ये कैसी मानवता है

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अपनी संगिनी के पतित होने पर व्यंग करना कहां का भगिनी धर्म है,

अपनी बाल काल की सहचरी को दासियों से भी नीच मानना ये कैसा अपयशकारी संबंध है,

अपनी रक्त बंधित सहगर्भिणी की प्रसन्नता से जलना ये कहां का अर्यत्व है,

अपनी बान्धवी सुलक्षणा का ही जो अहित चाहे ये कहां की जेष्ठा है,

जो अपने अपनो की ही ना हो पाए ये कहां की मानवता है ,

ये कैसी लीला है,
प्रभु!ये कैसी कुटुंब है,

ये कैसा जगत का सत्य है ,
ये मनुसूता का कैसा रूप है,

ये कैसी मानवता है,
ये कैसी मानवता है।

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