आजादी के इस *अमृत महोत्सव वर्ष* के 75 साल में यह घटना भारत के लिए अविस्मरणीय है।
सागर किनारे सत्याग्रह का वह आंदोलन खासकर स्वावलंबन के अभियान का शंखनाद था। वह नमक जिसे बनाना अंग्रेजों की नजर में अवज्ञा था, और भारतीयों का आत्मसम्मान।
गांधी जी ने दांडी अभियान को (बारदोली सत्याग्रह) और (ट्रांसवाल के अभियान) तथा अन्य आंदोलनों से दमनकारी कानून के विरोध के सत्याग्रह से प्रेरणा ली थी।
आंदोलन इतना भी आसान नहीं था! इसलिए कि---सुदूर बिहार के श्री कृष्ण सिंह स्वतंत्रता सेनानी के नेतृत्व में प्रतीकात्मक पानी गर्म करके जब नमक बनाया जा रहा था, तब अंग्रेजों द्वारा कढ़ाई पलटने पर श्री कृष्ण सिंह ने कढ़ाई पकड़ ली थी, और वह जख्मी हो गए थे।
1882 के नमक अधिनियम के तहत अंग्रेजों ने नामक पर एकाधिकार कर लिया था। इसके खिलाफ जन- मानस में प्रतिरोध था।
13 वर्ष के उतार-चढ़ाव के बाद सत्याग्रह अभियान के तहत हर पहल पर नजर , अनुशासन का मंत्र और अहिंसा का अस्त्र के साथ गांधीजी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से 78 साथियों व सरोजिनी नायडू के साथ चल पड़े थे दांडी के लिए।
6 अप्रैल 1930 को 24 दिन की यात्रा के बाद समुद्र के किनारे एक मुट्ठी नमक उठाकर अंग्रेजों का एकाधिकार तोड़ दिया था। भारत के पूर्ण स्वराज की पटकथा उसी दिन लिख गई थी।
भारतीयों को नमक बनाने बेचने का हक मिल गया था। दांडी में नमक सत्याग्रह को समर्पित एक राष्ट्रीय स्मारक बन चुका है।
दांडी मार्च, कानून तोड़ो आंदोलन, की फोटो ऊपर है।----धर्मे