उस इश्क़-ए-शैतानियत के नशे में हम तो मासूमियत-ए-कामिल को भुला बैठे,
उस दिलकश की नजरों में हम हर हया हर शर्म भुला बैठे,
उस जियाफरोश के प्यार में हम अपना दीन-धर्म ईमान सब गवा बैठे,
उस दिलबरजनी के रंग में हम ऐसे रंगे की जान-मान लोग-बाग सब भुला बैठे,
अब तो आलम-ए-हाल कुछ ऐसा है की हम मोहोबत की इस अमृतपिपासा में चूर हो बैठे,
अब तो आलम -ए -हाल कुछ ऐसा है की हम इंद्रसम रसचुर हो अपनी रासीका के रसमद हो बैठे,
अब तो हम अपनी मासूमियत भुला तुम्हारे प्रीतमद हो बैठे ,
तुम्हारे इश्क़ रंग हो बैठे।
आप पढ़ रहे हैं
सिला-ए-दिलगि
Poetryलोग दिल से दिल लगा लेते है , सिला-ए-दिलागी में कई ज़ख्म दिल में पा लेते है, उसी दिलागी के कुछ पैगाम सुनो, मैने जो देखा उसका आंखों देखा सियाहीदा अंजाम सुनो, ये इश्कनाशी दिलगि का बेवफाई भरा अंजाम सुनो। so, namaste and hello I know I should translate t...