कविताए

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में तन्हा  कर तन्हा रहने न दिया,
दर्द से आज़ाद रहूं ऐसा कोई लम्हा तुमने रहने न दिया।

सदाएं चीख कर थक सी गईं कातिल,
तुमने मेरी  ज़िन्दगी को ज़िन्दगी न रहने दिया।

क्या मालूम तुम्हें सब्र के काँटों की चुभन,
तुमने फूल को भी मुस्कुराने का मौका न दिया।

क्या बिगाड़ा था तेरा मैंने,
कि तने मेरे कश्ती को किनारे रहने न दिया।

अकेले ही कट रही थी अच्छी-खासी जिन्दगी हमारी,
पता नहीं क्यों अपने दिल को तुम्हारे हवाले कर दिया।

इक रात मेरे ज़हन में ईक तूफान सा उठा,
और मुझे इन लहरों का अंदाज़ा ही न रहा।

तेरी राहें तक्कर थक सी गई थी मेरी ये
खूबसूरत आँखों तेरे दीदार को,
पर तूमने मेरे इन सपनों के आशियाना
को रहने ही न दिया।

जिस तरह आज तूने मेरी घर जलाई,
कल को कोई तेरा भी मजाक बनायेगा।

तुमने मुझे तन्हा न रहने दिया,
तुमने एक पल भी दर्द से आज़ाद न रहने दिया।

सदाएना चीख चीख कर थक गई,
कातिल, तूने मेरी जान को भी जिंदगी नहीं रहने दिया.

सब्र के कांटों की चुभन क्या तुम्हें मालूम है?
तुमने फूल को मुस्कुराने का मौका ही नहीं दिया।

मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था,
कि तने ने मेरी नाव को भी किनारे पर टिकने न दिया।
हम जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा अकेले गुजार रहे थे,
न जाने क्यों हमने अपना दिल तुम्हारे हवाले कर दिया।
एक रात मेरे मन में तूफ़ान उठा और मुझे इन लहरों का अंदाज़ा भी नहीं था.
थक गई थी मेरी ये खूबसूरत आंखें तेरी राहों को पार करते-करते, पर तूने मुझे मेरे ख्वाबों के आशियाने में रहने ही नहीं दिया।
जिस तरह आज तूने मेरा घर जलाई, कल को कोई तेरा भी मजाक बना देगा।

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