जिस कश्ती की लकीरों में डूबना लिखा था वो डूब गई तो क्या गम था,
जिस परिंदे की किस्मत में उड़ना था उसका घोंसला पीछे छूट गया तो क्या अफसोस था,
जिस के हाथों में उजड़ना लिखा था वो उजड़ भी गए तो क्या गिला था,
जिस की होनी में आसू थे वो आसुओं को मिल गए तो नमी का आंखो में क्या काम था,
जिस की नियति में अंगारे थे वो उन पर चल गए तो अब तपन से क्या डरना था,
जिस की बलाए लेती थी अब वो नसीब में ना रहें तो जी के भी अब क्या करना था,
पर मरके भी क्या पाना था,
अब और क्या ही गम था।
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सिला-ए-दिलगि
Poetryलोग दिल से दिल लगा लेते है , सिला-ए-दिलागी में कई ज़ख्म दिल में पा लेते है, उसी दिलागी के कुछ पैगाम सुनो, मैने जो देखा उसका आंखों देखा सियाहीदा अंजाम सुनो, ये इश्कनाशी दिलगि का बेवफाई भरा अंजाम सुनो। so, namaste and hello I know I should translate t...