धर्म और ज्ञान योग बातें

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ईश्वर ने कहा हे मनुष्य जब तेरा अहंकार हद से ज्यादा बढ़ जाएगा तो मैं तेरे विनाश का आधार बन जाऊंगा। सारी जिम्मेदारी और सारे संसाधन आपके होंगे। सारी लड़ाई और सारी बर्बादी तुम्हारी होगी, लड़ने वाले शरीर भी तुम्हारे होंगे और मृत्यु भी तुम्हारी होगी। मैं केवल निशस्त्र रहकर निर्णायक की भूमिका निभाऊंगा. कहीं सम्मान के नाम पर, कहीं भगवान के नाम पर, कहीं मजबूरी के नाम पर, कहीं मज़दूरी के नाम पर, कहीं धर्म के नाम पर, कहीं विचार-विमर्श के नाम पर, कहीं जाति के नाम पर और कहीं लैंगिक भेदभाव के आधार पर. और कहीं आप मतभेदों के कारण लड़ेंगे, कहीं आप बेबेकारी, कंगाली, अकाली और महामारी के कारण लड़ेंगे। कहीं आप आतंकवाद के नाम पर लड़ेंगे तो कहीं आप भ्रष्टाचार के नाम पर लड़ेंगे। कहीं आप समय सीमा को लेकर लड़ेंगे तो कहीं आप देश की सीमा की सुरक्षा को लेकर लड़ेंगे। कहीं पंथ तो, कहीं ग्रंथ के नाम पर, कहीं प्रकृति के नाम पर, कहीं परिवर्तन के नाम पर, कहीं आतिशबाजी के नाम पर और कहीं विस्तारवादी नीति के नाम पर लड़ मरोगे। आप सभी ने अपने-अपने मौत के साजो-सामान को इकट्ठा कर लिए हो और अपनी-अपनी बारी के लिए तैयार हैं। तुम सब इसलिए लड़ रहे हो क्योंकि तुम्हारे अंदर संतुष्टि नाम की कोई चीज़ नहीं है, इसलिए तुम सब लड़ो, मैं तुम्हारी मौत का संवाहक बनूंगा। आप चुनें कि आप कैसे मरना चाहते हैं। वैसे भी आप लोगों ने अपनी मौत का आधार खुद ही चुना है. इससे मेरा काम और भी आसान हो गया है क्योंकि मैं आप लोगों को अब इस दुनिया में नहीं देखना चाहता क्योंकि आपने मुझे बहुत दुख पहुंचाया है। मैं तुम्हें दर्द में भी देखना चाहता हूं क्योंकि तुमने मुझे धन्यवाद देना बंद कर दिया है। दरअसल, मैं तुम्हें इसलिए भी मरते और तरपते हुए देखना चाहता हूं. क्योंकि तुम्हें अपनों के साथ भी गुजारा नहीं है तो दूसरों का ख्याल कैसे रख पाओगे? आप लोग एक दूसरे को मारने पर उतारू हैं. तुम लोग जिस वृक्ष की छाया में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हो, उसकी जड़ें खोदने में लगे हो। तुम तो पहले से ही मेरी इस सुन्दर रचना को नष्ट करने को उत्सुक हो। इसलिए, ब्रह्मांड के कल्याण के लिए, आपलोगों का मर जाना उचित है, ताकि आप दुनिया को पुन: सुनियोजित करने में बाधा न डाल सकें।

ये आत्मपरिकल्पना जीवन और सृष्टि के बिषयों में नहीं अपितु सम्पूर्ण लोकों से परे, 'पारलौंक्कि' उस अंधकार और प्रकाश के बिस्तरों के बारे में हैं जो सर्वत्र व्याप्त है जिसके दिग्दर्शन मात्र से ही पापायी जीवन धन्य हो जाता हैं ।

कोई भी धर्म अच्छा या बुरा नहीं होता, अच्छे और बुरे सिर्फ वे लोग होते हैं जो एक धर्म को एक दूसरे धर्म से कंपेयर करते हैं।

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