विष्णु भट्ट शास्त्री का (माझा प्रवास)

6 1 0
                                    

आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में जानने योग्य परतंत्रता में जकड़े जनमानस की व्यथा का चित्रण----
        प्रथम स्वाधीनता संग्राम के प्रत्यक्षदर्शी पंडित विष्णु भट्ट शास्त्री ने जो देखा, उसे इतिहासकारों के नजरिए से अलग अपनी कृति (माझा प्रवास) में लिख दिया।
      (माझा प्रवास) एक यात्रा वृतांत है, जिसको लिपिबद्ध किया है, पंडित विष्णु भट्ट शास्त्री ने। उनके अनुसार धन के अभाव में लाचार परिवार के साथ उनका भी जीवन यापन हुआ था।
विष्णु भट्ट की कृति (माझा प्रवास) के अनुसार विष्णु भट्ट शास्त्री को पता चला, कि मथुरा में *सर्वोतोमुख* यज्ञ का आयोजन है। वे इस सुअवसर के लिए अपने चाचा राम भक्तों के साथ लंबी यात्रा पर चल दिए।
       उस समय साधन तो थे नहीं, पैदल ही चल दिए। महाराष्ट्र, ठाणे से चले पुणे, सतपुड़ा से महू पहुंचते ही (ग़दर) की खबर मिली और उन सभी जाने वालों को लौटने को कहा गया।
        विष्णु भट्ट के कथन अनुसार मंगल पांडे द्वारा किया गया 18 57 का 'ग़दर' , कारतूस को लेकर कम रोष था,मगर लोगों में धर्म पर इतनी श्रद्धा थी, कि वह धर्म की तलवार की अपेक्षा यज्ञ कुंड की घृत धारा पर अधिक विश्वास रखते थे।
       (गदर) की महान, कुशल नायिका लक्ष्मी बाई के पराक्रम के विष्णु शास्त्री साक्षी थे। (माझा प्रवास) में उस  वक्त के वृतांत, रक्त रंजित हालात व समृद्ध पुस्तकालय का भी वर्णन है।
          लुटेरों, आतताईयों द्वारा बार-बार लूटे जाने के बाद यात्रा के कटु अनुभव सहकर भी वे अडिग रहे। बार-बार काल के गाल से बचकर अपना लक्ष्य पूरा करके, चाचा राम भट्ट को बचाकर वापस परिवार से आ मिले थे।
          इन सारे बृत्तांतो के साथ विष्णु भट्ट शास्त्री ने (माझा प्रवास) के रूप में एक ऐसी जीवंत- सजीव कृति दी है, जो अगली पीढ़ियों का मार्ग प्रशस्त करने में सक्षम है।
    विष्णु भक्त शास्त्री की फोटो ऊपर है।-----धर्मे

अमृत महोत्सव वर्ष जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें