सादगी की प्रतिमूर्ति स्वतंत्रता सेनानी डॉ०राजेंद्र प्रसाद

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आजादी के *अमृत महोत्सव वर्ष पर देश के महान जननायक की याद में ----
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 18 84 को बिहार, सिवान, जीरादेई में हुआ था। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अग्रणी स्वाधीनता सेनानी सादगी एवं विनम्रता की प्रतिमूर्ति डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति 26 जनवरी 1950 को चुना गया।
वे स्वाधीनता की लौ में तप कर कुंदन बन कर निकले थे। 26 जनवरी 1950 को उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था--- *आज यह क्या का क्या हुआ* भारत सर्वशक्ति संपन्न, प्रजातांत्रिक, गणराज्य हो गया! और मैं उसका पहला राष्ट्र फिर राष्ट्रपति-----
12 वर्ष 3 महीने 17 दिन राष्ट्रपति रहे। वही सादगी भरा (राम के बिना भरत) जैसा जीवन बिताया। 300 कमरों के राष्ट्रपति भवन के 5 - 6 कमरे ही अपने कार्य के लिए रखे।
किसी के पूछने पर कहा ---मैं कैसे भूल सकता हूं मेरा सत्य स्वरूप तो धरती मां का बेटा हूं।
वे सभी धर्मों और पशुओं के प्रति सम्मान रखते थे। सनातन धर्म में उनकी पूरी श्रद्धा थी।राष्ट्र पति भवन में भी *पूजा मंडप* बनवाया था। संध्या वंदन व पूजा रोज किया करते थे।
राष्ट्रपति भवन में उन्होंने सभी महापुरुषों के चित्र लगवाए थे। वह पटना के सदाकत आश्रम को हमेशा याद करते थे।
दो कार्यकाल पूरे करके 13 मई 1962 को वे राष्ट्रपति पद से निवृत हो गए थे। तब कहा था--- कि इस पद से निवृत होने पर मुझे लग रहा है जैसे पाठशाला से छुट्टी मिलने पर बालक खुश होता है।
वे सदाकत आश्रम में ही सार्वजनिक पाठशाला से निकल कर रहे थे। राष्ट्रपति पद से निवृत होने के बाद वे अधिक दिन तक जीवित नहीं रह सके थे।
28 फरवरी 1963 को मानव के लिए एक आदर्श छोड़कर प्रभु में विलीन हो गए थे।
उनको शत् शत् नमन----- फोटो ऊपर है-----धर्मे

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