क्रांतिकारी नलिनी कांत बागची

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बंगाल में जन्मे नलिनी कांत बागची मैट्रिक पास करके बहरामपुर कालेज में जाने के बाद क्रांतिकारियों से मिलकर 16 वर्ष की उम्र में अनुशासन व शस्त्र संचालन सीख गए। बाद में भागलपुर कॉलेज में प्रवेश लेकर क्रांति दल के गठन की इच्छा से बिहारी वेश और भाषा सीखे, बंगाली से बिहारी बन गए।
बहुत समय तक अंग्रेजी पुलिस से बचते रहें अंत में पुलिस की पहचान में आ गए। भागलपुर से आसाम आकर वहां की सारी जानकारी ली, और वहां भी क्रांति का बिगुल बजा दिया।
डिब्रूगढ़ से गुवाहाटी में अपने साथियों के साथ रहने लगे, और अंग्रेजो के खिलाफ अपनी गतिविधियां चलाते रहे।
3 जनवरी 1917 को रात को पुलिस ने आकर घेर लिया। दोनों तरफ से गोलियां चलीं। बागची के 3 साथी और कई पुलिसवाले मारे गए। किसी तरह बागची और 3 साथी बचकर निकल गए।
पुलिस पीछे थी कई दिनों तक जंगल में भूखे प्यासे भटकते हुए 1 दिन कहीं से भोजन का इंतजाम करके खाने बैठे तभी पुलिस फिर आ गई।
वहां से भी बागची निकल भागे। जंगल में रास्ते में किसी जगह जहरीले कीड़े ने काट लिया, और इनके शरीर में जहर फैल गया, और ये बेहोश होकर गिर गए। किसी पुराने दोस्त ने उन्हें देख लिया और बागबाजार के उनके एक कमरे में ले जाकर उनकी देखभाल की और कुछ समय में बागची स्वस्थ हो गए।
बागची ने अंग्रेजो के खिलाफ अपनी गतिविधियां फिर शुरू कर दीं। 15/6/1918 को पुलिस वालों ने फिर घेर लिया, और अंग्रेज पुलिस ने उन पर गोली चला दी। बालक समझकर पुलिस वाले उन्हें अपनी बग्घी में अस्पताल ले गए। वहां पर 16 /6/1918 को नलिनी कांत बागची ने 18 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस लीं। देश की स्वतंत्रता के लिए खुद बलिदान हो गए।----धन्य थे ऐसे साहसी वीर -----
नलिनी कांत बागची की फोटो ऊपर है-----धर्मे

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