एक दिन पिया पूछे मुझे की क्यों तुम मुझ पर निघा-ए-शक की बिखेरती हो क्यों तुम मुझ पर विश्वास करने से डरती हो आखिर क्यों कतराती हो करने से ऐतबार,
सुनके थोड़ा मैं भी चुप-चुप सी हो गई दिल-ओ-ज़ेहन में मेरे कशामोकश सी हो गई फिर भरी एक आह मैंने बयान किया दिल का हाल की क्यूं कतराती हूं करने से ऐतबार,
उस दिन कहा मैंने की जब हर ओर अपने ही कहे की ना करो इतना यकीन हमसफर में अपने तो बताओ कैसे आएगा मुझे यकीन मुझे विश्वास मुझे ऐतबार,
उस दिन कहा मैंने की जब सुनते है हम बचपन से देखते है हम जवानी में किस्से अधूरे इश्क़ के फिर आयेगा कसे इश्क़ पर विश्वास आशिकी पर खुमार और आशिक पर ऐतबार,
उस दिन मैंने हिम्मत बांध पूछा की आख़िर क्या है विश्वास अगर ना टूटे तो इसमें विश्व का वास है और टूटे तो विष का ऐसे हर पल बदलते अल्फाज़ पर कसे आए मुझे ऐतबार,
उस दिन कई पल बीतने पर भी जब कुछ जवाब ना आया तब एक खयाल आया की मैं कैसे गमज़दा को सदा-ए-गम सुना रही हूं फिर वो पूछते है की तुम्हे क्यूं नही है ऐतबार,
की तुम्हे क्यों नही है विश्वास,
की तुम्हे क्यों नही है ऐतबार ।
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सिला-ए-दिलगि
Poetryलोग दिल से दिल लगा लेते है , सिला-ए-दिलागी में कई ज़ख्म दिल में पा लेते है, उसी दिलागी के कुछ पैगाम सुनो, मैने जो देखा उसका आंखों देखा सियाहीदा अंजाम सुनो, ये इश्कनाशी दिलगि का बेवफाई भरा अंजाम सुनो। so, namaste and hello I know I should translate t...