जब तुम थे तब दिल न था अब जब तुम नही तो दिल के होने का भी क्या फ़ायदा,
अब तो बस काट रहे हैं हम ये गम - ए - गुलज़ार भरी शामों को क्योंकि अब इन सांसों के होने न होने का भी क्या फ़ायदा,
अब तो बस इन कलमनाशी हाथो में जामनाशी प्याले हैं तो इस सावन में बंजर जिंदगानी को जीने का भी क्या फ़ायदा,
अब तो बस तुम्हारी यादों के और मेरी गलतियों के जेहन में घूमते हुए से फसाने है तुम्हे दिए उन जख्मों पर अब आसू बहाने का भी क्या फ़ायदा,
अब तो बस बैठे हैं उस सुकूनभरे आशियाने के तले जिसे तुमने कभी संजोया था इस बंजर हुए आशियाने तले तुम्हारी मुस्कुराहटों को ढूंढने का भी अब क्या फ़ायदा ,
जब तुम थे तब दिल न था अब जब तुम नही तो दिल के होने का भी क्या फ़ायदा,
तो दिल के होने ना होने का भी क्या फ़ायदा,
क्या फ़ायदा?
आप पढ़ रहे हैं
सिला-ए-दिलगि
कवितालोग दिल से दिल लगा लेते है , सिला-ए-दिलागी में कई ज़ख्म दिल में पा लेते है, उसी दिलागी के कुछ पैगाम सुनो, मैने जो देखा उसका आंखों देखा सियाहीदा अंजाम सुनो, ये इश्कनाशी दिलगि का बेवफाई भरा अंजाम सुनो। so, namaste and hello I know I should translate t...