मुझे ज्ञात न था

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मुझ भोली को मेरे पी मेरे हृदयवर की चाहत का की कमना का बोध ना था ,

मुझ नासमझ की समझ में मेरे प्रिय के रूठने-मनाने यू मंद-मंद मुस्काने का भान ना था,

मुझ मुरखा की मती में मेरे हृदयनाथ के इस नारी से प्रेमरथ होने का अनुमान ना था,

मुझ अबोध की बुद्धि में मेरे प्रियंवद के प्रिय वचनों के अर्थ का बोध ना था,

मुझ अज्ञानी की चेतना में मेरे सौम्य स्पर्शी के स्पर्श का ज्ञान न था,

मुझ भाग्यवती को मेरे भाग्य का ज्ञान न था,
हए! मुझे मेरे प्रिय के भावों का बोध ना,

मुझे ज्ञात न था।

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