करे तो कसे करे

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वो मन में है बस जुबां से बायां करने को लब हिचकते है ,

वो दिल-ए-शैतान के इल्म में है पर वो अल्फाज़ इन
गुलाबी पंखुड़ियों पर आने से डरते है,

वो दिल में सुकुन से जल रही ठंडी आग तो बहुत है बस इसकी ठंडी तपिश का लफ्जों पर आना मुश्किल है ,

अब तुम्ही बताओं दिल-ए-कातिल मेरे जियाफरोष मेरे दिल-ए-कामिल हम क्या करे ,

इन खौफ सिले लफ्जों से,इन हयानाशी निगाहों से तुम्हारी कामना ईश्वर से करे तो कसे करे,

करे तो कसे करे ,
करे तो कसे करे ?

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