आपके इस अपमान ने

35 7 12
                                    

जो शक्ति मुझे में थी उसे जागृत करा है आपके इस अपमान ने ,

जो वाक्य मेरे कंठ में स्थब्द थे उन्हे मेरे होटों से निकलवाया आपके इस दुर्व्यवहार ने,

जो आक्रोश की ज्वाला को हलाहल मान हृदयधरा था उसे जवलंत किया आपके इस अचरण ने,

जो कटु निर्णय लेने से आशंकित था मन उसकी शंका का निर्वाण किया है आपके इस दुराचार्ण ने,

आपके उस ताड़ना-प्रताड़ना की मैं आभारी हु वह न होता तो मैं सदेव अबला ही रह जाती,

आपको नमन मुझे इन बंधनों से मुक्ति प्रधान करने हेतु वरना मैं तो सदेव अखियां बंद करे रह जाती,

वरना मैं तो सदेव आपकी दासी मात्र बन रह जाती।

सिला-ए-दिलगि जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें