>किसी के सहारे चलने से अच्छा है कि हम अकेले ही चले

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इंसानों से परमात्माओं वाली उम्मीद मत लगाओ उनसे उतना ही उम्मीद रखो जितना वह दे और आप संतुष्ट हो जाए जरूरत से ज्यादा उम्मीद रखोगे और यदि वह न कर दिया तो बाद में आपको बहुत तकलीफ होगी इसलिए किसी से भी उम्मीद ना के बराबर ही रखें

इंसानों से परमात्माओं जैसी चीज़ों की उम्मीद न करें। उनसे सिर्फ़ उतनी ही उम्मीद करो जितनी वो दे और आपको संतुष्टि हो जाए। यदि आप ज़रूरत से ज़्यादा उम्मीद करते हैं और वो ऐसा नहीं करते तो बाद में आपको बहुत तकलीफ़ होगी। इसलिए किसी से भी कोई उम्मीद लगभग न के बराबर रखें।

यदि आप रास्ते में भौंकने वाले लोगों से ऐसे ही उलझते रहे तो आप निश्चित ही अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच सकते।

अपने लोग वही कहलाते हैं जो कड़वाहट के बावजूद भी एक दूसरे का साथ देते हैं और एक दूसरे के साथ रहते हैं और जो थोड़ी सी खटपट होते ही साथ छोड़ दे वे लोग कभी अपना होते ही नहीं हैं ।

जो लोग एक दूसरे का साथ देते हैं और कटुता के बावजूद एक दूसरे के साथ रहते हैं केवल वही लोग अपने कहलाते हैं और जो लोग एक मामूली सी बातों को लेकर एक दूसरे के विरोधी हो जाते हैं और एक दूसरे का साथ छोड़ देते हैं वे कभी हमारे अपने होते ही नहीं हैं।

हालात चाहे जैसी भी हो ईश्वर का हमेशा धन्यवाद करें क्योंकि शिकायत से अच्छा शुक्रगुजार ही रहना अच्छा लगता है आपको अपने गंतव्य को प्राप्त करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि दुनिया चाहती है कि आप हार जाओ उम्मीद ना के बराबर हो तो भी कोशिश करते रहे क्योंकि मायूसी मौत से भी बत्तर होती है हाथ उठाकर आप भले ही दो लोगों को ना मार पाओ परंतु वही दो हाथ जोड़कर करोड़ों लोगों को एक साथ बस में कर सकते हो। जिद पर अड़ जाओगे तो जीती हुई बाजी भी हार जाओगे और खुद पर संयम रखो तो हरि हुई बाजी भी जीत जाओगे सर उठा लो तो किसी को भी खो सकते हो और सर झुका दो तो भगवान को भी पा सकते हो

जब मजबूत से मजबूत लोहा भी टूट जाता है फिर आप क्या चीज हो कई झूठे लोग एक साथ इकट्ठा हो जाए इंसान बस में नहीं बेबसी में पड़ जाता है

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