आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष श्रृंखला के तहत---
भारतीय प्रक्षेपण केंद्र इसरो के वैज्ञानिकों ने
किस तरह से 20 वर्षों की अथक मेहनत से 5 जनवरी 1914 में (जीएसएलवी d-5) पहला स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन तैयार करके दुनिया के चुनिंदा देशों में भारत का नाम जोड़ दिया था।
पहली बार इसका बूस्टर पंप जाम हुआ, दूसरी बार कुछ कनेक्टर फेल हुए थे तथा तीसरी बार राकेट में लीक की जानकारी मिली थी। अंततः 5 जनवरी 1914 को इस इंजन को पूर्ण रूप से बनाने में वैज्ञानिकों को सफलता मिली थी।
इसी इंजन से जीसैट -14 संचार उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित करके इसरो ने इतिहास रच दिया था। 5 जनवरी 1914 को 4:18 पर श्रीहरिकोटा सतीश धवन स्पेस सेंटर से (जीएसएलवी d-5) को लांच किया गया था, और ठीक 17 मिनट की उड़ान के बाद जीसैट -14 अपनी कक्षा में पहुंच गया था।
पूरे अभियान की कुल 356 करोड़ लागत वाले, 2000 किलोग्राम वजनी उपग्रहों को प्रक्षेपित करने वाले, इस (जीएसएलवी d-5) स्वदेशी इंजन की कामयाबी ने भारत को अमेरिका, रूस, जापान, चीन व फ्रांस! इन 5 देशों के बाद छठे स्थान पर भारत को खड़ा कर दिया था।
भारत ने रूस से इस तकनीक को मांगने का आग्रह किया था। पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका के दबाव में रूस ने भारत को यह तकनीक देने से मना कर दिया था।
वैज्ञानिकों ने अपने दम पर इस स्वदेशी तकनीक को विकसित करके भारत को संपन्न देश बना दिया था।
सभी वैज्ञानिकों को सतत बधाई------धर्मे
जी एस एल वी d-5 की फोटो ऊपर है।