आज जब पूरा देश स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है------
उस दौर से जुड़ी अनकही, कम जानी - सुनी, देश के गौरव सम्मान को बढ़ाने वाली कहानियां सामने आ रही हैं। ऐतिहासिक धरोहरों, स्थानों से जुड़े किस्से भी हैं।
विभाजन की विभीषिका से जुड़े दो स्टेशन गाजियाबाद तथा लोधी कॉलोनी भी ट्रेनों के आने-जाने के गवाह हैं। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप तलवार पंजाब के सरगोधा मंडल के खुशाल जिले के मूल निवासी के अनुसार वे जब 13 वर्ष के थे, तब भारत आने वाली ट्रेन में बड़ी मुश्किल से अपने माता - पिता के साथ सवार हुए थे।
खून से लथपथ, ट्रेन पर हमले के कारण वे बाल-बाल बचे, और ट्रेन से गाजियाबाद में जिस जगह उतरे, वहां अब परिचालन बंद है। विभाजन के समय यहां कोयला गोदाम था, इसलिए विभाजन की ट्रेन यहां से चलती थी, तथा वापसी में रूकती भी थी।
मुस्लिम पाकिस्तान जाते थे, हिंदू भारत लौटते थे। स्थानीय लोगों के प्यार और सत्कार के कारण आने वाले लोग बजरिया में बस गए थे।
1947 के विभाजन के दंगों से देश जल रहा था, उस समय की 30 सीटों वाली ट्रेन में 150 लोग होते थे,जो बड़ी मुश्किल से ट्रेन का सफर पूरा करते थे।
आज भी यहां के पत्थरों, दीवारों, अवशेषों में उस दौर की मौन विभीषिका अंकित है। आज भी उनकी महत्ता कहती है,कि यहां से गुजरने वाले वहां रुकें, देखें इनमें भी स्वाधीनता का इतिहास छुपा हुआ है।
पूर्व रेलवे प्रबंधक डीके चोपड़ा, कुलदीप तलवार और गाजियाबाद रेलवे स्टेशन की फोटो ऊपर है।-------धर्मे