मेरी प्रियसी

24 8 4
                                    

काश! मेरी प्रियसी को भान होता अपने मेघवर्ण के रूप का,

काश! मेरी प्रियतमा को मोल होता अपने सियाहिनुमा सुरमेदार नायनो का,

काश! मेरी हृदयप्रिया को इल्म होता अपने रैना घने घटाओ का,

काश! मेरी प्रियेवर को बोध होता अपने जीवन सिलते हाथो के महत्व का,

काश!मेरी हृदयस्वामिनी को मान होता अपने किताबों में छुपे प्रेमपुष्प से होटों का,

काश! मेरी हृदयवासिनी को पता होता अपने दास के नयनों में बसी उनकी छवि का,

काश! हए! काश!

सिला-ए-दिलगि जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें