कहते हो तुम की इश्क़ नही तो यूं चुपके-चुपके आंखों ही आंखों में इज़हार क्यों,
कहते हो तुम इश्क़ नही तो यूं रोज़-रोज़ दीदार की चाह क्यों,
कहते हो तुम इश्क़ नही तो यूं बड़ी-बड़ी सी दिल की रफ्तार है क्यों,
कहते हो तुम इश्क नही तो यूं मन-मन में उसकी चाह है क्यों,
कहते हो इश्क नही तो यूं पल-पल तड़पाती उसकी आस क्यों,
जानते हो है इश्क तुम्हें फिर क्यों इश्क़ नहीं की रट–रटते हो ,
जानते हो जो ये इश्क नहीं तो इस मर्ज़ का नाम अर्ज़ क्यों नहीं करते हो,
जानते हो जो तुम भी फिर क्यों दिल की बात को सुनके–अनसुना करते हो ,
जानते हो जो सच तुम भी फिर भी क्यों इस इस्क्क से डरते हो ?
_________________________________________Toh mai hi jise kuch Kam lag raha hai agar koe aur asa hai toh comment

आप पढ़ रहे हैं
सिला-ए-दिलगि
Poetryलोग दिल से दिल लगा लेते है , सिला-ए-दिलागी में कई ज़ख्म दिल में पा लेते है, उसी दिलागी के कुछ पैगाम सुनो, मैने जो देखा उसका आंखों देखा सियाहीदा अंजाम सुनो, ये इश्कनाशी दिलगि का बेवफाई भरा अंजाम सुनो। so, namaste and hello I know I should translate t...