अल्लूरी राजू का जन्म 4 जुलाई 9897 को विशाखापट्टनम जिले के पांडुरंगी में एक क्षेत्रीय परिवार में हुआ था। इनका बचपन का नाम राम राजू था। 6 वर्ष की उम्र में इनके पिता का देहांत हो गया था और परिवार पालन की समस्या आ गई थी।
1916 में भारत में सुरेंद्रनाथ बनर्जी के साथ रहकर कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुए। वाराणसी में संस्कृत, मार्शल आर्ट, आयुर्वेद सीखा। अपनी क्षमता के कारण वे आदिवासियों में लोकप्रिय हो गए।
अंग्रेजों द्वारा शोषित आदिवासियों के लिए इन्होंने फजुल्का खान से मिलकर मान्यम क्षेत्र में 22 अगस्त 1922 में इन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह शुरू किया। 2 साल तक भयानक विद्रोह अंग्रेजो के खिलाफ जारी रखा।
चिंतापल्ले और अद्दतीगाला पुलिस स्टेशन पर हमला करके अभिलेख फाड़े और हथियार लूटे। अंग्रेजी रजिस्टर में अपना नाम दर्ज कर दिया। छापामार युद्ध में दो अंग्रेज अफसरों को मार दिया।
अब राजू को पकड़ने के लिए सांडर्स को कमान सौंपी, जब बात नहीं बनी, तो अंग्रेजों ने लुभाने का जाल फैलाया। अंग्रेजों ने राजू के लेफ्टिनेंट मल्लू डोरा को पकड़ लिया। उसके बाद अंग्रेजों ने आदिवासियों पर रदरफोर्ड द्वारा अत्याचार कराने शुरू कर दिए, और राजू को 1 सप्ताह का आत्मसमर्पण का समय दिया।
आदिवासियों को बचाने के लिए 7 मई 1924 को राजू के बताए ठिकाने (कोइयूर से राजू को पकड़ लिया गया, और एक वरिष्ठ अधिकारी ने गोली मारकर आजादी के *अरण्य नायक* अल्लूरी की हत्या कर दी। अंग्रेज अत्याचारी तो थे ही विश्वासघाती भी थे। 27 साल की उम्र में अल्लूरी राजू देश पर बलिदान हो गए।-----अल्लूरी राजू की प्रतिमा ऊपर है --------धर्मे