दुख में भगवान साथ क्यों नहीं देता

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अजीब लगता है यह देखकर

है कि भगवान से भी लोग रूठते बैठे हैं

जैसे भगवान सारी दुनिया में चुपके सिर्फ

उन्हें ही दुख देता है जैसे कि शायद भगवान

को नहीं सताने में मजा आता हूं पर ऐसा

क्यों होता है जब भी कुछ अच्छा होता है तो

हम कहते हैं कि यह सब मैंने अपनी मेहनत से

किया है मैंने अपने हो न और अपनी समझदारी

से किया है मनुष्य का स्वभाव है कि वह

किसी भी अच्छे काम का क्रेडिट वह किसी और

को नहीं दे पाता पर हर गलत काम का

जिम्मेदार वह दूसरों को ठहराता है और जब

कोई और नहीं मिलता तो फिर भगवान के ऊपर ही

डाल देता है परमात्मा को उनकी कृपा को हम

समझे ही नहीं परमात्मा तो समस्त प्रकार

रूप है हमारा होना ही परमात्मा की शक्ति

से है मेरा बोलना परमात्मा की शक्ति से या

कि आपका सुनना परमात्मा की शक्ति से या

परमात्मा एक दिव्य ऊर्जा के रूप में है

लोग परमात्मा से प्रार्थना करते हैं और

पूरी नहीं होती तो शिकायतें करते हैं

कि कई लोग कहते हैं मैंने बहुत प्रयत्न है

कि पर भगवान नहीं सुनता हमारी सबसे बड़ी

गलती यह है कि हमने हमारी इच्छाओं को

प्रार्थना मान लिया है हमने हमारी मांगों

को प्रार्थना का शब्द दे दिया है

कि परमात्मा के आगे मांगना प्रार्थना का

एक अंग जरूर है और वह प्रार्थना नहीं है

प्रार्थना से कुछ प्राप्त नहीं होता

प्रार्थना में प्राप्त होता है

कि वास्तव में प्रेयर का अर्थ क्या है


प्रार्थना का अर्थ क्या है

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