कहते हो

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कहते हो तुम की इश्क़ नही तो यूं चुपके-चुपके आंखों ही आंखों में इज़हार क्यों,

कहते हो तुम इश्क़ नही तो यूं रोज़-रोज़ दीदार की चाह क्यों,

कहते हो तुम इश्क़ नही तो यूं बड़ी-बड़ी सी दिल की रफ्तार है क्यों,

कहते हो तुम इश्क नही तो यूं मन-मन में उसकी चाह है क्यों,

कहते हो इश्क नही तो यूं पल-पल तड़पाती उसकी आस क्यों,

जानते हो है इश्क तुम्हें फिर क्यों इश्क़ नहीं की रट–रटते हो ,

जानते हो जो ये इश्क नहीं तो इस मर्ज़ का नाम अर्ज़ क्यों नहीं करते हो,

जानते हो जो तुम भी फिर क्यों दिल की बात को सुनके–अनसुना करते हो ,

जानते हो जो सच तुम भी फिर भी क्यों इस इस्क्क से डरते हो ?
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Toh mai hi jise kuch Kam lag raha hai agar koe aur asa hai toh comment

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