आजादी का अमृत महोत्सव वर्ष के तहत वर्षा ऋतु के चातुर्मास का महत्व-----
ग्रीष्म ऋतु में सूर्य देव के ताप तपती वसुंधरा को सर्व रूपेण श्रंगार मय बनाने को जब कजरारे बादल उमड़ - घुमड़ कर बरसते हैं, तब मानो अंबर रूपी पिया का (वर्षा की बूंदों) द्वारा स्पर्श करके वसुंधरा सज संवर जाती है।
इस वर्षा ऋतु के चार महीनों को (चातुर्मास) का नाम दिया गया है। इस (चातुर्मास) में भगवान विष्णु जी *नाग शय्या* पर (योग निद्रा) द्वारा शयन करके मानव को संदेश देते हैं,कि योग द्वारा इस (चातुर्मास) काल में कुंडलिनी जागृत करके नकारात्मकता रूपी सर्प को सकारात्मकता में बदलें।
यह कालखंड देवत्व के शयन में स्वप्न रचता है, ताकि देवों का उत्थान हो, यानी--- हर मानव देवत्व धारण करें, तो वे स्वप्न साकार किए जा सकें जो सर्वत्र मंगलकारी हैं
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के पुरुषार्थ साधते इस (चातुर्मास) का एक अध्याय हमारी ६ ऋतुओं वाले देश की स्वाधीनता से हमें जोड़ता है।
हमें इसी कालखंड में स्वाधीनता मिली थी। इस अवसर पर हमें विश्व को यह संदेश देना है, कि पुरुषार्थ की यात्रा में हमें विवेक के साथ पहले प्रकृति से जुड़ना है, फिर मनुष्यता को जोड़कर स्वाधीनता के शिखर पर चढ़ना है।
(चातुर्मास) का संदेश पूजन - अर्चन - वंदन के साथ अपनी जीवनदायिनी प्रकृति के संरक्षण, सम्मान का दायित्व निभाए।-----धर्मे
श्री विष्णु भगवान और योग साधन की फोटो ऊपर हैं।