काश!

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काश! ज़िंदगी-ज़िंदगी ना होकर मेरे प्रिय का एक हसीन नगमा होती,

काश! ज़िंदगी-जिंदगी ना होकर मेरे यार के होटों की शनये-शनये खिलती मुस्कान होती,

काश! ज़िंदगी-जिंदगी ना होकर मेरे प्रियेवर के कलम से उतरा प्रेम का सियाहिदा पैगाम होती,

काश! ये ज़िंदगी-ज़िंदगी ना होकर मेरे प्रियतम की एक प्रेमलिप्त स्वपन जनित कपोलकल्पना होती,

काश! ये ज़िंदगी-ज़िंदगी ना होकर मेरे आशिक़ की रूह का वो इश्क़ रोगी भाग होती,

काश! ये ज़िंदगी-ज़िंदगी ना होकर मेरे प्रितम के क्षण भर का उलास होती,

काश! ये ज़िंदगी मेरी ना होकर उसके आधो पर खिलती मुस्कान , उसके सुकुन का राज़ होती,

काश! बस काश! ये सब बात सच की सौगात होती,
काश।

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