आजादी के अमृत महोत्सव के तहत 24 नवंबर 2021 से 24 नवंबर 2022 तक लचित बोरफुकन की जयंती का समारोह मनाया गया।
ये अहोम साम्राज्य के एक सेनापति और बर फुकन थे। इनका जन्म 24 नवंबर 1622 को असम के (चराई देव) में माता मोमाई तथा पिता बोर बरुआ के यहां हुआ था।
सन 1671 में सरई घाट की लड़ाई में इन्होंने अपनी क्षमता और नेतृत्व से असम पर दोबारा अधिकार प्राप्त करने के लिए राम सिंह प्रथम के नेतृत्व वाली मुगल सेनाओं का प्रयास विफल कर दिया था।
अहोम वंश के राजाओं ने 600 साल तक निर्विघ्नम असम पर राज किया था,ये कभी पराजित नहीं हुए थे। (फुकन लूंग) लाचित बोर फुर्कन की पदवी थी।
लचित बोड़ फुरकन ने कई लड़ाइयां लड़ीं, सदा जीते कभी हारे नहीं थे। असम में 24 नवंबर को लाचित दिवस मनाया जाता है। 25 अप्रैल 1672 को जोरहाट में बीमारी के चलते इनकी मृत्यु हो गई थी।
24 से 25 नवंबर 2022 को उनकी जयंती का समारोह विज्ञान भवन में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में मनाया गया।
इस प्रकार आजादी के भूले बिसरे क्रांतिकारियों को याद करने का क्रम शुरू कर दिया गया है।
7 दिसंबर 2023 की खबर के अनुसार 2023 -24 की (यूनेस्को विश्व विरासत) की सूची में असम स्थित (अहोम राजवंश) के पिरामिड के रूप में बने हुए पुरातन दफन टीले(मृतक को दफनाने के स्थान) यूनेस्को टैग के लिए नामांकित कर लिए गए हैं।
जोरहाट में इनकी प्रतिमा है। लाचित बोड़ फुरकन की प्रतिमा की फोटो ऊपर है।-----