बर्बाद

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ये इश्क़ के इंतज़ार का नशा है ये धीरे-धीरे से रूह में चढ़ता है,

इसकी तड़प को जो साकी नयनों से दिल में उतार ले फिर नशा उतारे नही उतरता है,

इश्क़ के इंतजार में खो उसके अल्फाज़ शायराना और चाल मस्तानी हो जाती है,

इसकी तड़प मीठा ज़हर बन उस आशिक की जान ले लेता है,

ये जाम-ए-आशिकी ही है जो अशिकिनो की जान ले लेता है,

इश्क़ नाम की शमा की तपिश का असर अक्सर दिल से होकर सर चढ़ बोलता है,

ये कमबख्त रोज़ अपने वाफनावाज की ही जान ले लेता है,

ये उन्हीं से बेवफाई कर लेता है,
ये उन्हीं को बर्बाद कर देता है।

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