहां बिल्कुल आराम से बैठ जाओ । अपनी आंखे बंद करो और अपनी रूह को अपने शरीर से बाहर लाने की कोशिश करो ।' पूर्वा के कहे मुतबिक तरंग ने बिल्कुल वैसे ही किया । लेकिन कुछ नहीं हुआ । तरंग को ये नहीं पता था कि ऐसा करने के लिए पेहले अपने मन को शांत कर बिल्कुल एकाग्र करना पड़ता है । इस काम को करने में बहोत धीरज और सब्र की ज़रूरत होती है । 'तुम रहने दो । तुम सिर्फ़ उस लड़की का हाथ अपने हाथों में लेकर चुपचाप बैठ जाओ । और बाकी सब मुझ पर छोड़ दो ।' तरंग की नाकाम कोशिशों को देखकर उस रूह ने उबते हुए चिड़कर कहा । 'क्या ! तुम अकेले इसे बचाओगे ?' तरंग को अब भी उस पर शक था । लेकिन तरंग के पास उस रूह की बात मानने सिवाय और कोई रास्ता नहीं था । तब तरंग बिना किसी सवाल के वाणी का हाथ अपने हाथों में लेकर बैठ गया । और उसी जुड़ाव के ज़रिए वो रूह वाणी के पास जा पहुंची । जब वो आत्मा वाणी के पास पहुंचा तब वाणी एक लंबी खुली सड़क पर डर के मारे बेतहाशा भागे जा रही थी । जहां दूर तक सफ़ेद घनी धुंध छाई थी । भागते समय वाणी ने उस रूह को देखा । लेकिन वो उससे डर कर आगे भाग गई । उसी वक़्त एक औरत की आत्मा काफ़ी ज़्यादा गुस्से में वहां आ पहुंची । जिसने लंबा काला लबादा ओढ़े रखा था । उसके लंबे काले हाथों के साथ उसका काला-डरावना चेहरा उसे और भयानक बना रहा था । इसी के साथ उसके लंबे काले-सफ़ेद बाल और नाखूनों के साथ उसके नुकीले दांत देखने वाले को डर से कंपकंपा देते । 'आज तक तुम मुझसे छुपती अाई हो । लेकिन याद रखना तुम मुझसे सिर्फ़ छुप सकती हो । मुझसे बच नहीं सकती । मैं तुम्हारे पीछे हूं ।' उस दूसरी भयानक आत्मा ने गुस्से में कड़कते हुए कहा । और वाणी की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ गई । लेकिन तभी तरंग के भाई की रूह उसके सामने आ गई । और उसे ज़ोर से धक्का देकर पीछे धकेल दिया । 'वो मेरा शिकार है । मैं उसके शरीर पर कब्ज़ा चाहती हूं । मैं तुम्हें अपना शिकार नहीं छीनने दूंगी ।' उस औरत ने गुस्से में कड़कते हुए कहा और तरंग के भाई की रूह पर टूट पड़ी । एक तरफ़ वो उस शैतानी आत्मा से लड़ रहा था । वहीं दूसरी तरफ तरंग अपने भाई की रूह से जुड़ा होने की वजह से उसे भी उन ज़ख्मों को झेलना पड़ रहा था, जो उस औरत की आत्मा उसके भाई को दे रही थी ।
तरंग बेहोश हो चुका था । और उसके शरीर पर आपनेआप घाव बनते जा रहे थे । कुछ पलों की कोशिश के बाद पूर्वा तरंग को फ़िर होश में ले अाई । लेकिन तभी अचानक उस कमरे में डॉक्टर्स और नर्श आ गए । और उन्हें देखते ही तरंग ज़ल्दबाज़ी में वाणी का हाथ छोड़कर खड़ा हो गया । और उससे दूर हो गया । इसी के साथ उससे जुड़ी वो रूह भी दूसरी दुनियां से निकलकर वापस तरंग के पास लौट आई । उस दिन वो लोग वाणी को वापस नहीं ला पाए । लेकिन उन्होंने उसे कुछ समय के लिए उस भयानक आत्मा से बचा लिया था । जिस वक़्त वो दोनों आत्माएं आपस में उलझी हुई थी उसी दौरान वाणी वहां से दूर जाकर छुप गई ।" और बिना रुके कहानी कहता चला गया ।
"तो फ़िर वाणी का क्या हुआ ? क्या वो कभी वापस अपने घर लौट पाई !?" पलक ने काफ़ी परेशान होकर फ़िक्र करते हुए पूछा ।
उस वक़्त उसकी उन प्यारी सी चमकती भूरी आंखों में वाणी के लिए चिंता और परेशानी साफ़ दिख रहे थे । वो उसे लेकर परेशान थी । वो वाणी के लिए अच्छा चाहती थी । और अब उसकी उम्मीद से भरी नज़रे मुझ पर ठहरी थी । पलक वाकई में काफ़ी संवेदनशील, समझदार और गहन विचारशील थी । उसके मन में सभी के लिए बहोत करूणा और फ़िक्र भारी थी । और उसका यहीं निर्मल स्वभाव, उसकी ये खूबी हर बार मुझे उसके पास ले आती ।
लेकिन कही मैं उसके इतने नज़दीक ना चला जाऊं जहां से मेरा वापस मुड़ना मुश्किल हो जाएं,' यहीं सोचकर मैंने अपनी नज़रे झुका ली । "दो दिनों तक हॉस्पिटल में रखने के बाद वो लोग वाणी को घर ले आए । उसी शाम तरंग और पूर्वा फ़िर वाणी से मिलने गए । वो लोग वाणी के कमरे में बैठे थे जब तरंग की नज़र एक तस्वीर पड़ी, जो पूर्वा और वाणी के बचपन की थी ।" और कहानी को आगे बढ़ाते हुए, "तब उस तस्वीर को हाथ में लेते ही, 'ये हम दोनों की बचपन की तस्वीर है । मैं और दीदी अक़्सर इस पार्क में खेलने जाते थे । और उस दिन भी हम वहीं पर थे जब दीदी के साथ वो हादसा हुआ । मैं और दीदी स्लाइड (फिसल पट्टी) पर खेल रहे थे तब अचानक मेरा पैर फिसला । और मुझे बचाने के लिए दीदी स्लाइड के उपर से नीचे कूद गई । उस दिन उन्होंने मुझे तो बचा लिया । लेकिन, उनका सर ज़मीन पर पड़े पत्थर से टकरा गया । और वो बेहोश हो गई । उस दिन वो उस नींद में ऐसी खोई कि आज तक नहीं जाग पाई ।' पूर्वा ने सारी बातें बताई जिसका अफ़सोस आज भी उसके दिल में बरकरार था । तब जैसे ही तरंग ने उस तस्वीर को अपने हाथों में लेकर देखा तो वो उसे देखकर हैरान रेह गया । 'ये जगह तो इसी शहर में थी न ?' तरंग ने तस्वीर को गौर से देखते हुए हैरत से कहा । 'हा, हम पेहले यहीं, इसी शहर में रेहते थे । लेकिन, दीदी के साथ ये हादसा होने के बाद हम सब अपने होमटाउन चले गए । उनका इलाज़ करवाने । मगर कुछ सालों बाद हमारे पापा के बिज़नेस की वजह से हमें फ़िर इसी शहर में लौटना पड़ा । लेकिन, वाणी दीदी के मम्मी-पापा नहीं चाहते थे कि दीदी को फ़िर उसी घर में ले जाया जाए जहां पर उनके साथ इतना बुरा हादसा हुआ । इसलिए वो अपना घर छोड़कर यहां चले आए ।' पूर्वा ने बिना कोई राज़ रखें खुले मन से सब केह सुनाया । 'लेकिन, ये तो वहीं जगह है जहां मैंने वाणी को भागते देखा था । और वो भद्दी सी दिखने वाली काली चुड़ैल भी इसी जगह के आसपास भड़क रही थी, जो वाणी के पीछे पड़ी है ।' अचानक तरंग के कानों में उस रूह की हैरत भारी आवाज़ गूंजी । जिसे जानकर तरंग गहरी सोच में पड़ गया । और उसने ये सारी बात पूर्वा को बताई । 'लेकिन, ये कैसे हो सकता है !? ये जगह तो वहां पर 5-6 सालों पेहले थी । तो फ़िर दीदी आज भी उस जगह कैसे हो सकती है ?!' पूर्वा ने परेशान होकर सोचते हुए कहा । उसे इस बात पर बिल्कुल भरोसा नहीं हो रहा था । वो काफ़ी परेशान और कशमकश में थी । 'मुझे लगता है, वो सही है । तुम्हारी दीदी ना सिर्फ़ उस जगह पर फंसी है बल्कि, उस समय में भी फंसी है । इसीलिए तुम आज तक उसे वापस नहीं ला पाई ।' तरंग ने सभी पेहलुओं पर गौर करते हुए सोच-समझकर गंभीरता से कहा । 'शायद, तुम सही हो । लेकिन, अब हमें क्या करना चाहिए ? उस वक्त मैं काफ़ी छोटी थी । इसलिए मुझे उस जगह के बारे में याद नहीं । और अब तो वो जगह पूरी तरह बदल गई है तो हमें कैसे पता चलेगा कि दीदी को किस रास्ते वापस लाना है ?!' तरंग की बात पर सोच-विचार करते हुए पूर्वा ने परेशान होकर कहा । तब तरंग ने बताया के उसके पास इसका एक उपाय है ।" मैंने कहना जारी रखा ।
मगर इससे पेहले कि मैं आगे बोल पता, "चंद्र ?" पलक की प्यारी सी आवाज़ ने मुझे रोक दिया । और मैंने उसके आगे बोलने के इंतजार में उसकी ओर सहमति से देखा ।
"क्या ये मुमकिन है कि दो दुनियाओं के बीच समय का इतना बड़ा अंतराल हो सकता है ? क्या समय में इतना अंतर होने के बावजूद दो दुनियां एक साथ पैरलल चल सकती है ?" पलक ने गहरी सोच के साथ कहते हुए मेरी तरफ़ देखा ।
"हां, ये मुमकिन है । भौतिक दुनियां में यानी फिजिकल वर्ल्ड में समय हमेशा आगे की ओर बेहता है । तुम्हें अपना भूतकाल अपना पास्ट याद रहता है । मगर तुम अपने भूतकाल में जा नहीं सकती । लेकिन, पारलौकिक दुनिया यानी एस्ट्रल वर्ल्ड में भूतकाल और वर्तमान एक-दुसरे की समय रेखा को काटते रहते हैं । पारलौकिक दुनिया में कई समय धाराएं आपस में टकराती रेहती है । इसलिए जब कोई मरता है तो उसी समय की यादे उसके ज़हेन में बस जाती है । जिस वजह से कई सालों बाद भी उसकी आत्मा वही दुःख, तकलीफ़ और दर्द मेहसूस करती है, जो उसने मरते समय की थी । और यही वजह होती है कि बरसों से बाद भी उनका गुस्सा कम नहीं हो पाता ।" मैंने पलक की ओर देखकर कहा ।
"शा..यद, इसी.. वजह से राजकुमारी.." डर से थरथराते होठों के साथ पलक ने कहना चाहा । लेकिन, इससे पेहले कि वो उसका नाम पुकार पाती, "नहीं पलक, उसका.. नाम मत लो ।" मैंने पलक के नज़दीक जाकर उसके होठों पर ऊंगली रखते ही उसे रोक दिया ।
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Asmbhav - The Mystery of Unknown Love (1St Edition) #YourStoryIndia
Paranormal#1 in Paranormal #1 in Ghost #1 in Indian Author #1 in Thriller #WattpadIndiaAwards2019 #RisingStarAward 2017 ये कहानी 'प्यार की ये एक कहानी' से प्रेरित ज़रूर है, लेकिन ये उससे बिल्कुल अलग है। कहते हैं कि सच्चा प्यार इंसानी शरीर से नहीं बल्कि रूह...