हर समय हर पल हर वस्तु को हां कहती रही मैं क्युकी ना कहना सिखाया ही ना किसीने,
हर मोड़-हर पग पर स्वैच्छा मार हर किसी के निर्णय को देविच्छा मान स्वीकारती रही मैं क्योंकि स्वछंद जीना सिखाया ही ना किसीने ,
हर समय हर ओर जाने को आज्ञा मिलने की प्रतीक्षा करती रही मैं क्युकी स्वेच्छा का मोल सिखाया ही ना किसीने,
आज जब दृष्टि घुमाती हूं तो भय लगता है की अब मेरी अस्वीकृति किसी का कोप ना बन जाए क्युकी कोप से लड़ना सिखाया ही ना किसीने,
मुझे जीना सिखाया ही ना किसीने ।
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सिला-ए-दिलगि
Poetryलोग दिल से दिल लगा लेते है , सिला-ए-दिलागी में कई ज़ख्म दिल में पा लेते है, उसी दिलागी के कुछ पैगाम सुनो, मैने जो देखा उसका आंखों देखा सियाहीदा अंजाम सुनो, ये इश्कनाशी दिलगि का बेवफाई भरा अंजाम सुनो। so, namaste and hello I know I should translate t...