मासूमियत

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उस इश्क़-ए-शैतानियत के नशे में हम तो मासूमियत-ए-कामिल को भुला बैठे,

उस दिलकश की नजरों में हम हर हया हर शर्म भुला बैठे,

उस जियाफरोश के प्यार में हम अपना दीन-धर्म ईमान सब गवा बैठे,

उस दिलबरजनी के रंग में हम ऐसे रंगे की जान-मान लोग-बाग सब भुला बैठे,

अब तो आलम-ए-हाल कुछ ऐसा है की हम मोहोबत की इस अमृतपिपासा में चूर हो बैठे,

अब तो आलम -ए -हाल कुछ ऐसा है की हम इंद्रसम रसचुर हो अपनी रासीका के रसमद हो बैठे,

अब तो हम अपनी मासूमियत भुला तुम्हारे प्रीतमद हो बैठे ,

तुम्हारे इश्क़ रंग हो बैठे।

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