तू क्या ही जाने

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तेरे पास से गुज़रा पर दिल में ना ठहर पाया तभी तो अखियों में ठहरे अक्स तेरी निघाओं में ना ठहर पाए,

तू मान या ना मान तेरे दिए इस एक तरफा इश्क़ के लिए मेरे दिल को पता है मैंने कितने गमों को जाम समझ पिया है,

तू क्या जाने मैने तेरे खातिर कितने आसुओं को फूल समझ आंखों में पिरोया है,

तू क्या जाने तेरे खातिर कसे मैंने खुद को पल पल हर पल खोया है,

तू क्या जाने तेरे खातिर मैने कितने गमों को दिल-ए-आफरीन में संजोया है,

तू क्या जाने,

बस तू क्या ही जाने।

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