क्यों

55 8 15
                                    

खुदा क्यों तूने इन कलमनाशी हाथों में ही गम भरे अफसाने लिख दिए,

क्यों तूने जन्नत की आवाज़ में जेहनुम के तराने भर दिए क्यों तूने क़िस्मत में गम लिख दिए ,

क्यों तूने मोहब्बत के झूठे ख़वाब पिरोए इन आंखों में क्यों तूने जुदाई के पल क़िस्मत में लिख दिए,

क्यों तूने रूब्रारु कराया मुझे उस वक्त में बहते लम्हे से जहां मेरा जहां थम सा गया क्यूं तूने ये लम्हे क़िस्मत में लिख दिए,

क्यों तूने राहें बनाई प्यार की पर बनाई नही उनकी मंजिले क्यों तूने क़िस्मत में तनहा रहने की सजाएं लिख दि है,

क्यों तूने जहां बनाया उसूलों का जंजाल बनाया पर बनाई नही रीत प्रीत की क्यों तूने इश्क़ में लकीरों से रुसवाई लिख दी है,

क्यों तूने दिल की क़िस्मत में आसुओं की फुलवारी लिख दी है,

क्यों तूने मोहोब्बत की किस्मत में बेवफाई लिख दी है,
क्यों तूने उम्मीदों के दामन में ही नाउमीदी दी है,

क्यों बता खुदा क्या ये ही तेरी खुदाई है,
क्यों जवाब दे क्या ये ही तेरी रेहामतदारी है,

क्यों ?

सिला-ए-दिलगि जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें