मोहताज़

65 10 55
                                    

मेरी मोसिकी तेरे हर पल रुसवा होते प्यार के दो झूठे से अल्फाजों की मोहताज़ तो नही,

मेरी आशिकी तेरे मुझे उसी शिद्दत से उसी जुनूनियत से चाहने की मोहताज़ तो नही,

मेरी चाहत को तेरी झूठी हसी तेरी जबरदस्ती की मौजूदगी के होने ना होने की मोहताज़ तो नही,

मेरी दिलकशी तेरे दुनिया से झूठे चेहरे के रूप के होने ना होने की मोहताज़ तो नही,

मेरी तेरे इंतजार में बिताई हर घड़ी हर रैना तेरे आने ना आने की आस की मोहताज़ तो नही,

मेरी जूनोनियत तेरी मोहब्बत के मिलने ना मिलने की झूठी आस की मोहताज़ तो नही,

हां,तुझसे मोहोब्बत है पर उसके मुकमल होने की चाहत हो ऐसी भी कोई बात तो नही,

मेरी आशिकी आज भी तेरी मोहताज़ तो नही,
मैं आज भी तेरी मोहताज़ हूं नही।

_________________________________________
Sammie1598 Sammie bhai ye rahi aapki request

सिला-ए-दिलगि जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें