स्वार्थ सिद्धि था भारत का विभाजन

9 1 0
                                    

15 अगस्त 2021 को लाल किले से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने (विभाजन विभीषिका दिवस) के रूप में 14 अगस्त को याद करने की घोषणा की थी। समर्थन व विरोध के चलते चर्चाएं चलीं, मगर मोदी जी कितने सही थे, इसका अंदाजा तब लगा जब लोग मिले, बतलाए और यह प्रसंग गहरे तक पैठ बनाता चला गया। विभाजन की विभीषिका (भूली बिसरी) मानस पटल पर दोबारा उभरी। इस त्रासदी से अनजान भावी पीढ़ी जो भारत का निर्माण करेगी उसे अवगत कराना आवश्यक है।
20 फरवरी 1947 की सभा में 30 जून 1948 में सत्ता हस्तांतरण की घोषणा हुई, एटली द्वारा। माउंटबेटन ने तेजी से स्वीकृति ली, और एक साल पहले ही 2 जून 1947 को बैठक बुलाई गई। धार्मिक आधार पर विभाजन करना तय हुआ।इसका विरोध हुआ, मगर जिनका स्वार्थ तथा हित विभाजन से जुड़ा था, उन्होंने विभाजन को स्वीकृति दे दी। 7 जून 1947 को रेडक्लिफ को दो सीमाएं एक पंजाब दूसरी बंगाल के लिए निर्धारित करने की इजाजत दे दी।
8 जुलाई 1947 से 12 अगस्त 1947 के बीच रेडक्लिफ ने सीमा का ऐसा विकल्प दिया, जिसका खामियाजे के रूप में इधर से उधर अदला-बदली में जाने गईं। घर वार उजड़े, अत्याचार, दुर्व्यवहार, बलात्कार, के रूप में आज भी भारत - पाक दोनों देश इस विभाजन का दंश भुगत रहे हैं।
यह ब्रिटिश सरकार का भयंकर षड्यंत्र था, ताकि वे 1947 में विश्व के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र का उदय रोक सकें।
तब का साहित्य भी भ्रमित करने वाला था, जो लिखा प्रचारित किया गया,और पढ़ाया गया। उसका पुनरावलोकन देश की युवा पीढ़ी के लिए आवश्यक है। देश के निर्माण कर्ताओं के मानस पटल पर यथार्थ लाना देश के उत्थान के लिए बहुत जरूरी है।
हमारे लेखकों, शोधकर्ताओं तथा बुद्धिजीवियों को इसके लिए अनवरत प्रयास करने होंगे।-----धर्मे
विभाजन के वक्त की एक फोटो ऊपर है।

अमृत महोत्सव वर्ष जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें